महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं के साथ भेदभाव की कई कहानियां सामने आती है। इन दिनों भारत में समान अधिकार के लिए आजादी का कथित आंदोलन चल रहा है। इस माहौल के बीच हम आपको बताने जा रहे हैं कि सदियों पहले भारत के राजस्थान में महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा स्वतंत्रता दी गई थी। जिस देश के कुछ क्षेत्रों या जातियों में महिलाओं को पति के पैर की जूती समझा जाता है उसी देश में विवाहित और विधवा महिलाओं को पति को छोड़कर अपने वेलेंटाइन के साथ लिव इन रिलेशन में रहने की आजादी दी गई थी। राजस्थान में इसे "नाता प्रथा" कहा जाता है और यह भी जारी है।
राजस्थान की नाता प्रथा क्या है, नाता प्रथा में क्या होता है
कहा जाता है कि नाता प्रथा को विधवाओं व परित्यक्ता स्त्रियों को सामाजिक जीवन जीने के लिए मान्यता देने के लिए बनाया गया था, जिसे आज भी माना जाता है। नाता प्रथा के अनुसार कोई भी विवाहित पुरुष या महिला अगर किसी दूसरे पुरुष या महिला के साथ अपनी मर्जी से रहना चाहते हैं, तो वह ऐसा कर सकते हैं। नाता प्रथा का मूल उद्देश्य विधवा महिलाओं को दूसरा जीवन साथी चुनने की आजादी देना था। बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पहले बनी इस परंपरा में समय के साथ एक संशोधन हुआ और विवाहित महिलाओं को भी 'नाता' करने का अधिकार दे दिया गया।
नाता प्रथा की सामाजिक मान्यता एवं रीति रिवाज
जब कोई पुरुष और महिला अपने वैवाहिक बंधन को तोड़ कर लिव इन रिलेशन में रहने के लिए फैसला कर लेते हैं तो नाता प्रथा की दूसरी प्रक्रिया शुरू होती है। पाँच गाँव के पंचों द्वारा पहले विवाह के दौरान जन्में बच्चे या फिर अन्य मुद्दों पर चर्चा कर निपटारा किया जाता है ताकि बाद में दोनों के जीवन में इन बातों से कोई मतभेद पैदा न हों। एक प्रकार से दोनों के बीच सामाजिक रूप से तलाक करवा दिया जाता है। समय के साथ इस प्रक्रिया में थोड़ी विकृति आई है। कुछ जातियों में यदि महिला नाता करती है तो उसे अपने पति को मांगी गई रकम चुकानी पड़ती है।
नाता प्रथा किन-किन जातियों में स्वीकार रहे
राजस्थान में इस प्रथा का चलन ब्राह्मण, राजपूत और जैन को छोड़कर बाकी सभी जातियों में है। ख़ासकर गुर्जरों में तो यह परंपरा काफ़ी लोकप्रिय है। इस प्रथा की वजह से वहाँ की महिलाओं और पुरुषों को तलाक के क़ानूनी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है और उनको अपनी पसंद का जीवन साथी भी मिल जाता है।
नाता प्रथा के दुष्परिणाम
समय के साथ नाता प्रथा में कई परिवर्तन हुए हैं।
यदि पुरुष नाता करता है तो महिला को मायके वापस भेज दिया जाता है।
यदि महिला नाता करती है तो उसे अपने पति को एक निर्धारित रकम चुकानी पड़ती है।
कुछ जातियों में लोग इस प्रथा के बहाने पत्नियों की अदला बदली कर लेते है। हाई प्रोफाइल सोसाइटी में इसे वाइफ स्वैपिंग कहते हैं।
सबसे बड़ी विकृति यह है कि नाता के नाम पर पुरुष अपनी पत्नी को किसी अन्य पुरुष के साथ भेज देता है और इसके बदले पैसा कमाता है। भारतीय कानून के अनुसार यह वेश्यावृत्ति है।
क्योंकि सामाजिक पंचायतों को कोई कानूनी अधिकार नहीं है और लोग जागरूक होते जा रहे हैं इसलिए पुरुष नाता प्रथा के नाम पर महिलाओं का शोषण करने लगे हैं।
नाता प्रथा को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है इसलिए इसके खिलाफ कोई केस भी फाइल नहीं किया जाता।