निजीकरण के बाद कंपनियां मोटा मुनाफा कमाती हैं, सरकारी घाटे में क्यों जाती है | khula Khat

Bhopal Samachar
आनंद बंदेवार। नरेंद्र मोदी सरकार में बीपीसीएल सहित पांच सरकारी कंपनियों के निजीकरण का रास्ता खोल दिया है। सरकार अक्सर सरकारी कंपनियों में निजी भागीदारी बढ़ाती रहती है। इस तरह सरकारी कंपनियां एक दिन प्राइवेट हो जाती है। प्राइवेट होने के बाद कंपनियां मोटा मुनाफा कमाती है। सवाल यह है कि कंपनियां सरकारी रहते हुए मोटा मुनाफा क्यों नहीं कमाती। सरकार से कहां चूक होती है। क्या सरकार अपनी खामियों को खत्म नहीं कर सकती। क्या सरकार कमाई के लिए सिर्फ टैक्स पर ही निर्भर रह जाएगी।

1982 में सरकारी कंपनी थी मारुति, 2007 में प्राइवेट हो गई

मारुति सुजुकी की शुरुआत 1982 में तत्कालीन सरकार और जापान की ऑटो कंपनी सुजुकी के ज्वाइंट वेंचर के तौर पर हुई थी। उस वक्त सरकार की 74% और सुजुकी की 26% हिस्सेदारी थी। बाद में सुजुकी ने 2 बार में अतिरिक्त शेयर खरीदकर हिस्सेदारी 50% तक बढ़ा ली। 1992 में सरकार की शेयरहोल्डिंग 50% से नीचे आ गई और मारुति को निजी कंपनी घोषित कर दिया गया। 2002 में सरकार ने मैनेजमेंट कंट्रोल भी ट्रांसफर कर दिया और 2007 में बची हुई हिस्सेदारी बेचकर पूरी तरह कंपनी से बाहर हो गई।

मारुति सुजुकी मात्र 16 साल में ₹125 का शेयर ₹7144 का हुआ

मारुति सुजुकी जुलाई 2003 में 125 रुपए के प्राइस पर आईपीओ लाई। बुधवार को शेयर का क्लोजिंग प्राइस 7144.10 रुपए रहा। यानी बीते 16 साल में शेयर में 5600% तेजी आई। मारुति सुजुकी आज देश की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी है।

हिंदुस्तान जिंक: निजीकरण के बाद मोटा मुनाफा दे रही है

हिंदुस्तान जिंक की शुरुआत 1966 में हुई थी। 2002 में सरकार ने रणनीतिक विनिवेश की योजना के तहत इसकी 26% हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया। स्टरलाइट इंडस्ट्रीज ने 26% शेयर सरकार से और 20% आम शेयरधारकों से खरीदे थे। 2003 में सरकार ने 18.92% और शेयर बेच दिए। हिंदुस्तान जिंक दुनिया की टॉप-3 जिंक खनन कंपनियों में से एक है। यह दुनिया की 10 प्रमुख चांदी उत्पादक कंपनियों में भी शामिल है।

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