सांख्यिकी : आईने को मोड़ने की कोशिश | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) देश का दर्पण है जिसमें देश की सही-सही तस्वीर दिखती थी इस विभाग का कार्य ही हकीकत से रूबरू रखने और करने का था अब यह संस्था विवाद में आ गई है और इसमें आमूल चूल परिवर्तन की बात उठने लगी है प्रश्न यह है यह क्यों हो रहा है? चर्चित कारण दो उभरे हैंपहला-भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर तैयार रिपोर्ट जारी न होने से उठा विवाद और दूसरा- राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (NSO) की घरेलू उपभोग पर तैयार रिपोर्ट का लीक होना इन विवादों से भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।

वैसे भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली का विकास हमारी बेहद विशाल एवं विकेंद्रित अर्थव्यवस्था के बारे में विभिन्न मसलों से संबंधित आंकड़े जुटाने के लिए किया गया था। इस प्रणाली की प्रभावी उपलब्धियों के बावजूद आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर चिंताएं बढ़ती रही हैं। आंकड़ों का संग्रह, सारिणीकरण और उनकी व्याख्या की समस्याएं दूर करने के लिए 1961 में भारतीय सांख्यिकी सेवा (ISS) का गठन किया गया। 2006 में रंगराजन आयोग की अनुशंसाओं के अनुरूप राष्ट्रीय सांख्यिकीय आयोग वजूद में आया। एनएसएसओ को अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं से संबंधित घरेलू एवं उद्यम जगत से जुड़े व्यापक सर्वेक्षण करने का जिम्मा दिया गया।

थोडा इतिहास–1950 में तत्कालीन सरकार ने प्रोफेसर (अब स्व.) पी सी महालनोबिस की सलाह पर एनएसएसओ का गठन किया था। महालनोबिस उस समय नेहरू मंत्रिमंडल के सांख्यिकी सलाहकार थे। राष्ट्रीय आय समिति ने राष्ट्रीय आय के कुल जोड़ की गणना के लिए उपलब्ध सांख्यिकी आंकड़ों में बड़ी खामियां पाई थीं। इन कमियों को दूर करना ही एनएसएसओ का मुख्य मकसद था। अप्रैल 1961 में सांख्यिकी विभाग का गठन किया गया और एनएसएसओ इसका अंग बना दिया गया। अक्टूबर 1999 में एनएसएसओ सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय में एक संबद्ध कार्यालय बन गया।

एनएसएसओ ने अपने सर्वेक्षण अभियान की शुरुआत अक्टूबर 1950 से मार्च 1951 के दौरान ग्रामीण इलाकों में विभिन्न मुद्दों के बारे में पड़ताल से की थी। दसवें दौर का सर्वेक्षण होने तक एनएसएसओ पूरी तरह व्यवस्थित हो चुका था। संसद में 1959 में अधिनियम पारित होने के बाद भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) को भी वैधानिक दर्जा मिल गया। इसकी आम स्वीकृति इससे पता चलती है कि सरकारी संगठन एवं स्वायत्त संस्थान जरूरी आंकड़े जुटाने के लिए एनएसएस की सर्वे पद्धति में रुचि दिखाते थे।

सांख्यिकी मंत्रालय के एक प्रशासकीय आदेश के मुताबिक मई 2019 में एनएसएसओ को केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के साथ मिलाकर नया संगठन एनएसओ बना दिया गया।अब एनएसएसओ के चार प्रकोष्ठ हैं । लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि एनएसएसओ को विश्लेषणात्मक रिपोर्ट पेश करने को लेकर पहले जो थोड़ी-बहुत स्वायत्तता हासिल थी, अब वह अब समाप्त हो रही है। वैसे अब भी कार्य-समूह एवं तकनीकी समितियां और राष्ट्रीय सांख्यिकीय आयोग (एनएससी) मौजूद हैं, लेकिन उनकी मौजूदा भूमिका विशुद्ध रूप से तकनीकी ही हैं। एनएसएसओ की कुछ हालिया रिपोर्ट जारी होने के पहले मीडिया में लीक होने के बाद कई तरह के आरोप लगे हैं। इससे सरकार खफा है,और संस्थान के ढांचे में परिवर्तन की बातें उठने लगी है

सत्ता पर काबिज हर सरकार को आंकड़ा संग्रह के काम हस्तक्षेप कम और सन्गठन की स्वयत्ता को प्राथमिकता में रखना चाहिए और संक्षिप्त अवधि की अनुबंधित नियुक्तियों से परहेज करना चाहिए। आंकड़े जुटाने के काम में लगे नियमित कर्मचारियों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि किए जाने से रोजगार अवसर भी बढ़ेंगे। अधिक स्वायत्तता के लिए एनएसएसओ को सांख्यिकीय आयोग के मातहत रखा जाना चाहिए। इसके अलावा सांख्यिकीय आयोग को कानूनी रूप से अधिक सशक्त भी बनाया जाना चाहिए। ये सन्गठन आईना है और आईने का काम सच दिखाना है | सच दिखाते आईनों को तोड़ने और मोड़ने की कोशिश हमेशा होती है यह कोशिश कारगर न हो ऐसे प्रयास होना चाहिए, इसी में प्रजातंत्र का भला है
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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