नई दिल्ली। कालाधन और उसकी वापिसी की कहानियाँ अपनी जगह है, ख्वाब जैसे है पर हकीकत दूसरी है | भारत से कालेधन उत्सर्जन और जावक अभी भी तेज है जिस पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है | भारत दुनिया का वो तीसरा बड़ा देश है जहाँ से कालाधन लगातार विदेश जा रहा है| सरकार के जुमले हवा में ही हैं| गैरकानूनी तरीके से बिना समुचित कर चुकाये होनेवाले लेन-देन पर नजर रखनेवाली संस्था ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि 2017 में भारत से 83.5 अरब डॉलर रुपये व्यापारिक भुगतान के तरीकों के इस्तेमाल से बाहर भेजे गये हैं| इस संस्था ने 135 देशों का आकलन प्रस्तुत किया है और चीन व मेक्सिको के बाद कालाधन की निकासी के मामले में भारत तीसरे पायदान पर है|
महत्वपूर्ण सवाल यह है किएक तरफ भारत समेत विभिन्न उभरती अर्थव्यवस्थाएं हिचकोले खा रही हैं और उनकी रफ्तार कम हो रही है, वहीं दूसरी तरफ इन देशों से बड़ी मात्रा में धन अवैध रूप से विदेशों में कैसे जा रहा है?
चुनाव और चुनाव से इतर कई वर्षों से काले धन की समस्या हमारे देश में बहस का मुख्य मुद्दा रही है तथा सरकारों व अदालतों के स्तर पर इसे रोकने के कई उपाय भी किये गये हैं, लेकिन इस रिपोर्ट से जाहिर होता है कि ये उपाय समुचित रूप से कारगर साबित नहीं हो रहे हैं| चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि 2017 में 83.5 अरब डॉलर और 2008 से 2017 के बीच औसतन हर साल 77.9 अरब डॉलर की राशि देश के बाहर आयात-निर्यात की गलत या फर्जी रसीदों के जरिये गयी है| इस कालखंड में ही काले धन की वापिसी को लेकर जोरदार बातें और दावे भी हुए, लेकिन नतीजा यह हुआ कि “मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों हमने दवा की |”
हाल ही में आई इस रिपोर्ट का एक आधार कुल व्यापार और उस पर लगाये गये करों में मेल नहीं होना है| इसका मतलब यह है कि आयात व निर्यात के देशों की सरकारें ठीक से कराधान नहीं कर पाई है और इस तरह से उनके राजस्व को अरबों डॉलर का नुकसान हो गया है | वर्ष 2008 और 2017 के बीच हर साल इस नुकसान के मामले में भारत शीर्ष देशों में रहा है|
देखा जाये तो फर्जी रसीद का मामला बेहद गंभीर है| इसमें आयातक या निर्यातक जान-बूझकर वस्तुओं की मात्रा या संख्या और उनके दाम गलत बताते हैं तथा व्यापारिक रास्ते का इस्तेमाल कर धन की हेराफेरी करते हैं| सबसे अधिक गड़बड़ी इलेक्ट्रिकल मशीनरी, खनिज ईंधन और मशीनों की खरीद में की जाती है| उल्लेखनीय है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इनकी खरीद अधिक होती है| सरकार न जाने क्यों ध्यान नहीं रखती जबकि सब जानते हैं कि यह काले धन की हेराफेरी का एक बड़ा रास्ता है|
ये तथ्य भी सर्वज्ञात है कि हवाला, इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण और तस्करी से भी धन विदेशों में भेजा जाता है| वर्ष 2015 में बने कालाधन कानून तथा बाद के अनेक प्रयासों का एक संतोषजनक परिणाम यह रहा है कि भारत भ्रष्टाचार सर्वे, 2019 में भ्रष्टाचार में 10 प्रतिशत की गिरावट आयी है| सरकार का दावा है कि आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य विभाग भी देश के भीतर और बाहर की अघोषित संपत्तियों व निवेश पर लगातार नजर बनाये हुए हैं तथा कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है| सरकारी तौर पर भले ही संतोष व्यक्त किया जाये हकीकत में इसमें आम आदमी परेशान हुआ और बड़े खिलाडी अब भी मौज कर रहे हैं |
वर्तमान में सबसे अधिक जरूरी है कालाधन पैदा होने पर अंकुश लगाना. नियमों को सख्त बनाने के साथ नेताओं, अधिकारियों और कारोबारियों के भ्रष्ट गठजोड़ को ध्वस्त करना होगा| यह ध्यान रहना चाहिए कि यह मसला देश के बाहर से भी जुड़ा है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस प्रयासों की जरूरत है| क्योंकि भ्रष्टाचारी हर नियमन के बाद अवैध लेन-देन का नया तरीका निकाल लेते हैं| जैसे इन दिनों निकाला हुआ है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।