गोविन्द जी ! अब नर्मदा तीरे - Pratidin

NEWS ROOM
0
आने वाले कल अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा जयंती है| हर साल की तरह माँ नर्मदा के घाटों पर बहुत से लोग जुटेगें |उनमें मां नर्मदा के अकिंचन भक्त, के साथ वे सफ़ेदपोश बेटे जो एक दिन आराधना के बाद पोकेलेंड मशीन से माँ की कोख खोदने में मददगार बनते है, शामिल होंगे |

इस बार कुछ अलग भी हो रहा है| मूलत: तमिलनाडु के कौड़ीपक्क्म गाँव से सम्बन्ध रखने वाले,तिरुपति में जन्मे और बनारस में पले-बढ़े अपने गोविन्द जी यानि कौड़ीपक्कम नील्मेघचार्य गोविन्दाचार्य माँ नर्मदा के किनारे–किनारे हैं | वे गंगा भी, गोमुख से गंगा सागर तक नाप आये हैं | वैज्ञानिक, व्यवाहरिक और समग्र समाज जैसे जल जीवन जानवर और जन के लिए चिरंजीवी चिन्तन के लिए गोविन्द जी का अध्ययन अहर्निश जारी रहता है | उन्होंने राजनीति में अपनी सदस्यता का नवीनीकरण इस अध्ययनवृति के कारण ही तो नहीं किया | मध्यप्रदेश की राजनीति में वैसे माँ नर्मदा का दोहन भाजपा और कांग्रेस दोनों ने किया है और तो नर्मदा परिक्रमा तक राजनीतिक कारणों से हुई है |

चूँकि यह अध्ययन यात्रा है,उसके लिए कुछ बिंदु :-

जैसे सरदार सरोवर बांध मध्यप्रदेश में अपने दुष्प्रभाव दिखा रहा है | अनेक विस्थापितों का पुनर्वास नहीं हुआ है | बढती- घटती ऊंचाई के खेल से दो-दो हाथ करते पीड़ित अब जान देने को उतारू हैं | किसी भी क्षण कोई अशुभ सूचना नर्मदा पर बने इसे बांध से आ सकती है |इस बांध के निर्माण, उसकी वर्तमान स्थिति और केंद्र की विभेदकारी नीति कुछ भी करा सकती है | इसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं होगा| सरकारें होंगी, राज्य और केंद्र की सरकार |

वैसे हम बाढ़ प्रबंधन के हमारे नजरिये के मूल को औपनिवेशिक काल से जोड़ सकते हैं। पूर्वी भारत के डेल्टाई इलाकों में १८०३ से लेकर १९५६ के दौरान बाढ़ नियंत्रण को लेकर किए गए प्रयोगों का अध्ययन दर्शाता है कि यह इलाका बाढ़ पर आश्रित कृषि व्यवस्था से बाढ़-प्रभावित भूभाग में तब्दील हो गया। सबसे पहले ओडिशा डेल्टा क्षेत्र में जमीन को डूबने से बचाने के लिए नदी के तटीय इलाकों में छोटे बंधे बनाए गए थे। मशहूर इंजीनियर सर आर्थर कॉटन को १८५७ में डेल्टाई इलाकों के सर्वे के लिए बुलाया गया था। उन्होंने यह क्लासिक संकल्पना पेश की थी कि ‘सभी इलाकों को बुनियादी तौर पर एक ही समाधान की जरूरत होती है।’ इस सोच का मतलब है कि नदियों में पानी की अपरिवर्तनीय एवं सतत आपूर्ति बनाए रखने के लिए उन्हें नियंत्रित एवं विनियमित किए जाने की जरूरत है। यह धारणा दोषपूर्ण होते हुए भी भारत में आज भी जल नीति को रास्ता दिखाती है।

माधव गाडगिल और कस्तूरीरंगन समितियां पहले ही पश्चिमी घाटों की अनमोल पारिस्थितिकी को अहमियत देने और उनके संरक्षण के अनुकूल विकास प्रतिमान तैयार करने की वकालत कर चुकी हैं। लेकिन इस सलाह को लगातार नजरअंदाज किए जाने से इन इलाकों में रहने वाले लोगों की मुसीबतें बदस्तूर जारी हैं। नर्मदा घाटी से भी इस तरह की खबरें रोज आती हैं |

बिजली उत्पादन की मांग और बाढ़ नियंत्रण की अनिवार्यता के बीच अनवरत संघर्ष होता है। दरअसल बिजली उत्पादन के लिए बांधों के जलाशयों में भरपूर पानी की जरूरत होती है जबकि बारिश का मौसम शुरू होने के पहले इन बांधों के काफी हद तक खाली होने से बाढ़ काबू में रहेगी। किसी भी सूरत में हमारे अधिकांश बांध या तो सिंचाई या फिर बिजली उत्पादन के मकसद से बनाए गए हैं और बाढ़ नियंत्रण इसका दोयम लक्ष्य होता है। 

प्रथम लक्ष्य तो बाँध के कारण विस्थापितों का पुनर्वास होना चाहिए | विस्थापितों में वे बच्चे भी हैं जिनके सामने जिन्दगी पड़ी है | जल से मंगल की कहानी जग जाहिर है, मध्यप्रदेश में जल से दंगल नामक लिखी जा रही है, इस कहानी को बदला जा सकता है | विनोबा कहा करते थे जो कानून से हल न हो करुणा से करें, हो जायेगा | यह कहानी भी करुणा से हल होगी, कुश्ती से नहीं और नूराकुश्ती से तो बिलकुल नहीं |

गोविन्द जी का अध्ययन प्रवास २३ मार्च तक चलेगा | उन्हें सब मिलेगा. क्षत-विक्षत माँ, नर्मदा के किनारे लाखों पेड़ लगाने के किस्से, रेत ढोते ट्रक, सालो से धूनी रमाये जोगी, और वे अकिचंन भी जो वन उत्पाद को माँ नर्मदा का प्रसाद मान पीढ़ियों से लगे हैं, जमे हैं |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते 
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

Post a Comment

0 Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!