मध्यप्रदेश : मुख्यमंत्री कुछ बोलते ही नहीं | EDITORIAL by Rakesh Dubey

भोपाल। मध्यप्रदेश में असंतोष के कारण  वर्तमान सरकार की पहचान कुछ ऐसी बन रही है, जैसी अंतिम 5 साल में शिवराज सरकार की थी। मंत्रियों में आपसी सामंजस्य नही है। नौकरशाही अनियंत्रित हो रही है। एक विज्ञापन ने भी यह साबित किया है कि सरकार नहीं सन्गठन में भी कुछ ज्यादा ठीक नहीं चल रहा है। वन मंत्री उमंग सिंघार और अपर मुख्य सचिव वन एपी श्रीवास्तव के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। कुछ और आलाअफसर अपना दुखड़ा मुख्य सचिव के सामने रो चुके है। 

सबसे चर्चित और ताजा मामला तीन सीनियर आईएफएस अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर हुई तबादला बोर्ड की बैठक से जुड़ा है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की पोस्टिंग के लिए बनाए गए तबादला बोर्ड की 22 अक्टूबर को हुई मीटिंग में तय किया गया था कि 1984 बैच के राजेश श्रीवास्तव को मप्र का चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन व इसी बैच के एसपी रयाल को प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) रिसर्च एंड डेवलपमेंट और 1986 बैच के ए बी गुप्ता को पीसीसीएफ उत्पादन पदस्थ किया जाए। बोर्ड की अध्यक्षता मुख्य सचिव करते हैं। फाइल को अनुमोदन के लिए वन मंत्री उमंग सिंघार के पास भेजा गया, लेकिन पोस्टिंग की यह फाइल बिना अनुमोदन के अभी तक उन्हीं के पास है। चर्चा है कि एपी श्रीवास्तव से चल रही खींचतान के कारण मंत्री ने इस पर मंजूरी नहीं दी, क्योंकि  बोर्ड के प्रस्ताव अपर मुख्य सचिव श्रीवास्तव ने ही बनाया है। 

मंत्रालय के गलियारों में हवा है कि पिछले डेढ़ माह के भी पहले से सिंघार और एसीएस श्रीवास्तव के बीच बातचीत तक बंद है। इधर, मंत्री सिंघार के तबादला बोर्ड की अनुशंसा रोके जाने के कारण चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन का पद दो माह के भी अधिक समय से रिक्त है। चर्चा है कि राजेश श्रीवास्तव से वन मंत्री थोड़े नाखुश हैं। लघु वनोपज संघ में एम डी रहे राजेश श्रीवास्तव को पूर्व में उन्हीं की अनुशंसा पर हटाया गया था।

यह तथ्य भी चर्चा में है 1986 बैच के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ विजिलेंस) अभय पाटिल और इसी बैच के एपीसीसीएफ समन्वय अनिल श्रीवास्तव के पीसीसीएफ पद पर प्रमोशन के लिए अस्थाई पदों की मंजूरी वन मंत्री ने तीन हफ्ते बाद दी। पूर्व में केंद्र सरकार ने पीसीसीएफ के दो अस्थाई पद दो साल के लिए मंजूर किए थे। इनकी अवधि अक्टूबर में पूरी हो गई। पूर्व में विभाग की ओर से प्रस्ताव दिया गया कि इन अस्थाई पदों को आगे भी तब तक निरंतर रखा जाए, जब तक स्थाई पद रिक्त नहीं हो जाते। स्थाई पद रिक्त होने की सूरत में अस्थाई पदों को उसमें समायोजित किया जा सकता है। पूर्व में इस पर सहमति नहीं बनी, लेकिन बाद में अपर मुख्य सचिव एपी श्रीवास्तव ने दोबारा प्रस्ताव भेजा। तीन हफ्ते बाद मंत्री ने इस मामले में मंजूरी दी। क्या इसे सरकार चलना कहते हैं, एक सवाल है। 

वन विभाग में एक अजीब सा माहौल वन विभाग में बना हुआ है। वन मंत्री ने अपर मुख्य सचिव दफ्तर के अफसरों के कामों का बंटवारा खुद कर दिया। एपी श्रीवास्तव ने इससे असहमति जताते हुए टीप के साथ फाइल मुख्य सचिव को भेज दी। यह मामला अभी मुख्यमंत्री के पास विचाराधीन है। तब तक कामकाज प्रभावित हो रहा है। आईएफएस अधिकारी जेएस चौहान की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति को वन मंत्री ने मंजूरी नहीं दी। एपी श्रीवास्तव ने नए सिरे से फाइल मुख्य सचिव को भेजी और लिखा कि चौहान को प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री तक फाइल गई तो उन्होंने मंजूरी दे दी। वन ही नहीं अन्य और कई विभागों में यही माहौल है | संकट यह है की मुख्यमंत्री कुछ बोलते ही नहीं। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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