COVID-19 दुष्काल: क्या भारत संक्रमण के शीर्ष पर पहुँच गया है ? - Pratidin

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिंता जाहिर की है, ‘दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में भारत, इंडोनेशिया और बांग्लादेश में संक्रमण के लगातार सर्वाधिक मामले सामने आ रहे हैं। पिछले सात दिनों में इस वायरस से जितने लोगों की जान गई है, उनमें से 22% इसी क्षेत्र के हैं। सघन आबादी के बावजूद मृत्यु दर प्रति दस लाख आबादी पर 46 है। जबकि इस क्षेत्र के इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे देश अपने यहां ‘सामुदायिक संक्रमण’ को लंबे समय से स्वीकार कर रहे हैं, जबकि  म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका और थाइलैंड जैसे देशों के समान भारत भी ‘क्लस्टर ऑफ केसेज’ यानी कुछ खास-खास जगहों पर संक्रमण की बात कह रहा है। 

लॉकडाउन की जब घोषणा की गई थी, तब भारत के  प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘महाभारत का युद्ध 18 दिनों में जीता गया था, लेकिन कोरोना वायरस के खिलाफ पूरे देश की यह लड़ाई 21 दिनों तक चलने वाली है।’ उनका अनुमान गलत निकला। अब सवाल उठे रहे है इस युद्ध में हम कितना सफल हो पाए हैं? क्या हमने संक्रमण के शीर्ष-बिंदु को छू लिया है? और संक्रमित मामलों में आखिर कब से कमी आने लगेगी, या संक्रमण की वक्र-रेखा में कब से ढलान दिखेगी? 

आपदा की यह वक्र-रेखा तीन तरह की हैं, जो समय के साथ किसी महामारी की बढ़ती स्थिति को बताती हैं। ‘प्वॉइंट सोर्स आउटब्रेक’ में महामारी का स्रोत एक होता है, जैसे दूषित खाना। इसमें संक्रमण कुछ समय तक ही रहता है। नतीजतन, इसकी वक्र-रेखा में तेजी से वृद्धि होती है, वह शीर्ष पर पहुंचती है और फिर उसमें गिरावट आने लगती है। ‘कंटिन्यूअस कॉमन सोर्स’ महामारी में संक्रमण तेजी से शीर्ष पर पहुंचता है और फिर नीचे की ओर गिरता है, मगर इसमें संक्रमण सिर्फ एक चरण में सिमटकर नहीं रह जाता, बल्कि संक्रमण का स्रोत निरंतर बना रहता है। हां, इसमें बीमारी के कारणों का अंत कर दिया जाए, तो संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से कम होने लगती है। ऐसा आमतौर पर इबोला में दिखता है। मगर ‘प्रोग्रेसिव सोर्स’ महामारी में संक्रमण की शुरुआत एकाध मामलों से होती है, जिसका तेजी से अन्य लोगों में विस्तार होता है। इसमें संक्रमण के कई चरण आते हैं। इस वजह से अधिक से अधिक लोग इसमें संक्रमित होते हैं। यह तब तक बना रहता है, जब तक कि अतिसंवेदनशील लोगों की मौत नहीं हो जाती या फिर बचाव के उपायों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जाता। भारत में कोरोना की ठीक ऐसी ही दशा है। इसमें संक्रमण के बढ़ने-घटने का दौर आता-जाता रहा है और आगे भी रह  सकता है। 

इसी यह सवाल उठता है कि दुनिया में सबसे सख्त लॉकडाउन लगाने के बावजूद आखिर हम संक्रमण को थामने में सफल क्यों नहीं हो सके? दरअसल, लॉकडाउन का मकसद महामारी के शुरुआती चरणों में मौत को रोकना और स्वास्थ्य ढांचे को महामारी के मुकाबले में तैयार करना था। यह तब लागू किया गया, जब संक्रमित मरीजों की संख्या काफी कम थी और मौत न के बराबर। उस वक्त देश भर में ६०६ मामले सामने आए थे, जिनमें से ५५३  एक्टिव केस थे और जान गंवाने वाले मरीजों की संख्या १० थी। मगर लॉकडाउन में ज्यादा जोर कानून-व्यवस्था पर रहा और जोखिम कम करने व तैयारी पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। आलम यह है कि हम आज भी कोविड-१९  से बचने के लिए निगरानी और बचाव के उपायों को पूरी तरह से नहीं अपना रहे हैं, जो खासतौर से इसलिए जरूरी है, क्योंकि अभी तक हमने इसके खिलाफ कोई दवा या वैक्सीन तैयार नहीं की है।

सरकारों की इसलिए आलोचना की जाती हो कि वे ‘देर से और नाकाफी’ कदम उठाती हैं, लेकिन भारत में लॉकडाउन संभवत: ‘बहुत जल्दी और अत्यधिक सख्ती’ से उठाया गया कदम माना जाएगा।आज भी यह सवाल खड़ा है कि क्या हमारी स्वास्थ्य-सेवाएं प्रतिदिन एक लाख नए संक्रमित मरीजों को संभाल पाने के लिए तैयार हैं? यह सच्चाई है कि ऑक्सीजन-आपूर्ति में आ रही कमी अब सुर्खियां बनने लगी हैं। बेशक पिछले छह महीने में ऑक्सीजन-उत्पादन में लगभग चौगुना वृद्धि हुई है और ७५०  टन प्रतिदिन से बढ़कर २७०० टन रोजाना इसकी आपूर्ति हो रही है। फिर भी, मध्य प्रदेश, गुजरात और मुंबई की जमीनी हकीकत बताती है कि कुछ अस्पतालों में मरीजों की ऑक्सीजन-आपूर्ति कम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, ताकि ऑक्सीजन बचाकर रखी जा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि कोरोना के १४ प्रतिशत संक्रमित मामले गंभीर होते हैं और उन्हें अस्पताल की जरूरत पड़ती है, जबकि पांच प्रतिशत मरीज बहुत गंभीर होते हैं और उन्हें आईसीयू में रखना पड़ सकता है। मौत चार प्रतिशत मरीजों की होती है। फिलहाल भारत में मृत्यु-दर दो फीसदी के नीचे है, जो तुलनात्मक रूप से बेहतर माना जाएगा। मगर राज्यवार बात करें, तो पंजाब और महाराष्ट्र में यह चार प्रतिशत के करीब है।, भारत में मृत्यु-दर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से परे जाकर देखने की जरूरत है। और चूंकि यहां संक्रमण ग्रामीण इलाकों में फैलने लगा है, इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ता भार साफ-साफ महसूस किया जा सकता है।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !