वन विभाग में कर्मचारियों का पे-स्केल ही घटा दिया, हर कर्मचारी को 60 लाख नुकसान | MP NEWS

भोपाल। मध्यप्रदेश वन विभाग के अधिकारी पूरे विभाग को शायद जंगल समझते हैं। मनमाने नियम और कानून लागू कर दिए जाते हैं। गजब देखिए, सारे देश में कर्मचारियों का पे स्केल बढ़ाया जा रहा है वन विभाग में घटा दिया गया। वह भी थोड़ा बहुत नहीं 34800 से घटाकर 20200. यानी एक कर्मचारी को अपने पूरे सेवाकाल में ₹600000 का नुकसान। यह करतूत किस सनकी अफसर ने की है फिलहाल पता नहीं चल पाया है क्योंकि वर्तमान में पदस्थ सभी अधिकारी उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं। 

मामला क्या है 

वन विभाग मध्यप्रदेश में 557 रिक्त पदों के लिए प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड द्वारा 2016 में भर्ती परीक्षा का आयोजन किया गया था। इसी में 88 पद मानचित्रकारों के लिए भी थे। परीक्षा का आयोजन हुआ, 30 जून 2016 को रिजल्ट घोषित हुआ, और साल के अंत में नियुक्तियां मिल गई। नवीन नियुक्त हुए सभी मानचित्रकारों को 5200 से 20200 प्लस 2400 ग्रेड पे दिया गया। सभी ने। काम शुरू कर दिया। सब कुछ ठीक जा रहा था कि तभी (नियुक्ति के 2 साल बाद) विभाग के कुछ दस्तावेजों में पता चला कि वन विभाग में कार्यरत दूसरे सभी मानचित्रकारों को 9300 से 34800 प्लस 3200 ग्रेट पर मिल रहा है। बस यही से विवाद शुरू हो गया। सवाल किया जा रहा है कि एक ही पद के लिए दो अलग-अलग पे स्केल कैसे हो सकते हैं। वन विभाग के अधिकारियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है। दोषी अधिकारी को छुपाने के लिए सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी भी उपलब्ध नहीं कराई गई है।

कोई था जो नहीं चाहता था इन सभी को नियुक्तियां मिली

वन विभाग ने 26 जुलाई 2016 को सभी उत्तीर्ण उम्मीदवारों को डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन के लिए संभाग स्तरीय वन विभाग के दफ्तर बुलवाया था। अफसरों ने अलिखित नियमों को आधार बनाकर उत्तीर्ण आवेदकों को भी 'अपात्र' घोषित कर रवाना कर दिया था। इसकी वजह यह बताई गई थी कि उनकी पढ़ाई ज्यादा है। पीईबी ने ड्रॉफ्टमैन भर्ती के लिए मानचित्रकारी प्रमाण पत्र या फोटोग्राफी डिप्लोमा मांगा था। हालांकि आवेदन से लेकर परीक्षा तक इससे अधिक डिग्रीधारी उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी थी। पॉलिटेक्निक कॉलेज से आर्किटेक्चर से डिप्लोमा करने वाले उम्मीदवार जब डाक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिए गए तो उन्हें यह कहकर टरका दिया गया कि आपकी पढ़ाई वांछित योग्यता से अधिक है इसलिए आपको नहीं ले सकते। जवकि ये मेरिट में टॉप-10 पर थे। कुल मिलाकर कहीं कोई था तो नहीं चाहता था कि नियमानुसार भर्ती परीक्षा का आयोजन हो और उसके बाद योग्य उम्मीदवारों की नियुक्तियां हो जाए। संभव है वही साजिशकर्ता जब अपनी साजिश में सफल नहीं हो पाया तो गुस्से में आकर तंग करने के लिए उसने पे स्केल बदल दिया।

ड्राफ्टमैन: एक ऐसा पद जिसमे जीवन भर प्रमोशन नहीं मिलता

वन विभाग में काम करने वाले मानचित्रकारों की सेवा-शतों के अनुसार उन्हें जीवनभर प्रमोशन नहीं मिल पाता है। न ही उनकी वेतनवृद्धि होती है। यानी जिस पद और स्केल पर नियुक्ति हुई है उसी पर रिटायर होना है। इस नियम के चलते 2016 में पदस्थ हुए मानचित्रकारों में आक्रोश भड़का है। उनका कहना है कि जब पूरे सेवाकाल में एक ही पद पर कार्य करना है तो घटा हुआ वेतन क्यों स्वीकार करें? यदि हर साल 1 लाख 84 हजार 800 रुपए का घाटा होगा तो रिटायर होने तक यह राशि 60 लाख रुपए से अधिक होती है। वेतन के आधार पर ही उनकी पेंशन, ग्रेच्युटी इत्यादि तय होना है। यानी नौकरी के साथ ही रिटायर होने पर बड़ा नुकसान होना है।

न्याय के लिए कोर्ट जाएंगे

अधिकारी सुन नहीं रहे, अब कोर्ट ही आसरा विभाग ने हमारा वेतन घटाकर हमारे साथ अन्याय किया है। हर महीने हमें हजारों रुपए कम वेतन मिल रहा है। विभाग के तमाम आला-अफसरों से गुहार लगा चुके हैं लेकिन कोई मदद नहीं कर रहा है। वेतन विसंगति को लेकर अब कोर्ट ही अंतिम आसरा बचा है। यदि विभाग ने हमें 2016 के पूर्व का वेतनमान नहीं दिया तो अब कोर्ट में केस दायर करेंगे। 
रेवती धीमान, अखिलेश वर्मा, रोहित लोधी, प्रिया सोनी (सभी मानचित्रका)

अपनी गलती सुधारने दूसरों से आवेदन मंगवा रहे हैं प्रधान मुख्य वन संरक्षक 

2016 से पहले और 2016 के बाद नियुक्त हुए ड्राफ्टमैन का पे-स्केल अलग अलग है। यह साबित करने के लिए किसी भी दस्तावेज की जरूरत नहीं है। बैक ऑफिस से दोनों तरह की सैलरी स्लिप और रिकॉर्ड मंगा कर चेक किया जा सकता है परंतु मामले को उलझाने के लिए मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख यू. प्रकाशम का कहना है कि मुझे फिलहाल यह नहीं पता है कि नए और पुराने मानचित्रकार के वेतन में कितना बदलाव हुआ है। जिन मानचित्रकारों के साथ वेतन की यह समस्या है वे मुझसे दफ्तर में आकर मिलें। वेतन विसंगति के प्रमाण सहित आवेदन दें। यानी एक ही आवेदन को 88 कर्मचारी अलग-अलग लेकर आए और महोदय से मिले। सारे प्रमाण भी पीड़ित ही जुटाए। तब विभाग का मुखिया न्याय करने का विचार करेगा। शायद यू. प्रकाशम को पता ही नहीं कि इस तरह के मामलों में जांच कैसे की जाती है या फिर वह जानबूझकर मामले को लंबा खींचने की कोशिश कर रहे हैं ताकि साजिशकर्ता को बचाया जा सके।

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