“राम” से बड़ा राम का काम – नमन रमाकांत जी दुबे | EDITORIAL by Rakesh Dubey

रमाकांत जी दुबे कल चले गये। उनकी पहचान १९८४ के बाद, मानस भवन वाले दुबे जी हो गई थी। भोपाल की कई सामाजिक संस्थाओं से उनका सीधा सरोकार था। राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा, पडौस के जिले सीहोर में कलेक्टरी, दिश-विदेश में प्रशिक्षण और १९८४ में नियंत्रक, स्टेशनरी और मुद्रण और पदेन विशेष सचिव, राजस्व विभाग मध्‍य प्रदेश शासन से निवृत्ति उस दिन से “राम-काज” में जुड़े रमाकांत जी का सम्पूर्ण जीवन निष्कलंक बीता।

सं २०३१  वि. (सन १९७४) में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित कालजयी रचन ‘‘रामचरित मानस’’  ४०० वर्ष पूरे होने पर पूरे देश में मानस की चार सौवीं जयंती उत्साह के साथ मनाई गई। तब मध्यप्रदेश में भी ‘रामचरित मानस चतुश्शताब्दी समारोह समिति’ का   गठन १९७० में  किया गया था ।इस समिति का इतिहास बताते हए रामकथा का समाचार लिखने का दायित्व समिति के एक सदस्य और मेरे तत्कालीन सम्पादक स्व. त्रिभुवन यादव जी ने मुझे यह बताते हुए सौंपा था कि दुबे जी कलेक्टर रहे हैं, संभल कर लिखना। तबके कलेक्टर बहुत बड़े होते थे, पहली बार ऐसे व्यक्तित्व से सामना हुआ कि शक हुआ इतना सरल भी कोई हो सकता है।

रामकथा तब रामकिंकर जी कहते थे और उसकी व्याख्या तब वर्णित करना सामान्य बात नहीं थी, कम से कम मेरे लिए। दुबे जी ने बड़े भाई का दायित्व वहन किया बहुत से विषय सरल कर दिए और सारा  श्रेय मुझे, अपनी अनुशंसा के साथ दिया | सम्पादक जी ने जब कभी यह बात बताई  तब समझा आया | “राम के साथ रहने वाले राम जैसे ही हो जाते हैं, रमाकांत जी में राम जैसे गुण की आभा पहले से ही थी | उनके बारे में आज फिर तलाश की, एक मित्र उनके साथ सीहोर में कार्यरत रहे उन्होंने उनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता का एक किस्सा सुनाया | राजस्व अधिकारियों को तब भी और अब भी अपने दौरों की एक डायरी कलेक्टर को पेश करना होती है | रमाकांत जी ने प्रत्येक अफसर यह डायरी हमेशा खुद देखी   और रिमार्क दिए | तब कुछ कलेक्टर यह जवाबदारी अपने किसी बाबू को सौंप देते थे और अब तो अफसर लिखना और देखना पसंद नहीं करते | सूक्ष्म निरीक्षण उनका गुण था जिस जमीन की पैमाइश अधिकारी नाप कर नहीं निकाल पाते थे, रमाकांत जी आँख से देख कर बता देते थे |

 तुलसी मानस प्रतिष्ठान मध्यप्रदेश, जिस एक विशाल वृक्ष के रूप में छोड़ कर आज वे विदा हो रहे हैं, कि स्थापना बड़े मानस अनुरागियों ने की थी  | पहली प्रबंधकारिणी समिति   के मुख्य संरक्षक मध्यप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री सत्यनारायण सिंह, संरक्षक डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र, अध्यक्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री प्रकाशचंद सेठी, कार्यकारी अध्यक्ष तत्कालीन मंत्री श्री शम्भुनाथ शुक्ल और  उपाध्यक्ष श्री गोरेलाल शुक्ल थे  श्री  गोरेलाल शुक्ल के निधन के पश्चात् श्री रमाकांत दुबे को प्रतिष्ठान का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। चतुश्शताब्दी समारोहों की समाप्ति के बाद प्रसंगिकता की दृष्टि से वर्ष २००४  में परिवर्तन किया गया। समिति का परिवर्तित नाम ‘‘ तुलसी मानस प्रतिष्ठान मध्यप्रदेश ’’ है। रमाकांत जी तबसे अब तक कार्याध्यक्ष रहे | आज भी समिति के संरक्षक राज्यपाल , मुख्यमंत्री पदेन अध्यक्ष, शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री पदेन उपाध्यक्ष हैं।

सबसे पहले सुनी कथा के साथ इस प्रसंग को विराम | पहली कथा में राम किंकर जी ने कहा था कि “ रामेश्वर सेतु बनाते समय भगवान राम ने भी एक पत्थर समुद्र में डाला तो पत्थर डूब गया | जबकि राम नाम लिखी चट्टाने तैरती रही |” किंकर जी ने उस दिन कहा था राम से बड़ा राम का नाम होता है | वे सही कह रहे थे, पर आज का अनुभव कुछ अलग तरह का है | आज का अनुभव है “राम से बड़ा राम का काम” | रमाकांत जी, जी भर कर राम का काम कर गये,  अब आगे राम जाने अपना काम | मेरा प्रणाम |    
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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