आज 20 मार्च 2021 है। अपने आप को राजनीति का दिग्गज मानने वाले कमलनाथ की जिंदगी की सबसे बड़ी विफलता की बरसी। इतिहास की किताबों में लिखा है, उस व्यक्ति को राजा बनने का अधिकार नहीं जो अपने राज्य और जनता की रक्षा ना कर पाए। कमलनाथ अपनी सीनियरिटी का लाभ उठाकर मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन, 2018 में कांग्रेस पार्टी को मिले जनादेश की रक्षा नहीं कर पाए। आज ही के दिन कमलनाथ के कारण कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश की सत्ता से बेदखल कर दी गई थी।
कमलनाथ का घमंड सातवें आसमान पर था
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ‘कमलनाथ का घमंड सातवें आसमान पर था। विधायक की तो बात ही छोड़ दो, प्रदेश में पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं, यहां तक कि मंत्रियों के साथ जो व्यवहार किया जा रहा था, उसी के चलते असंतोष पनपा।’ अनेक मौकों पर उनके नेतृत्व पर सवाल उठे थे। विधायक तो बहुत बाद में गए, पार्टी से जुड़े अन्य लोगों का मोहभंग कांग्रेसी सरकार के गठन के साथ ही शुरू हो गया था।
कमलनाथ का क्या कसूर
मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए कई लोगों ने काम किया था। जब कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तो ऐसे श्रमजीवियों को सम्मान देना तो दूर की बात समय देने तक के लिए तैयार नहीं थे।
'चलो-चलो' कमलनाथ का जुमला है
कांग्रेस के विधायक खुलेआम आरोप लगा चुके हैं कि कमलनाथ उनकी बात नहीं सुनते थे। 'चलो-चलो' कमलनाथ का जुमला है जिसके माध्यम से हुआ हर बात को टाल देते हैं। विधायक तो अब भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद भी कमलनाथ जमीन पर नहीं आए हैं।
ऐसा ओवरकॉन्फिडेंस राजनीति में कभी-कभी ही देखने को मिलता है
विधायकों ने उन्हें समय रहते बताया था कि दूसरी पार्टी के लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं एवं उन्हें लालच दिया जा रहा है। इस बारे में पत्रकारों ने भी समय रहते सवाल किया था लेकिन कमलनाथ ओवर कॉन्फिडेंट थे। विधायकों से कहते थे कि यदि कोई पैसे दे रहा है तो ले लो। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सड़क पर उतरने वाला बयान दिया तो जवाब में कमलनाथ ने कहा था ' तो उतर जाएं।' ऐसा ओवरकॉन्फिडेंस राजनीति में कभी-कभी ही देखने को मिलता है।
सत्ता एवं संगठन की सभी कुर्सियों पर कुंडली मारकर बैठ गए
मध्य प्रदेश की राजनीति में आने के बाद कमलनाथ ना केवल प्रदेश अध्यक्ष बने बल्कि मुख्यमंत्री भी बने और फिर सत्ता एवं संगठन की सभी कुर्सियों पर कुंडली मारकर बैठ गए। कांग्रेस पार्टी और निगम-मंडल सहित करीब 200 पद थे जिन पर कमलनाथ ने 1 साल तक किसी भी कांग्रेस नेता की नियुक्ति नहीं की। आज भी कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों पर एक साथ विराजमान है।
कमलनाथ ने ‘एंटी ट्रांसपेरेंसी’ रुख अपना लिया था
शिवराज सरकार में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ कमलनाथ काफी नरम हो गए थे: अजय दुबे
2018 के पहले शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ खुली लड़ाई लड़ने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए सत्ता तक पहुंचने का रास्ता साफ किया। कमलनाथ के बारे में अजय दुबे का बयान था कि
‘सरकार बनने के बाद कमलनाथ ने ‘एंटी ट्रांसपेरेंसी’ रुख अपना लिया था। जैसे कि सूचना आयोग में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को ठेंगा दिखाकर सूचना आयुक्त की कुर्सी पर अपना आदमी बैठा दिया। वाइल्ड लाइफ बोर्ड में पूंजीपतियों को प्रवेश दिया। आरटीआई का आवेदन दस गुना महंगा कर दिया (यानी किसी को दूसरी अपील करनी हो तो 1,000 रुपये चुकाए)। सर्विस कमीशन को सही रिफॉर्म नहीं किया।
कमलनाथ भाजपा से डरते थे, उसके खिलाफ कोई जांच नहीं चाहते थे
भाजपा के भ्रष्टाचार की जांच के लिए जनायोग का वादा पूरा नहीं किया।’ शिवराज सिंह सरकार के घोटालों पर कमलनाथ का रुख काफी नर्म था। कमलनाथ मैनेजमेंट करके चल रहे थे, भाजपा को नाराज करना नहीं चाहते थे और गुड गवर्नेंस उनकी प्राथमिकता नहीं थी। उन्हें आरोप-पत्र के बारे में बात करना तक पसंद नहीं था, मतलब कि वे भाजपा से डरते थे या उसके खिलाफ कोई जांच नहीं चाहते थे।
मैंने नरोत्तम मिश्रा का स्टिंग ऑपरेशन किया था, कमलनाथ वीडियो पर कुंडली मारकर बैठ गए
व्यापम घोटाले के विसलब्लोअर डॉक्टर आनंद राय ने कहा था कि, ‘मैंने कांग्रेस सरकार बनने के दो महीने बाद ही नरोत्तम मिश्रा पर स्टिंग किया था जहां वे खुलकर विधायकों की खरीद-फरोख्त का सौदा कर रहे थे। इसका वीडियो कमलनाथ को सौंप दिया। वे एक साल तक उस पर कुंडली मारे बैठे रहे। शायद उन्होंने नरोत्तम से हाथ मिला लिया था लेकिन जब साल भर बाद उन्हीं नरोत्तम के कारण सरकार गिरने लगी, तब वे वीडियो दिखाने लगे।’
राजनीति में ध्यान रखने वाली बातें
ऐसा व्यक्ति जो अपनी सरकार को बचा नहीं सकता, मुखिया के पद के योग्य नहीं होता।
मुखिया यह नहीं कह सकता कि उसके पास प्रॉपर इंफॉर्मेशन नहीं थी क्योंकि सारा इनफॉरमेशन नेटवर्क उसी के लिए काम करता है।
कमलनाथ की विशेषताओं में गिराया गया था कि वह सब को साथ लेकर चलने की क्षमता रखते हैं। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच चल रही गुटबाजी का समाधान है परंतु कमलनाथ गुटबाजी का समाधान नहीं कर पाए बल्कि गुटबाजी का शिकार हो गए। कमलनाथ खुद गुटबाज नेता निकले।
कमलनाथ को जनता से शमा माननी चाहिए कि वह जनादेश की रक्षा नहीं कर पाए। जनता ने कांग्रेस को सत्ता में भेजा था, कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनकर ऐसी ऐतिहासिक गलतियां की जिसके कारण ना केवल कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई बल्कि उपचुनाव में भी शर्मनाक पराजय का शिकार हुई।