आत्म निर्भर भारत और उसकी बाज़ार निर्भर सरकार - Pratidin

महात्मा गाँधी ने कहा है कि “मनुष्य को जीवन में दूसरों पर भरोसा न कर आत्म निर्भर और आत्म विश्वासी होना चाहिए ।“ गाँधी जी के देश और हमारे- आपके भारत में इन दिनों सरकार आत्म निर्भरता की मुहिम चला रही है, यह अलग बात है मुहिम चलाने वाली सरकार खुद पूरी तरह बाज़ार पर निर्भर होती जा रही है| कुछ दिनों पहले ही केंद्र सरकार ने देश के कॉर्पोरेट घराने को बहुत सारे व्यापारिक लाभ देने के बाद अब  बैंक खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है | कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की अनुमति देने की सिफारिश की रघुराम राजन और विरल आचार्य के साथ अनेक अर्थशास्त्रियों ने आलोचना की है  |  

जहाँ तक आत्मनिर्भरता का प्रश्न है, दूसरे शब्दों में  मनुष्य की आत्म-सहायता ही उसके जीवन का मूल सिद्धांत, मूल आदर्श एवं उसके उद्देश्य का मूल-तंत्र होना चाहिए । असंयत स्वभाव तथा मनुष्य का परिस्थितियों से घिरा होना, पूर्णरूपेण आत्मविश्वास के मार्ग को अवरूद्ध सा करता है ।

मनुष्य समाज में रहता है जहां पारस्परिक सहायता और सहयोग का प्रचलन है । वह एक हाथ से देता तथा दूसरे हाथ से लेता है । यह कथन एक सीमा तक उचित प्रतीत होता है । ऐसा गलत प्रमाणित तब होता है जब बदले में दिया कुछ नही जाता सिर्फ लिया भर जाता है और जब अधिकारों का उपभोग विश्व में बिना कृतज्ञता का निर्वाह किए, भिक्षावृत्ति तथा चोरी और लूट-खसोट में हो, लेकिन विनिमय न हो ।

फिर भी पूर्ण आत्म-निर्भरता असंभव सी है । जीवन में ऐसे सोपान आते हैं, जब आत्म विश्वास को जागृत किया जा सकता है । स्वभावतया हम दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं । हम जरूरत से ज्यादा दूसरों की सहायता, सहानुभूति, हमदर्दी, नेकी पर विश्वास करते हैं, लेकिन यह आदत हानिकारक है । इससे हमारी शक्ति और आत्म उद्योगी भावना का ह्रास होता है । यह आदत हममें निज मददहीनता की भावना भर देती है ।यह हमारे नैतिक स्वभाव पर उसी प्रकार कुठाराघात करती है, जैसे किसी नव शिशु को गिरने के डर से चलने से मना करने पर कुछ समय पश्चात् अपंग हो जाता है । यदि इसी प्रकार हम दूसरों पर निर्भर न रहें तो नैतिक रूप से हम अपंग व विकृत हो जाते हैं ।

इसके अलावा दूसरों से काफी अपेक्षा रखना एक तरह से खुद को उपहास, दयनीय स्थिति, तिरस्कार व घृणा का पात्र बना लेने के बराबर है। इस स्थिति में लोग आश्रित और परजीवी बन जाते हैं। आत्म-शक्ति से परिपूर्ण व्यक्तियों के मध्य हमारी खुद की स्थिति दयनीय हो जाती है ।विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने के लिए हमारा अन्त करण हमें उत्तेजित करता है । अन्त में हम इस मानव जाति से घृणा व विरोध करने लगते हैं । ईर्ष्या हमारे जीवन में जहर भर देती हैं । इससे ज्यादा दयनीय स्थिति और कोई नही।

इससे बिल्कुल विपरीत स्थिति आत्म-विश्वासी व्यक्ति की है। वह वीर और संकल्पी होता है। वह बाहरी सहायता पर विश्वास नही करता, बकवास में विश्वास नही रखता और बाधाओं, मुसीबतों से संघर्ष करता है तथा हर पग पर नए अनुभव प्राप्त करता है । वह चाहे सफल रहे या असफल उसे हमेशा दया, आदर और प्रशंसा का अभिप्राय माना जाता है।

कुछ दिनों पहले ही केंद्र सरकार ने देश के कॉर्पोरेट घराने को बैंक खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है  यह बहुत सी सुविधाओं के बाद की सुविधा है | केंद्रीय मंत्री आरबीआई के दो पूर्व अधिकारियों ने इसकी आलोचना की है. बैंकिंग सेक्टर में प्रस्तावित बदलावों के तहत भारतीय कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की अनुमति देने की सिफारिश की गई थी| यह सिफारिश पिछले दिनों भारतीय रिजर्व बैंक के इंटरनल वर्किंग ग्रुप ने दी थी| राजन आरबीआई के पूर्व गवर्नर हैं और विरल आचार्य के पूर्व डिप्टी गवर्नर हैं| उन्होंने इस सुझाव को बैड आइडिया कहा है. दो पूर्व केंद्रीय बैंकरों ने आरबीआई के वर्किंग ग्रुप की सिफारिश की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि भारत में बैंकिंग कारोबार को कॉरपोरेट घराने के हाथ में सौंपने की सिफारिश एक बम जैसा है|

 अनेक अर्थशास्त्रियों का मानना  है कि “उन कनेक्शन को समझ पाना हमेशा मुश्किल होता है जब वे औद्योगिक घराने का हिस्सा बनते हैं|” रघुराम राजन ने  भी एक पोस्ट में इस सिफारिश को 'खराब विचार' बताया. उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट घरानों को बैंक खोलने की अनुमति देने से कुछ खास कारोबारी घरानों के हाथ में और ज्यादा आर्थिक और राजनीतिक ताकतआएगी| आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा, "भारत अब आईएलएंडएफएस और यस बैंक की विफलताओं से सबक लेने की कोशिश कर रहा है. आरबीआई के इंटरनल वर्किंग ग्रुप की कई सिफारिशें स्वीकार करने योग्य हैं, लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में भारतीय कारोबारी घरानों को प्रवेश देने की उसकी मुख्य सिफारिश को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए|"

रघुराम राजन और विरल आचार्य ने चेतावनी देते हुए कहा है कि भले ही रिजर्व बैंक बैंकिंग लाइसेंस निष्पक्ष रूप से आवंटित करता है, लेकिन यह उन बड़े व्यापारिक घरानों को अनुचित लाभ पहुंचाने में मदद करेगा जो पहले से ही शुरुआती पूंजी रखते हैं| राजन और आचार्य ने आगे कहा है कि अत्यधिक कर्ज और राजनीतिक रूप से जुड़े व्यापारिक घरानों के पास लाइसेंस के लिए सबसे बड़ा प्रोत्साहन और क्षमता होगी जो हमारी राजनीति में धन शक्ति के महत्व को और अधिक बढ़ाएगा|

अब प्रश्न देश के सामने खड़ा है | आम नागरिक से आत्मनिर्भरता  की अपेक्षा करने वाली सरकार खुद क्या कर रही है ? देश की सम्पत्ति बड़े घरानों को औने-पौने बेचने, अरबों के पैकज, बैंक खोलने की सिफारिश क्या बाज़ार पर निर्भरता का पुष्ट प्रमाण नहीं है |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !