पोखरण परमाणु परीक्षण 1998 से जुड़ी सबसे खास बातें / GK IN HINDI

Bhopal Samachar
दिनांक 11 मई को भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया जाता है। यह वही तारीख है जब भारत ने अमेरिका के 4 जासूसी सेटेलाइट को चकमा देते हुए राजस्थान के पोकरण में परमाणु परीक्षण किया और सारी दुनिया को बता दिया कि भारत न केवल परमाणु शक्ति संपन्न देश है बल्कि अमेरिका की आंख में धूल झोंकने की चतुराई रखने वाला देश भी है। भारत के इतिहास में इस घटनाक्रम को एक बहुत बड़ी सफलता के रूप में दर्ज किया गया है। आइए जानते हैं पोखरण परमाणु परीक्षण 1998 से जुड़ी सबसे खास बातें।

अटल बिहारी वाजपेयी को परमाणु परीक्षण के बारे में किसने बताया


बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हरेंद्र प्रताप पांडे्य बताते हैं कि जब पहली बार श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तब शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित निवर्तमान प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने हाथ से लिखी एक पर्ची वाजपेयी को थमाते हुए कहा कि इसे अकेले में पढ़िएगा। उसमें लिखा था, ‘N' पर कलाम से जल्द बात करें।’ अगले दिन वाजपेयी और कलाम की मुलाकात हुई। N का मतलब न्यूक्लियर यानी परमाणु परीक्षण से था। 

क्या कांग्रेस पार्टी दूसरा परमाणु परीक्षण करना चाहती थी 


श्री ए पी जे अब्दुल कलाम ने प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई को परमाणु परीक्षण के बारे में विस्तार से बताया और यह भी बताया कि वह एवं उनके वैज्ञानिक साथी कितने लंबे समय से इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव जाते थे कि भारत दूसरा परमाणु परीक्षण करें परंतु कांग्रेस पार्टी इसके लिए सहमत नहीं थी। इसीलिए उन्होंने हाथ से लिखी हुई वह पर्ची श्री अटल बिहारी वाजपेई को थमाई। वाजपेयी ने कलाम को हरी झंडी तो दिखा दी, लेकिन मात्र 13 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई। 

अमेरिका को कैसे पता चला भारत परमाणु परीक्षण करने वाला है


उन दिनों समाचार पत्रों में छपा की भारत में अमेरिकी राजदूत को इसकी भनक लग गई कि भारत परमाणु परीक्षण चाहता है। उन्होंने इस पर अमेरिकी आपत्ति से प्रधानमंत्री को अवगत कराया। हालांकि यह जांच का विषय है कि अमेरिकी राजदूत को इसकी भनक कहां से लगी? इस सवाल का जवाब सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं किया गया परंतु कहा जाता है कि पीवी नरसिम्हा राव सरकार के समय सरकार के कामकाज में दखल देने वाले कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने अमेरिका की गुड बुक में अपना नाम बनाए रखने के लिए यह सूचना अमेरिका के राजदूत को दी थी।

एच डी देवगौड़ा ने परमिशन दी तो उनकी सरकार भी गिर गई


बाद में प्रधानमंत्री बने एचडी देवगौड़ा ने भी वैज्ञानिकों की इसकी अनुमति दी, लेकिन उनकी सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई। एच डी देवगौड़ा की सरकार गिराने में सबसे बड़ा हाथ कांग्रेस का माना जाता है। इधर एचडी देवगौड़ा ने परमाणु परीक्षण की अनुमति दी और उधर कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था। हालांकि इसके कारण सरकारी दस्तावेजों में कुछ और दर्ज किए गए।

एपीजे अब्दुल कलाम ने केंद्रीय मंत्री का पद त्याग कर परमाणु परीक्षण को चुना


फिर 1998 में हुए चुनाव के बाद वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। 15 मार्च, 1998 की मध्यरात्रि को वाजपेयी ने कलाम को फोन कर यह सूचना दी कि वह उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने जा रहे हैं। लिहाजा वह सुबह नौ बजे आकर उनसे मिलें। कलाम ने अपने मित्रों से रायशुमारी कर फैसला किया कि वह सरकार में शामिल नहीं होंगे और इसके बजाय परमाणु परीक्षण की कवायद आगे बढ़ाएंगे।

दबाव डालने अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आए

वाजपेयी ने उन्हें इसकी अनुमति देने के साथ ही शुभकामनाएं भी दीं। तब तक अमेरिका मान चुका था कि भारत ने परमाणु बम बना लिया है और वह उसका परीक्षण कभी भी कर सकता है। 14 अप्रैल, 1998 को नई दिल्ली दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने का दबाव डाला। तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि भारत अगले महीने ही परमाणु परीक्षण करने जा रहा है। 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन क्यों किया गया परमाणु परीक्षण


11 मई यानी परमाणु परीक्षण का दिन आया। चूंकि उस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी इसलिए वामपंथी इस पर सवाल उठाने लगे कि अहिंसा की प्रतिमूर्ति गौतम बुद्ध से जुड़े दिन को ही परमाणु परीक्षण के लिए क्यों चुना गया? सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर पर बताया गया कि राष्ट्रपति श्री केआर नारायणन के विदेश दौरे से लौटने की प्रतीक्षा हो रही थी। वह 10 मई को स्वदेश लौटे। उनकी वापसी का इंतजार इसलिए किया गया ताकि परमाणु परीक्षण पर दूसरे देशों की प्रतिक्रिया के दौर में महामहिम स्वदेश में ही रहें। इतिहासकारों का मानना है कि पहला परीक्षण जब किया गया था तो उस ऑपरेशन का नाम था 'स्माइलिंग बुद्धा' यानी बुद्ध मुस्कुराए। दूसरा परीक्षण करके अटल बिहारी वाजपेई ने बताया कि बुद्ध दोबारा मुस्कुराए।

अमेरिका की 4 जासूसी उपग्रह फेल हो गए

पोखरण परीक्षण के बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों ने गुस्से में भारत की आर्थिक नाकेबंदी की। वे इसलिए और नाराज थे, क्योंकि भारत ने उनके विकसित सूचना तंत्र को नाकाम कर अपना सफल परीक्षण कर लिया था। उस समय अमेरिका के चार जासूसी उपग्रह 24 घंटे पूरी दूनिया की निगरानी करते थे जिन पर उस समय अमेरिका 27 अरब डॉलर प्रति वर्ष खर्च करता था। अमेरिका के जासूसी उपग्रह प्रत्येक तीन घंटे पर भारत के ऊपर से गुजरते थे। ऐसे में योजना बनाई गई कि जब वे पोखरण के ऊपर से गुजरने वाले हों तब परीक्षण स्थल पर धुआं कर दिया जाए ताकि अमेरिका को लगे कि लोग खाना पका रहे हैं। 

मुंबई से पोखरण तक कैसे पहुंचा परमाणु बम

परमाणु बम को मुंबई से जैसलमेर और फिर पोखरण तक पहुंचाना एक कठिन कार्य था। मुंबई पूरी रात जगी रहती है। सिर्फ रात में दो-तीन घंटे ही ही उसकी रफ्तार कुछ सुस्त पड़ती है। इसी दौरान भाभा आणविक शोध केंद्र से बिना किसी खास तामझाम के उसे हवाई अड्डे तक पहुंचाया गया। 

मिशन के दौरान वैज्ञानिकों की निजी जिंदगी कैसी रही

भाभा आणविक शोध केंद्र के तकनीकी निदेशक बीबी कुलकर्णी ने अपना नाम बदलकर विश्वनाथ कर लिया था। पोखरण जाते समय पत्नी से उन्होंने कहा था कि मैं एक सेमिनार में जा रहा हूं और मुझे 20 दिन तक फोन मत करना। इसी केंद्र के निदेशक अनिल काकोडकर के पिता का 10 मई को निधन हो गया था, लेकिन वह दाह संस्कार में शामिल होने के बाद बिना श्राद्धकर्म के ही पोखरण रवाना हो गए। 

क्या भारत के रक्षा मंत्री को परमाणु परीक्षण के बारे में पता था

कहा जाता है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने जनरल भागवत से पूछा था कि आपने हमें पहले क्यों नहीं बताया? क्या आपको मेरी देशभक्ति पर संदेह था? इस पर जनरल भागवत ने कहा था कि सर आपकी देशभक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता, लेकिन हमें पीएमओ ने हिदायत दी थी कि इसकी चर्चा किसी से भी नहीं करनी है।

पोखरण परमाणु परीक्षण द्वितीय से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

भारत ने 11 मई के बाद 13 मई को भी परीक्षण किया। परीक्षण के लिए पहले सुबह नौ बजे का समय तय था, परंतु हवा का रुख पूर्व से पश्चिम की ओर होने के कारण परीक्षण को रोका गया। इस बीच अचानक हवा का रुख पश्चिम से पूर्व की तरफ हुआ और तीन बजकर 45 मिनट पर सफलतापूर्वक परीक्षण संपन्न होने के साथ ही भारत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हो गया। 
उस दौरान खुदाई के समय गलती से बुलडोजर एक बोल्डर से टकरा गया। बोल्डर लुढ़कते हुए सॉफ्ट की तरफ बढ़ा। अगर वह नहीं रुकता तो काफी नुकसान होता, लेकिन वह एक जगह पर जाकर अपने आप रुक गया। 
आधुनिक सूचना और खुफिया तंत्र में अपने को सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करने वाले पश्चिमी राष्ट्र 1998 में भारत की परमाणु परीक्षण योजना को भांपने में पूरी तरह नाकाम रहे। 
11 मई 1998 का पोखरण परीक्षण सही मायनों में एक सफल सर्जिकल स्ट्राइक था। 
शास्त्री जी ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था और वाजपेयी ने उसमें जय विज्ञान जोड़कर उसे एक नया क्षितिज दिया।

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