भारत में कई बार न्यायालय द्वारा दिए गए मृत्युदंड को कारावास में बदल दिया जाता है। किसी भी अपराध में सजा का निर्धारण एक कानून के तहत होता है। यदि अपराधी को लगता है कि न्यायालय का फैसला गलत है तो वह उच्च अदालत में अपील करता है लेकिन मृत्युदंड के मामले में राज्यपाल या राष्ट्रपति महोदय सजा माफ करके उसे कारावास में बदल सकते हैं। सवाल यह है कि वह कौन सा कानून है जिसने राज्यपाल एवं राष्ट्रपति महोदय को इतना शक्तिशाली बना दिया कि वह कोर्ट द्वारा दिए गए सजा-ए-मौत के फैसले को बदल सकें।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 433 (क) के अंतर्गत कुछ मामलों के अपराध के दण्ड के लघुकरण का प्रावधान है यह धारा दण्ड प्रक्रिया संहिता संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा जोड़ी गई है। राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 72 एवं राज्य के राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 161 के अन्तर्गत मृत्यु से दण्डित अपराधी की सजा को कारावास मे लघुकरण करनें की शक्ति प्राप्त है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 54 की परिभाषा:-
समुचित सरकार अपराधी के मृत्यु दण्ड को कारावास में बदल सकती है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 433 क के नियमों के उपबन्ध के अनुसार सरकार न्यायालय को आदेश कर सकती है एवं न्यायालय सरकार के आदेश के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 54 के अंतर्गत मृत्यु दंड के अपराधी की सजा को कारावास में करने का आदेश पारित करेगा। नोट:- बिना समुचित सरकार के न्यायालय किसी मृत्यु दंड से दण्डित अपराधी की सजा को लघुकरण नहीं कर सकता है।
उधरणानुसार वाद:- परकाशो बनाम उत्तर प्रदेश राज्य- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 433 के अधीन मृत्यु दण्ड की सजा को लघुकरण करने की जो शक्ति है वो राज्य के राज्यपाल को प्रदत्त की गई है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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