शिल्पी शिवान। जैसे ही कल हमारे प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने सोलह शिक्षकों की बर्खास्तगी के साथ 20-50 फॉर्मूले का आदेश जारी करने की बात कही शिक्षा जगत में भूचाल सा आ गया है। बात 16 शिक्षकों की बर्खास्तगी के मसले की नहीं बल्कि जिस शिक्षा गुणवत्ता की दुहाई देकर अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई है विरोध उस पर है।
पिछले पंद्रह सालों से विपक्ष में रही वर्तमान सत्ता पक्ष जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की वचन बद्धता का अनुसरण कर अपने घोषणापत्र को वचनपत्र नाम दिया था। बस हम अध्यापकों को लगा कि शायद प्रभु श्रीराम का नाम लेने वाले जो न कर पाए वो प्रभु श्रीराम की वचनबध्दता को अपनाने वाले कर जाएं लेकिन बहुत ज्यादा अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि अपने वचनपत्र का एक भी वचन हम अध्यापकों, शिक्षकों और हमारे परिजनों के जीवन में बदलाव लाये नहीं निभाया गया।
इधर हम अध्यापक संवर्ग के मृत लोकसेवकों के परिजनों को अनुकम्पा नियुक्ति मिले इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं उधर हमारी सरकार जीते जी शिक्षकों के परिजनों को अनाथ किये जा रही है। ये सच है और मैं इसका पुरजोर समर्थन करती हूँ कि प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता से किसी भी तरह का कोई समझौता हरगिज़ न किया जाए किन्तु शिक्षा गुणवत्ता में सुधार के लिए हम अध्यापक/शिक्षक संगठनों के सुझावों पर भी तो विचार किया जाए।
1. अप्रैल माह से शिक्षा सत्र आरंभ तो किया जा रहा है किंतु इससे व्यवहारिक रूप से बच्चों को लाभ नहीं मिल पा रहा है।
2. सरकारी स्कूलों में बच्चे 6 वर्ष की आयु में प्रवेश होते हैं जबकि हमारी ही सरकार और विभाग उन बच्चों को 3 वर्ष की आयु में निजी विद्यालयों में प्रवेश करा गौरव महसूस कर रही है। ऐसे 25% बच्चे हर वर्ष सरकारी स्कूलों से कम किये जा रहे हैं और आरोप शिक्षकों पर लगाया जाता है।
3. जिन 16 शिक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई है उनको लेकर एक लोककल्याणकारी राज्य की सरकार ने ये निर्णय तो ले लिया कि उनको सेवा से हटा दो किन्तु उनके परिजनों और बच्चों के प्रति सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे क्यों हट गई? इन शिक्षकों ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम अंतर्गत पिछले वर्षों में बच्चों को पूर्ण दक्षता दी है जिसका रिकॉर्ड इनके विद्यालय के परीक्षा परिणाम में दर्ज होंगे हो सकता है पदोन्नति उपरांत इन शिक्षकों को उच्चतर कक्षाओं के अध्यापन की विधा न आई हो अतः इनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की जगह पदोन्नति वापस ली जा सकती है, वेतन वृद्धियां रोकी जा सकती हैं।
4. यदि विभाग या सरकार को वास्तव में शिक्षा गुणवत्ता में सुधार करवाना है तो भय का माहौल पैदा कर नहीं किया जा सकता क्योंकि सरकारी विद्यालयों में शिक्षक सिर्फ आदेश का पालनकर्ता होता है। नीति निर्धारक नहीं। यदि इन विद्यालयों में विद्यार्थी फेल हो रहे हैं तो शिक्षक को जिम्मेदार मानकर उनको अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा रही है परंतु शिक्षकों के फेल होने पर नीति निर्धारकों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जा रहा है।
5. आज़ाद अध्यापक संघ कभी भी शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता को तैयार नहीं हो सकता और हम ही हैं जो Performance Basis पदोन्नति आदि की बात करते हैं। किंतु इसके पैरामीटर जो वर्तमान में हैं ये भेदभावपूर्ण हैं जिसमे सिर्फ शिक्षक को दोषी बनाने का सिस्टम है उसके नीतिनिर्धारकों को नहीं।
6. ओजस, उमंग, बालसभा, अंकुर, तरुण, ब्रिजकोर्स, दक्षता आदि सहित लगभग आधा सैकड़ा काम ऐसे हैं जो पदस्थ एक या दो शिक्षकों द्वारा ही किये जाते हैं। ऐसे बहुत कम प्राचार्य होंगे जो कक्षाओं में अध्यापन के लिए दो कालखंड नियमित पढ़ाने के विभागीय आदेशों का पालन करते होंगे। हजारों शिक्षक हैं जिनको BRC, BAC, DPC आदि के नाम और अफसर बना कर स्कूलों से शिक्षक दूर कर दिए गए।
7. बेस्ट ऑफ फाइव सिस्टम और 80 अंकों की परीक्षा लेकर मंडल परीक्षा का मजाक बनाया जा रहा है। गणित और अंग्रेजी के शिक्षकों की नियुक्ति ही नहीं हैं। क्या इन बातों के लिए इन 16 को दोषी ठहराया जा सकता है।
ऐसे दर्जनों कारण हैं जिनमें शिक्षक जिम्मेदार न होते हुए भी दोषी ठहराया जा रहा है।
इधर मीडिया के हमारे साथी सवाल खड़ा करते हैं कि निकम्मों को हटाया जा रहा है तो आप विरोध क्यों कर रही हैं। तो उनको मेरा यही जवाब है कि जब दिल्ली राज्य अपने शिक्षकों को बर्खास्त किये बिना शिक्षा गुणवत्ता सुधार कर सकता है। जब दक्षिण कोरिया अपने शिक्षकों को बर्खास्त किये बिना मध्यप्रदेश को आकर्षित कर सकता है। तो क्या हमारे प्रदेश की शिक्षा विभाग के नीति नियंता और जिम्मेदार इतने कमजोर और नीतियों से हीन हो गए हैं कि गुणवत्ता सुधार के लिए शिक्षकों की सेवा खात्मा ही उपाय शेष रह गया है। ऐसे तो यह परंपरा विकृत स्वरूप ले लेगी कि यदि कोई शिक्षक किसी अफसर या नेता या ताकतवर की इच्छा के विपरीत गया तो 20-50 का शिकार बना दिया जाएगा। और हम शिक्षा विभाग को आसान चारागाह बनाने की खिलाफत करते रहे हैं , करते रहेंगे।
चूँकि आज़ाद अध्यापक संघ अभी भी अध्यापक महासंघ का हिस्सा है इसलिए हम विभिन्न अध्यापक/शिक्षक संगठनों के साथ बैठकर आगामी दिनों में इस व्यवस्था की खिलाफत के लिए गांधीवादी विरोध पर आगे बढ़ेंगे। तब तक संघ के पदाधिकारियों से निवेदन है कि सभी ब्लाक व जिलो मे संगठन के पदाधिकारी व आम अध्यापकों/शिक्षकों के विचार आमंत्रित करें व जिन शिक्षकों /अध्यापकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई उन शिक्षकों के परिजनों से मुलाकात कर उनको ढांढस दें कि हम उनके साथ हैं।
लेखक शिल्पी शिवान, आजाद अध्यापक संघ की प्रांत अध्यक्ष है। संपर्क: 7000592300