संभलिये, दुष्काल की परिणति अपराध वृद्धि हो सकती है / EDITORIAL by Rakesh Dubey

इस दुष्काल में कई प्रकार के सर्वे आ रहे हैं। सबको विश्वसनीय नहीं माना जा सकता और न ही सबको अविश्वसनीय लेकिन जिन सर्वेक्षणों के साथ कोई सरकारी एजेंसी या कोई अन्य साखपूर्ण संस्था जुडी हो, उसके अनुमान को नकारा नहीं जा सकता। देश के जाने-मने सामाजिक शोध संस्थान ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा है कि “कोरोना संक्रमण से उपजे संकट ने जिस तरह देश की आर्थिकी व सामाजिक ताने-बाने को झंझोड़ा है, उसके नकारात्मक प्रभावों का सामने आना लाजिमी है। आज समाज एक अप्रत्याशित भय व असुरक्षा की मनोदशा में पहुंचा है। एक अलग तरह की हताशा व कुंठा का भाव लोगों में घर कर गया है। इसके परिणाम स्वरूप अपराध में वृद्धि हो सकती है।“

वैसे यह साफ़ नजर आ रहा है कि तालाबंदी के पहले दौर ही ने करोड़ों लोगों के रोजगार छीने, ऐसे लोग अभी तक सामान्य स्थिति हासिल नहीं कर पाये। ऐसे में समाज में अपराधों के बढ़ने के लिए उर्वरा भूमि तैयार हुई। अपराधियों को समाज में जो भी सॉफ्ट टारगेट लगता है, उसे निशाना बनाते हैं। ऐसे में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या में वृद्धि चिंता की बात है। यह वास्तविक भी है और वर्चुअल भी। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए समय रहते कारगर पहल की जरूरत है। चिंता की बात तो यह भी है कि जहां तालाबंदी के दौरान वैवाहिक रिश्तों में हिंसक टकराव की खबरें आती रही हैं, वहीं परिवार के सदस्यों से जुड़े यौन अपराधों का बढ़ना भी सामने आया है। यह एक कटु सत्य है कि कोरोना संकट में जिन उद्योगों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है, उनमें टूरिज्म उद्योग सबसे ऊपर है।

टूरिस्ट हब के रूप में पहचान रखने वाले स्थानों में पिछले कुछ समय से महिलाओं के साथ यौन हिंसा, छेड़छाड़ और अपहरण की घटनाओं में वृद्धि चौंकाने वाली है। इससे निपटने में चूक के चलते पुलिस-प्रशासन की क्षमताओं पर सवाल खड़े करती हैं। यूं तो महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं होने का दावा किया जाता रहा है, जिसमें सक्रिय हेल्पलाइन नंबर, ऑनलाइन शिकायत पोर्टल और सामुदायिक पुलिस की योजनाएं भी शामिल हैं, लेकिन कोरोना दुष्काल में ये उतनी प्रभावी नहीं रही जितनी कही जाती थी। इस दौरान कुछ कार्यालय बंद रहे और कुछ कम लोगों के साथ काम करते  रहे हैं, जिससे शिकायतें भी कम दर्ज हुई और उनका निपटारा भी कम ही हुआ है।

यह देखने में आया है कि महिलाओं द्वारा शिकायत दर्ज न करा पाने के और भी कई कारण हैं। दूर-दराज के इलाकों में लोकलाज के भय से अनेक बार शिकायतकर्ता सामने नहीं आती। दूसरी ओर ऑनलाइन शिकायत प्रणाली तक अधिकांश प्रभावितों की पहुंच नहीं है। प्रशासन की प्राथमिकता कोविड संकट से निपटने के होने के कारण भी अन्य मामलों की अनदेखी हो भी है।

अभी  सामाजिक गतिशीलता के अभाव में कई तरह के अपराध बढ़ने की संभावना ज्यादा है। इन अपराधों के अलावा समाज में साइबर अपराधों और सोशल मीडिया के दुरुपयोग की खबरें भी हैं। फर्जी फेसबुक अकाउंट बनाकर भयादोहन करने व युवतियों  की अश्लील तस्वीरें अपलोड करने के मामले भी प्रकाश में आये हैं। सूचना प्रौद्योगिकी का जिस स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है, उससे मुकाबले के लिए हमारी पुलिस चुस्त-दुरुस्त नहीं बन पायी है। साइबर  अपराधों से निपटने के लिए क्या तौर-तरीके अपनाये जायें, उसको लेकर पुलिस भी दुविधा में रहती है। वहीं पुलिस की दलील होती है कि अपराधों की संख्या में इसलिये वृद्धि नजर आती है क्योंकि अदालतों ने अपराधों की परिभाषा का दायरा बढ़ाया है। इसके बावजूद जमीनी हकीकत को देखते हुए सजगता और सतर्कता की जरूरत महसूस तो की ही जा रही है। महिलाओं को किसी भी तरह के उत्पीड़न के खिलाफ आगे आकर शिकायत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए महिला थाने के अलावा सामान्य पुलिस थाने में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या को बढ़ाना चाहिए। निस्संदेह कोरोना संकटकाल एक चुनौतीभरा समय है। देश में स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और कोचिंग संस्थान बंद हैं, व्यापारिक व औद्योगिक गतिविधियां अभी गति नहीं पकड़ पायी हैं, इनसे जुड़े करोड़ों लोग रोजगार से वंचित हैं। आर्थिक संकट के चलते कुछ के अपराध की ओर उन्मुख होने की आशंका उत्पन्न हो सकती है। उसके लिए उपाय करने और सजग-सतर्क रहने की जरूरत है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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