केंद्रीय बजट दो सप्ताह में आ जायेगा | सब जानते हैं, बजट एक संवैधानिक आवश्यकता है, क्योंकि बजट पारित हुए बिना राजकोष से एक रुपया भी खर्च नहीं किया जा सकता है. आगामी बजट के प्रस्तावों पर चर्चा व बहस गर्मागर्म हो सकती है, बहुमत को देखते हुए उनका पारित होना तय है| यह भी एक तथ्य है कि वित्त विधेयक के सन्दर्भ में राज्यसभा को प्रभावी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है| आगामी बजट असाधारण परिस्थितियों में पेश किया जा रहा है| यह बजट 2020-21 वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में रियल टर्म्स में आठ प्रतिशत और नॉमिनल टर्म्स में चार प्रतिशत के आसपास के आंकड़े प्रदर्शित करेगा |
जीडीपी में धनात्मक वृद्धि होती है, बजट को आमतौर पर पिछले वर्ष के हिसाब से आगे जाकर तैयार किया जाता है. यह कहने की जरूरत नहीं है कि इस बार एकदम नये और उग्र सुधारवादी उपायों के बारे में नहीं सोचा जा सकता है, लेकिन अधिकतर आकलनों और प्रस्तावों में कुल मिलाकर पिछले साल की तुलना में बढ़त है. इसलिए, यदि नॉमिनल जीडीपी में लगभग 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है, तो बजट में कराधान में 18 से 20 प्रतिशत की बढ़त का हिसाब हो सकता है| अगले साल के बजट में ऐसी बढ़त की संभावित नहीं हैं और न ही ये ठीक हैं|
संभवत: वित्त मंत्री संभवत: वित्तीय घाटे के आकार पर बहुत कम ध्यान देंगी| वृद्धि के लिए राहत पैकेज देना और रोजगार बढ़ाना बड़ी प्राथमिकताएं हैं| इसका मतलब यह है कि पूरे बजट का आकार लगभग 36 ट्रिलियन रुपये तक हो सकता है, जो पिछले साल के बजट से करीब 20 प्रतिशत अधिक होगा |अगर घाटे की मात्रा देखें, जो कुल उधार की मात्रा भी है, तो वह १२ ट्रिलियन रुपये यानी जीडीपी का छह प्रतिशत तक हो सकती है|
अब आगे की बात | इंफ्रास्ट्रक्चर और बैंकिंग ऐसे दो क्षेत्र हैं, जिनमें केंद्र सरकार को अगले वित्त वर्ष में अधिक संसाधन मुहैया कराने की जरूरत है| बीते साल के लॉकडाउन से कुछ माह पहले वित्त मंत्री ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन की घोषणा की थी, जो सात हजार से अधिक परियोजनाओं का समुच्चय है और इसके तहत 111 ट्रिलियन रुपये पांच साल की अवधि में खर्च होने हैं. निश्चित रूप से इसमें अधिकांश खर्च देशी-विदेशी निजी क्षेत्र द्वारा किया जाना है| इनमें इक्विटी और कर्ज के अतिरिक्त धन का लाना कठिन दिखता है |
फिर भी इस पहल के तहत हर साल लगभग 22 ट्रिलियन रुपये खर्च होंगे. निश्चित रूप से इसमें से कम-से-कम 10 से 15 प्रतिशत हिस्सा सरकारी स्रोतों से आना चाहिए, जो सॉवेरेन इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड के जरिये या सीधे शुरुआती पूंजी देकर मुहैया कराया जा सकता है| इस हिसाब से बजट में कम-से-कम दो से तीन ट्रिलियन रुपये का प्रावधान इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए होना चाहिए|
भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में बैंकों की पूंजी जरूरत की गंभीर तस्वीर को रेखांकित किया गया है| लॉकडाउन के दौर में केंद्रीय बैंक ने बड़ा धैर्य दिखाया था| कर्जों की चुकौती रोकने के साथ चुकौती में नाकाम कर्जों की पहचान प्रक्रिया भी रोक दी गयी थी. इसके चलते आशा के उलट सितंबर में बैंकों के फंसे हुए कर्जों (एनपीए) का अनुपात बढ़ गया|इसके अलावा, जैसा कामथ कमिटी ने इंगित किया है, 26 सेक्टर दबाव में हैं और उनके 48 ट्रिलियन रुपये के कर्जों की पुनर्संरचना करने की जरूरत है, ताकि उनकी गिनती एनपीए के रूप में न हो| रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, यदि एनपीए का अनुपात 12 होता है, तो सरकार को कम-से-कम दो ट्रिलियन रुपये की पूंजी सार्वजनिक बैंकों को मुहैया कराना होगा ताकि कर्ज दिये जा सकें और शेष अर्थव्यवस्था में क्रेडिट ग्रोथ हो सके|
देश E- आर्थिकी को यदि सात-आठ फीसदी की दर से बढ़ना है, तो बैंक क्रेडिट में 15-20 प्रतिशत की बढ़त जरूरी है| इसका मतलब यह है कि इसके लिए बैंकों को पूंजी दी जानी चाहिए. केंद्रीय बजट में इस पूंजी का आवंटन होना चाहिए| इस धन को निजीकरण से भी जुटाया जा सकता है| जिन बैंकों को पूंजी दी जानी है, उन सबके स्वामित्व को एक सुपर कंपनी में बदला जा सकता है, जो 75 प्रतिशत तक के निजी निवेश को आमंत्रित कर सकता है|.
इंफ्रास्ट्रक्चर और बैंकिंग की प्राथमिकताओं के साथ स्वास्थ्य सेवा, स्टार्टअप, स्वच्छ ऊर्जा, शिक्षा, कौशल, ग्रामीण रोजगार गारंटी आदि कई क्षेत्रों की बजट से अपेक्षाएं हैं. महामारी के अनुभव के बाद स्वास्थ्य सेवा में सार्वजनिक खर्च में कम-से-कम दुगुनी बढ़त कर इसे करीब छह ट्रिलियन रुपये किया जाना चाहिए| डेढ़ साल में पचास करोड़ लोगों का टीकाकरण बहुत बड़ा अभियानहै , लेकिन यह न केवल कारोबार व उपभोक्ताओं में भरोसा बढ़ाने का बड़ा कारक होगा| ऐसे में बड़े उपायों व सुधारों की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है. शायद यह राजस्व के मामले में देखा जा सकता है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।