वाहन चोरी बीमा क्लेम मामले में सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय | VEHICLE INSURANCE SUPREME COURT ORDER

नई दिल्ली। वाहन चोरी के इंश्योरेंस क्लेम मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि ग्राहक क्लेम करने में तेरी कर देता है तो इस आधार पर उसका क्लेम रिजेक्ट नहीं किया जा सकता। इंश्योरेंस कंपनियां अक्सर बीमा के दावे खारिज करने की कोशिश करती हैं। उपभोक्ता न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बीमा कंपनियों के खिलाफ मामले चल रहे हैं। 

सूचना में देरी के कारण क्या बीमा दावे को खारिज किया जा सकता है

भारत के उच्चतम न्यायालय में जस्टिस एनवी रमना, बीआर गवई और आरएस रेड्डी की पीठ ने यह फैसला दो सदस्यीय पीठ के रेफरेंस पर दिया, जिसमें पूछा गया था कि वाहन चोरी की सूचना देर से देने पर क्या बीमा दावे से मना किया जा सकता है, वो भी तब, जब एफआईआर तुरंत दर्ज की जा चुकी हो।

वाहन चोरी के मामले में कितने दिन बाद तक बीमा क्लेम कर सकते हैं

पीठ ने कहा कि जब वाहन चेारी होता है तो आदमी की पहली प्राथमिकता चोरी की एफआईआर दर्ज कराना होती है। वह चेारी हुए वाहन को खोजने में पुलिस की मदद भी करना चाहता है। चोरी के संबंध में एफआईआर का पंजीकरण और उसकी जांच के बाद वाहन न मिलने पर पुलिस की अंतिम रिपोर्ट इस बात का पक्का सबूत है कि गाड़ी चोरी हुई है। यानी यदि ग्राहक में पुलिस को तत्काल सूचना दे दी है तो बीमा कंपनी को तत्काल सूचना देना अनिवार्य नहीं है।

वाहन चोरी के बीमा क्लेम पर इंश्योरेंस कंपनियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

इतना ही नहीं, बीमा कंपनी की ओर से तैनात सर्वेयर से भी उम्मीद की जाती है कि वह यह जांचे कि दावाकर्ता का चेारी के बारे में दावा वास्तविक है या नहीं। यदि सर्वेयर यह पाता है कि चोरी का दावा वास्तविक है और उसके बारे में तुरंत FIR भी की गई थी तो यह हमारी राय में वाहन चोरी का अंतिम सबूत है। इसके बाद कुछ और नहीं चाहिए। ऐसे में दावे से मना नहीं किया जा सकता।

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