भोपाल। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने पिछले 4 साल से अटके हुए प्रमोशन कि मामले का समाधान निकाल लिया है। मध्य प्रदेश शासन के कर्मचारियों एवं अधिकारियों को बिना आरक्षण नीति लागू किए सशर्त प्रमोशन दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद, जिस तरह का आदेश आएगा उसके अनुसार पालन किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से कपिल सिब्बल लड़ेंगे
सुप्रीम कोर्ट में अब सरकार का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और इंदिराजय सिंह रखेंगे, जिससे प्रमोशन पर लगी रोक हट सके। सरकार कोर्ट से आग्रह करेगी कि जब तक कोई फैसला नहीं आता है तब तक सशर्त प्रमोशन की अनुमति दे दी जाए जिस पर अंतिम फैसला मान्य हो।
क्या है मामला, क्यों अटके हुए प्रमोशन
30 अप्रैल 2016 में हाईकोर्ट जबलपुर ने राज्य सरकार के पदोन्नति में आरक्षण संबंधी नियम 2002 निरस्त कर दिए थे। इसके बाद से प्रदेश की सेवा में कार्यरत और भर्ती होने वाले कर्मचारियों के प्रमोशन के कोई नियम ही नहीं है। तत्कालीन भाजपा सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने प्रमोशन की स्थिति यथावत रखने को कहा है। तब से पूरी तरह से प्रमोशन पर रोक लग गई है। प्रदेश में प्रमोशन के कोई नियम न होने से अब तक 50 हजार अफसर और कर्मचारी बगैर पदोन्नति के रिटायर हो चुके हैं और इतने ही अगले साल 31 मार्च 2020 को बगैर किसी लाभ के रिटायर हो जाएंगे।
सरकार ने वकीलों का पैनल और OIC हटाए
सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए 2016 में तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार ने वकीलों का पैनल गठित किया था और OIC नियुक्ति किए थे जिन पर तीन साल में 6 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके सरकार के पक्ष में पदोन्नति में आरक्षण मामले का कोई स्थायी समाधान सामने नहीं आया है। इस सबके बाद सरकार ने इस केस में लगे वकील और ओआईसी हटा दिए हैं।
नए नियम बनने तक पदेन पद का नाम देने पर विचार
प्रदेश में अफसरों और कर्मचारियों की पदोन्नति रुकी हुई है। इसके लिए सरकार पूरी क्षमता से सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने जा रही है। इसके लिए नया पैनल गठित कर दिया गया है। कर्मचारी समयमान वेतनमान योजना के तहत जिस पद का वेतन पा रहे हैं उन्हें प्रमोशन के नए नियम बनने तक पदेन पद का नाम देने पर भी विचार कर रहे हैं। - डॉ. गोविंद सिंह, सामान्य प्रशासन, मंत्री
ऐसा रहेगा फाॅर्मूला
प्रदेश में वर्तमान लागू टाइम स्केल की व्यवस्था के अनुसार कर्मचारियों को 10, 20 और 30 साल की सेवा के बाद पदोन्नति पद का वेतनमान दिया जा रहा है, लेकिन कर्मचारी का पद नाम नहीं बदल रहा है।
सरकार जिन कर्मचारियों की सेवा 10 साल की हो चुकी और भर्ती सहायक ग्रेड-3 से हुई है तो उसे पदेन सहायक ग्रेड-2 का पदनाम करने जा रही है। 20 साल बाद उसे सहायक ग्रेड-1 और 30 साल बाद सेक्शन ऑफिसर का पदेन पदनाम दे दिया जाएगा। इसी तारतम्य में उपयंत्री जिनकी सेवा 28 साल पूरी हो गई है, उन्हें सहायक अभियंता का नाम देने जा रही है।
इस सारी कवायद में उस पर किसी तरह का बड़ा वित्तीय भार नहीं आएगा। सरकार के एक आकलन के हिसाब से 50 करोड़ का अतिरिक्त वित्तीय भार आने का अनुमान है।