व्यापम/प्रीपीजी: सरकारें तो एक सी, न्यायालय से उम्मीद | EDITORIAL by Rakesh Dubey

व्यापम घोटाले में आ ही पेश हुए चालान के बाद एक बात साफ़ हो गई है की सरकार कोई भी हो काम करने का तरीका एक ही है। चालान पेश होने के बाद भी मध्यप्रदेश सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है। जिन सरकारी अधिकारियों के खिलाफ चालान हुआ है वे ठाठ से नौकरी कर रहे हैं और इस घोटाले में नामजद पूर्व आईएएस अधिकारी तो लोक सेवा आयोग की हाल ही में हुई परीक्षा के पर्यवेक्षक बनाये गये हैं। सरकार और जाँच एजेंसी के बीच कोई तालमेल नही या सूचना आदान-प्रदान बंद है से शीर्ष सरकारी अधिकारी इंकार करते हैं तो फिर उस सरकार में कौन था या इस सरकार में कौन है ? जो इन नामजद लोगों को संरक्षण दे रहा है। इस मामले में अब जो नाम उजागर हुए हैं, उनमें अपने को एक पूर्व मंत्री के रिश्तेदार होने का दावा करने वाले भी है। शायद ऐसे ही दबाव तब और अब काम करते थे और कर रहे हैं।

सीबीआई ने व्यापमं महाघोटाले से जुड़ी प्री-पीजी 2012 परीक्षा में हुई गड़बड़ी की चार्जशीट   विशेष अदालत में पेश की। इसमें सबूतों के आधार पर 32 लोगों को आरोपी बताया। जबकि एसटीएफ की चार्जशीट में आरोपियों की संख्या २८  थी। जो चार नए आरोपी बढ़े हैं, उनमें पूर्व आईएएस केसी जैन, डॉ. नर्मदा प्रसाद अग्रवाल, डॉ अग्रवाल की बेटी निष्ठा अग्रवाल और कैलाश नारायण सिंघल शामिल हैं।चार्जशीट के मुताबिक व्यापमं के तत्कालीन डायरेक्टर पंकज त्रिवेदी और प्रिंसिपल सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा ने १२  उम्मीदवारों को ४.५ करोड़ रु. में मॉडल आंसर-की (शीट) बेची थी। दोनों ने बिचौलियों के जरिए हर उम्मीदवार से २५  से ७५ लाख रु. तक लिए। इतनी भारी रकम किसने और कैसे जुटाई इसकी जाँच होना भी जरूरी है।

सबसे बड़ा लेन-देन उम्मीदवार डा अनुराग जैन (रिटायर्ड आईएएस केसी जैन के बेटे),  डा  सनी जुनेजा,  डा  समीर मंडलाई, डा सोमेश माहेश्वरी,डॉ . अभिजीत सिंह खनूजा,डॉ . आयुष मेहता के मामले में हुआ। यह सबसे बड़ा सौदा 3.42 करोड़ रुपए में हुआ था। यह तथ्य बहुत पहले उजागर हो गया था अब आरोप पत्र का हिस्सा है। उस समय या इस समय की सरकार ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि इस धन का स्रोत क्या है ? इसी तरह अजय कुमार जैन, रामप्रकाश ठाकुर, डॉ अमित कुमार जैन, डॉ. राघवेंद्र ठाकुर ने 25 से 75 लाख में मॉडल आंसर शीट खरीदी इनके पास धन का क्या स्रोत था ?  परीक्षा की आंसर शीट लीक कराने के लिए अरविंदो मेडिकल कॉलेज के मालिक डॉ. विनोद भंडारी और जीएम प्रदीप रघुवंशी से सौदा हुआ था।

इन तथ्यों के सामने आने के बाद भी कुछ लोग शासकीय सेवा में कैसे हैं ? कुछ लोग महती परीक्षाओं में क्यों नत्थी है ? जिस डाक्टर के खिलाफ अवैध भ्रूण परीक्षण का आरोप लग चुका हो  अब इस आरोप के बाद उसके खिलाफ कार्रवाई न होना इस बात का संकेत है।

यह सब सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न बनकर उभर रहे हैं और इस दिशा की ओर संकेतकर रहे हैं कि अभी इस मामले में और भी बहुत कुछ दबा हुआ है। भारत का संविधान न्यायालय को असीमित अधिकार देता है, जो आरोपित है उनका फैसला होने के पहले जो इसमें और जो छिपे हैं उन पर न्यायालय गौर करे तो प्रदेश का हित होगा। प्रदेश की सरकारे वैसे भी काफी बदनामी करा चुकी है अब कार्रवाई  हो आगे कुछ ठीक हो सकता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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