IPC की धारा 292- समाज में अश्लीलता फैलाने वालों को रोकने IPC की कौन सी धारा के तहत FIR दर्ज होगी, पढ़िए

अक्सर हम देखते है कि बहुत से बुकस्टोर पर कुछ अश्लीलता फैलाने वाली पुस्तकें रखी रहती है। इससे हमारे भारतीय समाज में गलत भावना उत्पन्न होती है, जिससे युवा पीढ़ी दिशाहीन हो सकती है या कोई अश्लील वीडियो या फोटा सार्वजनिक स्थान पर लगाएगा। जिससे लोगों की भावना या उनके चरित्र पर गलत असर होने की संभावना हो या हो रही हो। यह सब कार्य एक अपराध की श्रेणी में आते हैं।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 292 की परिभाषा:-

अगर कोई व्यक्ति द्वारा निम्न कार्य किया जाएगा, वो व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा:-
1.कोई भी अश्लील वस्तु जैसे:- पुस्तक, कागज, रेखाचित्र, रंगचित्र, आकृति, मूर्ति आदि को बेचेगा, किराए पर, देगा वितरण करेगा, लोक प्रदर्शित करेगा, उत्पादित करेगा, या अपने स्वयं के कब्जे में रखेगा।
2. अश्लीलता वाले आयात - निर्यात के व्यापार में भाग लेगा या अश्लील व्यापार करेगा।
3.अश्लीलता वाले विज्ञापन को जानबूझकर पोस्ट करेगा या सार्वजनिक स्थान पर चिपकाना आदि।
4.कोई अश्लीलता वाली माइक्रो वीडियो बनायएगा या फ़िल्म बनायएगा जिससे पूरे समाज में गलत असर पड़ रहा हो। जनसाधारण द्वारा इसका विरोध किया गया हो।
नोट:- कोई भी कार्य या वस्तु अश्लील है या नहीं इसका निर्णय लेने का अधिकार इस धारा में न्यायालय को ही है।

वह कार्य जो अश्लीलता के अपराध के अंतर्गत नहीं आते:-

1.किसी प्राचीन संस्मारक या पुरातात्विक अवशेष पर रेखांकित, सहित्य कलाकृति, रंगचित्र, मूर्ति,कोई भी कलाकृति आदि अश्लीलता का अपराध नहीं है।
2. एक रचना जिसमें विवाहितों को अपने यौन संबंधों को विनियमित करने की गम्भीर शिक्षा दी गई हो, चाहे उसमे लैगिक संभोग की क्रिया का विस्तार का वर्णन ही क्यों न हो वह कार्य इस धारा का अपराध नहीं माना जायेगा।

आईपीसी की धारा 292 के तहत दण्ड का प्रावधान:-

यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते है।यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध है। इनकी सुनवाई किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती हैं।
सजा- इस अपराध की सजा को दो भागों में बांटा गया है:-
1.प्रथम बार अपराध करने पर 3 वर्ष की कारावास और एक हजार रुपए जुर्माना।
2.द्वितीय या उसके बाद दोषी पाए जाने पर 7 वर्ष की कारावास और 5000 रुपये जुर्माना।

उधारानुसार वाद:- रंजीत उदासी बनाम महाराष्ट्र राज्य:- इस मामले में आरोपी बम्बई की एक पुस्तकों की दुकान का भागीदार था। इस दुकान में 'लेडी चटर्लीज लवर, नामक की प्रतियां बिक्री के लिए रखी थी जिससे आधुनिक युग की लैगिक समागम से संबंधित हताशा का वर्णन किया गया था। इस कारण आरोपी को न्यायालय द्वारा 292 का दोषी मना गया।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद (पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665

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