श्रीमान मैं आपके माध्यम से बताना चाहता हूं कि शिक्षा विभाग ने बच्चों का रिजल्ट सुधारने के नाम पर शिक्षकों के साथ अमानवीयता की सारी हदें पार कर दी हैं। वास्तव में भोपाल बैठे और जिलों में पदस्थ अधिकारियों का बच्चों के रिजल्ट सुधारने को लेकर कोई सरोकार नहीं हैं। हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी विद्यालयों का रिजल्ट प्राइवेट स्कूलों से हमेशा से बेहतर रहा है और ये रिजल्ट इन लाल फीता शाही अधिकारियों के विचित्र और समझ से रहित आदेशों का परिणाम नहीं था। इन अधिकारियों को केवल एसी में बैठकर बतौले बाज़ी करना आता है और ये अपना अधिकारिपन बताने के लिए बेतुके आदेश निकालने में लगे रहते हैं।
शिक्षा विभाग ने नया आदेश निकाला गया है कि हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल रविवार, और छुट्टी के दिनों में भी खोले जाएंगे तथा वो भी सुबह 8.30 से शाम के 5.30 तक। सुबह से शाम तक कभी भी संकुल प्राचार्य और अन्य अधिकारी वीडियो कॉलिंग कर के शिक्षकों के जांच करेंगे। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को कोई अवकाश नही मिलेगा केवल जिला चिकित्सालय के बोर्ड के मेडिकल को छोड़ कर अर्थात अब दूर दराज में पदस्थ शिक्षक सुबह 7 बजे अपने घर से निकलेंगे और शाम को 7 बजे अपने घर लौटेंगे। क्या ये शिक्षकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है। उनका भी शरीर और दिमाग थकता है उसे भी भूख लगती है, उसके भी बीबी बच्चे और बूढ़े मा बाप हैं। क्या वह उसकी 13 सीएल और 3 ओएल भी वो जरूरत के समय नहीं लेगा।
क्या दस्त लगने पर वो बोर्ड से मेडिकल बनवाएगा। ऐसे बेतुके आदेशों को पढ़कर हसी और आक्रोश दोनों का अहसास एक साथ होता है। इसके पहले एक आदेश निकाला गया था कि शिक्षकों को छुट्टी केवल संकुल प्राचार्य ही स्वीकृत करेंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि शासन इसकी जगह बच्चों को रोज स्कूल आने को मजबूर करने के लिए पालकों पर कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाता, अगर बच्चे रोज स्कूल आएं तो वो 10.30 से 4.30 तक पढ़ कर ही कलेक्टर बन जाएंगे। क्यों उन को मुफ्त में छात्रवृत्ति देते हो, क्यों उनको ड्रेस देते हो, क्यों ऐसे बच्चों को साइकल देते हो जो एक भी दिन स्कूल नहीं आते।पर आप उसे रोक नहीं सकते क्योंकि वो राजनीति में वोट बैंक है और विभाग के लिए पैसा कमाने की योजना है।
पत्रलेखक ने अपना नाम गोपनीय रखने का आग्रह किया है।