भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति अब अनिश्चितता की और चल पड़ी है। न कांग्रेस और न भाजपा दोनों के प्रदेश नेतृत्व ऐसा कुछ कहने की स्थिति में नहीं है जिसे निश्चित कहा जा सके। दोनों की चिंता एक समान है, राज्यसभा चुनाव में क्रास वोटिंग न हो जाये। कमलनाथ इस सियासी संकट को टालने के लिए जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार कर सकते हैं। सभी मंत्रियों को भोपाल में रहने के निर्देश दिए गए हैं। दोनों प्रमुख दलों में सेंधमारी का यह संकट अभी टला नहीं है। भाजपा भी राज्यसभा चुनाव में अपने विधायकों में सेंधमारी को लेकर आशंकित है। क्योंकि राज्यसभा के लिए प्रदेश की 3 में से एक सीट का फैसला इसी ‘सेंधमारी’ अर्थात क्रॉस वोटिंग पर निर्भर है। राज्यसभा के चुनाव में विधायकों की ‘खरीद फरोख्त’ की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। माना जा रहा है कि, भाजपा नेताओं पर पुलिसिया दबाव, ठेकों पर छापे, भवनों की तोड़फोड़ इसी कवायद के नतीजे हैं। कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों के घट रहे राजनीतिक घटनाक्रम राज्यसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा है।
कांग्रेस ने भाजपा पर भले ही मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया हो, लेकिन यह बातें सामने आ रही हैं कि यह सियासी ड्रामा राज्यसभा चुनाव के लिए किया गया है। कमलनाथ सरकार को फिलहाल कोई संकट नहीं दिख रहा है, क्योंकि भाजपा नेतृत्व अब भी शिवराज सिंह चौहान को फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच तालमेल भी चर्चा का विषय है। हालांकि प्रदेश भाजपा का प्रदेश नेतृत्व, पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व को बता चुका है कि कमलनाथ सरकार के 5 साल रहने पर पार्टी को सियासी तौर पर भारी नुकसान होने का खतरा है।
कांग्रेस के जो विधायक मंत्रिमंडल में शामिल होने से रह गए थे, वे निगमों में पद पाने की आस लगाए थे। उन्हें अब भी सरकार में पद नहीं मिल पाए हैं, वे राज्यसभा के चुनाव में अपने वोट की ‘कीमत’ वसूलना चाहते हैं। इसलिए पार्टी नेतृत्व खासतौर पर मुख्यमंत्री कमलनाथ पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत यह सब किया गया। कांग्रेस विधायकों के इस असंतोष को भाजपा भी हवा देने से नहीं चूक रही है, क्योंकि राज्यसभा के लिए भाजपा भी सेंधमारी से ही एक और सीट जीत पाएगी।
प्रदेश से राज्यसभा की कुल 11 सीटों में से 3 खाली हो रही हैं। विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के सदस्यों के मौजूदा संख्या बल के आधार पर इन 3 सीटों में से कांग्रेस और भाजपा के खाते में एक-एक सीट जाना तय है। तीसरी सीट पाने के लिए कांग्रेस को 2 और भाजपा को कम से कम 5 और सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी। 230 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को जोड़तोड़ से बहुमत हासिल है। प्रदेश सरकार 4 निर्दलीय विधायक, 2 बसपा और 1 सपा विधायक के समर्थन से चल रही है। 2 सीटें विधायकों के निधन के बाद खाली हैं। मौजूदा 228 विधायकों में से कांग्रेस के 114 विधायक हैं। जबकि भाजपा के पास 107 विधायक हैं। इसलिए कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के विधायकों में सेंधमारी के प्रयासों में जुटे हैं। कांग्रेस विधायकों के असंतोष के चलते मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए अब तीसरी सीट जिताना एक बड़ी चुनौती बन गई है| कांग्रेस के विधायकों के असंतोष का लाभ उठाकर भाजपा एक और सीट पाने की जुगत में है।
इस घमासान से कांग्रेस पार्टी के लिए अपने असंतुष्ट विधायकों को मनाने के साथ ही राज्यसभा के लिए दो नेताओं के नाम तय कर पाना ही टेढ़ी खीर साबित होने वाला है। मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा को राज्यसभा में भेजने का प्रस्ताव पहले ही भेज चुके हैं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रियंका को राज्यसभा में भेजने को लेकर अभी फैसला नहीं किया है। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि प्रियंका छत्तीसगढ़ से राज्यसभा जाने को इच्छुक हैं। इसलिए राज्यसभा से रिटायर होने जा रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह दोबारा उच्च सदन के लिए प्रयासरत हैं। उनके साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि नेता कोशिश में जुटे हैं। दिग्विजय सिंह पहली सीट की बजाय दूसरी सीट से लड़ने के ज्यादा इच्छुक हैं। उन्हें उम्मीद है कि कमलनाथ के साथ मिलकर वे दूसरी सीट जीतने का ‘करिश्मा’ कर लेंगे। इससे कांग्रेस हाईकमान में दोनों की हनक भी बढ़ जाएगी। अब यदि कांग्रेस दूसरी सीट भी जीत लेती है तो संदेश जाएगा कि असंतुष्ट विधायकों को मनाने में कमलनाथ व दिग्विजय सिंह की जोड़ी कामयाब रही। साथ ही यह देखना जरूरी है कि इन असंतुष्ट विधायकों को क्या ‘ईनाम’ मिलता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।