अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण का हल हमारे पास है, सरकार हमसे बात करे: संघर्ष मोर्चा | ATITHI VIDWAN NEWS

भोपाल। अतिथि विद्वान नियमितीकरण इतनी बड़ी समस्या नही है, जितनी बड़ी समस्या बनाकर उसे पेश किया गया है। जब कश्मीर और मंदिर मस्जिद की समस्या का समाधान खोजा जा सकता है तो उसके आगे अतिथि विद्वान नियमितीकरण एक बहुत छोटा और आसानी से हल कर लिए जाने वाला मुद्दा है। यदि कहीं कोई कमी है तो वो केवल सरकार की राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी ही है। जब दूसरे प्रदेशों में इसी प्रकार की समस्या का आसानी से समाधान खोजा जा चुका है तो फिर मध्यप्रदेश में क्या समस्या है। यह कहना है अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा संयोजक डॉ देवराज सिंह का। 

उन्होंने आगे कहा है कि  सरकार चाहे तो एक दिन में इस मसले का आसान और सर्वमान्य हाल निकाला जा सकता है। पूर्व की प्रदेश की कांग्रेस सरकारों ने तदर्थ एवं आपाती भर्ती के नाम पर इस तरह की नियुक्तियां की थी। उस समय नियुक्त हुए उम्मीदवार आज कुलपति, महाविद्यालय प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों में अपने कर्तव्य का भली प्रकार निर्वहन कर रहे हैं।

आसानी से संभव है अतिथिविद्वानों का नियमितीकरण

अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ मंसूर अली के अनुसार अतिथिविद्वानों का नियमितीकरण सरकार की मज़बूत इच्छाशक्ति से आसानी से किया जा सकता है। हमने अब तक सरकार से लेकर कर्मचारी आयोग तक मे अतिथिविद्वान नियमितीकरण से संबंधित सुझाव जिसमे महत्वपूर्ण कार्यालयीन आदेश, न्यायालयीन प्रकरण एवं माननीय सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय की निर्णय एवं पूर्व सरकारों द्वारा  नियमित किया जाने के प्रकरणों की फ़ाइल हमने विभिन्न विभागों को सौपी है। यहां तक कि दूसरे प्रदेशों के अतिथिविद्वानों के नियमितीकरण के प्रकरण से संबंधित दस्तावेज भी उच्च शिक्षा विभाग, मंत्री महोदय एवं कर्मचारी आयोग को उपलब्ध करवाए हैं।

विषय विशेषज्ञ पहले ही सुझा चुके हैं नियमितीकरण के रास्ते

अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा में संयोजक डॉ सुरजीत भदौरिया के अनुसार उच्च शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी पूर्व में ही सुपर न्यूमेरेरी पदों के माध्यम से नियमितीकरण का रास्ता सुझा चुके हैं। किंतु अब तक सरकार की दृष्टि उन सुझावों पर क्यों नही पड़ी, यह सोचनीय विषय है।

आंदोलन ने प्रदान की मज़बूत इच्छाशक्ति

अतिथिविद्वान नियमितिकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय के अनुसार आज हमारे इस आंदोलन का निर्णय चाहे जो निकले लेकिन इस आंदोलन ने हमारी इच्छशक्ति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमारे कुछ साथी नियमितीकरण की इस कठिन राह में साथ चलते चलते शहीद हो गए, किन्तु सरकार ने उन लोगों की क़ुरबानी का भी कोई मान नही रखा। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार यदि अपने पक्ष में तटस्थ रवैया अपनाए हुए हैं तो हम भी लक्ष्यकेन्द्रित है। अंतिम सांस तक यह संघर्ष अनवरत जारी रहेगा।

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