सिर्फ शेयर बाज़ार उछलने से कुछ नहीं होता - Pratidin

गजब हुआ मुंबई का शेयर बाज़ार अपने 145 साल के इतिहास में पहली बार उस ऊंचाई को छुआ कि रिकार्ड बन गया । दूसरी तरफ, देश के रिजर्व बैंक का मानना है कि देश की जीडीपी दर सकारात्मक होने के करीब है, और वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में बढ़ सकती है। सरकार तो यह मान बैठी है किकि चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 7.7 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है, जो पहले 10 प्रतिशत के आसपास आंकी जा रही थी। ये आंकड़े कोरोना संतप्त देश को सुकून दे सकते हैं। लेकिन ये आधार पर देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है का भ्रम पैदा करने जैसा होगा।

शेयर बाजार तो लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबि मात्र है। भारत में अब भी केवल 3 प्रतिशत लोग ही इक्विटी म्यूचुअल फंड में पैसे लगाते है। यदि अमेरिका जैसे देश से तुलनाकरें, तो वहां शेयर बाजार में लगभग आधी आबादी निवेश करती है। भारत में 0.1 प्रतिशत कारोबारी ही पूरे शेयर बाजार पर हावी हैं। ये वे लोग हैं, जिनकी कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। जैसे कि तकनीक और प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियां, एफएमसीजी यानी उपभोक्ता वस्तु बनाने वाली कंपनियां आदि। इसीलिए शेयर बाजार की इस उछाल को आम लोगों की आर्थिक तरक्की से नहीं जोड़ सकते। सेंसेक्स की इस तेजी की एक वजह और भी है। अब बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों में ब्याज कम हो गए हैं। इनमें ब्याज दरें लगातार घटती गई हैं, जिसके कारण निवेशक नए विकल्प तलाश रहे हैं।

रियल एस्टेट निवेश का एक रास्ता जरूर था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसमें भी मंदी छाई हुई है। अच्छी बात है कि कोरोना संकट को देखते हुए अमेरिका, यूरोप जैसे देशों के बाजार में वहां के केंद्रीय बैंकों ने तरलता बढ़ाई है। अपने यहां भी नौ लाख करोड़ रुपये की नकदी बाजार में आने की बात कही जा रही है। चूंकि बैंकों की हालत अभी खस्ता है और रियल एस्टेट से आमद कम, इसलिए स्वाभाविक ही शेयर बाजार की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है।

जनवरी २०२० की तुलना में भी हमारी अर्थव्यवस्था अब भी लगभग 10 प्रतिशत कम है। लॉकडाउन हटने के बाद कुछ ही कंपनियां खुद को संभाल सकी हैं। विमानन उद्योग, पर्यटन उद्योग, होटल-रेस्तरां आदि की हालत तो अब भी खस्ता है। आकलन यह है कि ऐसी स्थिति अभी एक-डेढ़ साल तक बनी रहेगी। इसका सीधा मतलब है कि इतने दिनों तक बाजार में भी अनिश्चितता बनी रहेगी। उम्मीद जरूर कोरोना टीकाकरण अभियान से है, और माना जा रहा है कि जैसे-जैसे इसमें गति आती जाएगी, अर्थव्यवस्था में सुधार दिखने लगेंगे। टीकाकरण की रफ्तार को देखकर यही कहा जा सकता है कि देश की 60 प्रतिशत आबादी को टीका लगने में एक साल का वक्त लग जाएगा। यानी बाजार अभी अनिश्चितता में फंसा रहेगा। ऐसे में, शेयर बाजार की यह तेजी इसलिए भी छलावा साबित हो सकती है, क्योंकि अब भी यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कि कोविड-19 संक्रमण की नई लहर अपने यहां नहीं आएगी। कई देशों में कोरोना संक्रमण बढ़ने पर फिर से लॉकडाउन लगाया गया है।

इसलिए जब तक हम ‘हर्ड इम्यूनिटी’ विकसित नहीं कर लेते, बाजार के स्थिर होने का दावा नहीं कर सकते। अपने यहां साल 2007  के दिसंबर में सेंसेक्स पहली बार 21 हजार के पार गया था। उस वक्त दुनिया भर में जबर्दस्त तेजी थी। मगर सब-प्राइम संकट की वजह से जब अमेरिका में प्रॉपर्टी बाजार का गुब्बार फूटा, तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डूब गई। हर देश के शेयर बाजार 50 प्रतिशत से भी ज्यादा गिर गए। अपने यहां भी तब सूचकांक घटकर 9000 पर आ गया था। 1999 के दशक के हर्षद मेहता घोटाले ने भी आम लोगों की जमा-पूंजी को डूबा दिया था। इसीलिए शेयर बाजार को असल अर्थव्यवस्था से अलग माना जाता है।

हमने अब अपने बाजार पूरी तरह से खोल दिए हैं। लॉकडाउन के दौरान देशव्यापी बंदी की जो स्थिति थी, वह अब पूरी तरह से खत्म हो गई है। ऐसे में, उत्पादन का बढ़ना बिल्कुल स्वाभाविक है, जिसका असर बाजार पर भी दिख रहा है और आंकड़ों में भी। मगर सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों में मुख्यत: संगठित क्षेत्र को शामिल किया जाता है। इसमें कृषि को छोड़कर किसी असंगठित क्षेत्र की गिनती नहीं होती। हमारी अर्थव्यवस्था में 14 प्रतिशत हिस्सा कृषि का है, जबकि ३१ प्रतिशत के करीब हिस्सेदारी गैर-कृषि असंगठित क्षेत्र की है। वित्तीय संस्थाएं यह मान बैठती हैं कि संगठित क्षेत्र की तरक्की के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र भी समान गति से आगे बढ़ते हैं। वास्तव में, यह सोच गलत है।

यदि असंगठित क्षेत्र को भी जीडीपी के आंकड़ों में शामिल कर लें, तो अब भी हमारी अर्थव्यवस्था नकारात्मक 10 प्रतिशत होगी और उसकी सालाना गिरावट निगेटिव 29 प्रतिशत। यह भी इस आधार पर अंदाजा लगाया गया है कि जनवरी में पांच फीसदी की गिरावट के बावजूद फरवरी में हमारी अर्थव्यवस्था साल 2019 के स्तर पर आ जाएगी। असंगठित क्षेत्रों की हालत कितनी बिगड़ी हुई है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक महीने पूर्व सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग की 20 प्रतिशत इकाइयां अपना कर्ज वापस करने में सक्षम नहीं थीं। इसका अर्थ है कि उनके पास पैसे नहीं हैं, जबकि असंगठित क्षेत्र की बुनियाद पर ही संगठित क्षेत्र आगे बढ़ सकता है। साफ है, दो महीने की तुलना में अभी जीडीपी दर बेशक ज्यादा है, लेकिन साल 2019 के बनिस्बत यह अब भी काफी कम है। लॉकडाउन के समय हमारे यहां उत्पादन में लगभग 75 प्रतिशत की गिरावट आई थी, और यह अब भी १० प्रतिशत कम है। इसलिए अगले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में हम अप्रत्याशित वृद्धि भी देख सकते हैं। लेकिन इसको अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर तो नहीं ही कहेंगे।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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