हलषष्ठी व्रत की तारीख एवं मुहूर्त समय, संतान की रक्षा के लिए माताएं पूजा करतीं हैं / HARCHAT DATE, MUHURAT and KATHA

साल 2020 में बलराम जी का जन्मोत्सव एवं हलषष्ठी व्रत 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति अथवा संतान की रक्षा के लिए व्रत रखती हैं। हलषष्ठी व्रत का पर्व 9 अगस्त को सुबह 4 बजकर 18 मिनट से प्रारंभ होकर 10 अगस्त की सुबह 6 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।

भगवान विष्णु के शेषनाग का अवतार हैं बलराम

9 अगस्त को कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु के अधिकांश अवतारों में शेषनाग किसी ना किसी रुप में उनके साथ हमेशा अवतरित हुए हैं। हिंदू धर्म शास्त्रानुसार भगवान बलराम का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। 

इसे चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ, रंधन षष्ठी भी कहते हैं

हल धारण करने के कारण भी बलरामजी को हलधर नाम से भी जाना जाता है। भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान हैं। यह पर्व श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद विभिन्न नामों के साथ इसे चंद्रषष्ठी बलदेव छठ रंधन षष्ठी कहते हैं। 

हलषष्ठी की व्रतकथा 

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।
यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।
वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हलषष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।
उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।
वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।
बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया। 
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