मकर संक्रांति पर खिचड़ी के दान की परंपरा कब और क्यों शुरू हुई, यहां पढ़िए - MAKAR SANKRANTI KHICHDI STORY

Bhopal Samachar
मकर संक्रांति का पर्व स्नान और दान का पर्व निर्धारित किया गया है। दान में अन्य खाद्य पदार्थों के अलावा खिचड़ी के दान का विशेष महत्व है। आज की कथा में हम आपको बताएंगे कि मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी के दान की परंपरा कब और क्यों शुरू हुई। 

मकर संक्रांति के अवसर पर पहली बार खिचड़ी कहां बनाई गई थी

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के अवसर पर उड़द की दाल और चावल को मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है। यह खिचड़ी भगवान शिव का प्रसाद समझकर ना केवल परिवार के लोग सेवन करते हैं बल्कि यथासंभव दान की जाती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि खिचड़ी का सूर्य के राशि परिवर्तन से कोई संबंध नहीं है। नाही वसंत ऋतु से कोई संबंध है। बल्कि इसके पीछे की एक अलग ही कथा है। मकर संक्रांति के अवसर पर पहली बार खिचड़ी जबलपुर के नजदीक स्थित त्रिपुरी में बनाई गई थी। इसके बाद परंपरा बन गई। उन दिनों त्रिपुरी कलचुरी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी।

त्रिपुरी युद्ध, शैव मत की स्थापना और खिचड़ी के प्रसाद की कथा 

महादेव के पुत्र कार्तिकेय ने दैत्यराज तारकासुर का वध कर दिया था। तारकासुर के 3 पुत्र थे, तारकाक्ष, कमलाक्ष, विद्युन्माली। तीनों ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का संकल्प लिया। सुनिश्चित किया कि जिस प्रकार कार्तिकेय ने उनके पिता का वध किया है उसी प्रकार वह भी कार्तिकेय के पिता भगवान शिव का वध करेंगे। 

शक्ति प्राप्त करने के लिए उन्होंने भगवान ब्रह्मा की तपस्या की। प्रसन्न होने पर तीनों ने भगवान ब्रह्मा से तीन अभेद्य नगरी स्वर्णपुरी, रजतपुरी और लौहपुरी की मांग की, जो आकाश में उड़ती रहें और 1000 वर्ष बाद ही एक सीध में आएं। जिस समय तीनों एक सीधी रेखा पर होंगे तभी उनका वक्त किया जा सकेगा। ब्रह्मा जी ने उन्हें मनचाहा वर प्रदान कर दिया। तारकासुर के तीनों पुत्रों की 3 पुरियों का केंद्र पृथ्वी पर त्रिपुरी नामक स्थान को बनाया गया। यहीं से वह तीनों के केंद्रित होती थी।

भगवान ब्रह्मा का वरदान प्राप्त करके तारकासुर के तीनों पुत्रों ने तीनों लोगों में अत्याचार करना शुरू कर दिया। इस प्रकार 1000 साल व्यतीत हो गए। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। एक क्षण में तीनों राक्षसों और उनकी मायावी पुरियां को मिटाना बहुत जरूरी था। इसी को ध्यान में रखते हुए त्रिपुर युद्ध की तैयारी शुरू की गई।

इस युद्ध के लिए महादेव शिव के लिए एक रथ तैयार हुआ, जिसमें सूर्य और चंद्रमा रथ के पहिये बने। इंद्र, यम, कुबेर, वरुण, लोकपाल महादेव के रथ के अश्व बने। धनुष पिनाक के रूप में हिमालय और सुमेर पर्वत, उसके डोर के रूप में वासुकी और शेषनाग, बाण में भगवान विष्णु और नोक में अग्नि देव समाए। महादेव ने श्रीगणेश का आव्हान किया। तीनों तारका पुत्रों की पुरियां जब त्रिपुरी में एक सीध में आईं तो भगवान शिव ने पशुपत अस्त्र से एक ही बाण में इनका विध्वंस कर दिया। इस युद्ध के खत्म होने के बाद त्रिपुरी में शैव मत की स्थापना हुई।

यह युद्ध नवंबर, दिसंबर के दौरान हुआ था, जिसके बाद जनवरी में मकर संक्रांति पड़ी। इस मौके पर महादेव को सभी अन्नों को मिलाकर बनाई खिचड़ी भोजन में समर्पित की गई। तभी से मकर संक्रांति पर्व पर खिचड़ी की परंपरा शुरू हुई।
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