कपड़े नहीं उतारे इसलिए उत्पीड़न नहीं माना जाएगा, HC के फैसले पर SUPREME COURT की रोक - NATIONAL NEWS

नई दिल्ली।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच (बॉम्बे हाईकोर्ट) के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि आरोपी ने नाबालिग लड़की के कपड़े नहीं उतारे थे इसलिए इसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा। 

जिला न्यायालय ने सजा सुनाई थी हाईकोर्ट ने दोषमुक्त बताया

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सिंगल बेंच ने मामले के आरोपियों को नोटिस जारी किया है। उनसे दो सप्ताह में इस मामले में उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। 19 जनवरी को यह फैसला सुनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट में यूथ बार एसोसिएशन आफ इंडिया ने याचिका दाखिल कर इस फैसले को चुनौती दी है। भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 363 और 342 के अलावा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 8 के तहत एक स्थानीय अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए एक शख्स की अपील पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया था। सत्र न्यायालय ने उसे तीन साल की सजा सुनाई थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट का वह फैसला जिसके खिलाफ यूथ बार एसोसिएशन ने याचिका लगाई

किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके स्तन को छूना, यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि इस तरह का कृत्य पोक्सो अधिनियम के तहत यौन हमले के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए यौन मंशा से स्किन से स्किन का संपर्क होना जरूरी है। उन्होंने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। जस्टिस गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी।

नाबालिग की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने घर ले गया। हाईकोर्ट ने फैसले में यह दर्ज किया कि सतीश ने घर ले जाने पर नाबालिग लड़की के वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की। हाईकोर्ट ने कहा- चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह भादंसं की धारा 354 के तहत महिला के शील भंग करने का अपराध है। धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम एक वर्ष की कैद है, वहीं पॉक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम तीन वर्ष कारावास है। सत्र अदालत ने पोक्सो कानून और भादंसं की धारा 354 के तहत उसे तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं।

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