वेबिनारों की बाढ में जमीन तलाशती बौद्धिकता - My Opinion

धीरज जांनसन।
आजकल कोरोना काल के कारण शैक्षणिक संस्थाओं में ऑनलाइन वेबिनार आयोजित हो रहे है जिनका लाभ छात्रों को कम और स्टाफ को अपने दस्तावेज दुरस्त करने में ज्यादा हो रहा है और बिना श्रम के ये आसानी से हो जाता है व खानापूर्ति हो जाती है।

इसके साथ ही इन वेबिनार को अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रस्तुत किया जा रहा है जबकि इस ऑनलाइन मीटिंग में बोलने वाले अधिकांश भारतीय ही होते है जो बाहर केवल विजिटिंग ही रहते है। अगर विदेशी मूल के निवासी हिंदी भाषा में अपना व्याख्यान देते तो यह अंतरराष्ट्रीय वेबिनार होता लेकिन जिन लोगों ने इन वेबिनार में विषय के बारे में बोला वे भारतीय विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर है जो कुछ समय के लिये विदेशी विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 

इसी संदर्भ में कुछ वेबिनार हिंदी साहित्य में पक्ष में किया गया, पर आलम वही था कि कुछ तय लोग ही अधिकांश वेबिनार में प्रस्तुत होते है जिनमें बाहरी कम होते है और शुरू होता है महिमामंडन, इस संदर्भ में हिंदी अंतराष्ट्रीय भाषा के रूप में बहुत प्रासंगिक प्रतीत नहीं होती, क्योकिं अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा अंग्रेजी जैसी भाषाओं को ही प्राप्त है, जिसका मूल कारण व्यापक स्तर पर अंग्रेजी एवं अन्य की पहुंच एवं ज्यादातर विकसित देशों में लोगों में इस की समझ है। 

आमतौर पर दुनिया के विभिन्न देशों मे बहुत से भारतीयों के स्थायी तौर पर निवासरत हो जाने के कारण हिंदी दुनिया तक पहुँच गयी है अपितु वो केवल भारतवंशियों तक ही सीमित है या उन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में  भारत के उन निवासियों को आकर्षित कर व्यवसाय को गति देने, केवल सामान्य बोलचाल तक ही सीमित है।

आज हिंदी व अन्य पर अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित हो रहे है जो केवल अखबारों में सुर्खियां बटोरने से ज्यादा कुछ भी नहीं है।  प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों में आयोजित वेबिनार भी कुछ ऐसी ही स्थिति को व्यक्त करता है यदि ध्यान दिया जाए तो इस वेबिनार में अधिकांश भारतीयों को ही हिस्सा बनाया गया जिनकी समझ और भाषा बोध स्तर पर तो उनके रक्त में ही है। यदि इस बेविनार में अगर अधिक संख्या में गैर भारतीय को शामिल किया जाता या उनकी सहभागिता होती तो शायद यह अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार होता। 

ऐसा भी प्रतीत होता है कि एक वेबचेन बनाई गई है जिसमें कुछ व्याख्याताओं को चुन लिया गया है जो सभी जगह व्याख्यान के लिए फिक्स रखे जा रहे है और जिन राष्ट्रों के उल्लेख किया जा रहा है कि वहां हिंदी बोली जाती है वास्तव में वहां सिर्फ भाषा का ज्ञान दिया जाता है हिंदी बोली नहीं जाती है। यदि भारतीयों को दुनिया के अलग अलग देशों में जाकर केवल हिंदी में ही भाषा संचार करना था तो यह केवल एक राष्ट्रीय वेबिनार ही है और इससे अधिक कुछ भी नहीं।

एक सच यह भी सामने आता रहा है कि जो वेबिनार आयोजित हो रहा है उन्हें आयोजित करने/व्याख्यान देने वालों में भी कुछ को मानक भाषा बोलना/लिखना भी नहीं आती,पर स्वयंभू बनने में कसर नहीं छोड़ते।यह भी चिंतन और जांच का विषय है।

आश्चर्य तो यह है कि इस बाढ़ में ऐसे ही अन्य वेबिनार में रजिस्ट्रेशन तो हजारों के बताएं जाते है पर सहभागियों की संख्या कम होती है और वे भी सिर्फ खामोशी से सुन सकते है पर प्रश्न नहीं कर सकते। इससे पढ़े जाने वाले शोधपत्र पर ही संशय होता है। यूजीसी द्वारा अब तक मान्यता प्राप्त नही  हुई है इसके बाद भी हो धड़ल्ले से हो रहे वेबिनार अपने आप मे एक शोध का विषय है।

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