भोपाल : सरकार है कि समझने को तैयार नहीं | EDITORIAL by Rakesh Dubey

भोपाल। विधायकों के लिए नये रेस्ट हाउस बनाने का मामला हो या स्मार्ट सिटी भोपाल के नागरिक सह रहे हैं और कह रहे हैं,पर सरकार है कि समझने को तैयार नहीं | पूरा विश्व कार्बन उत्सर्जन को लेकर चिंतित है , भोपाल का कोई भी हिस्सा हो आज वहां प्रदूषण सामान्य से चार गुना है, फिर भी प्रोजेक्ट नहीं रुक रहे हैं | वर्तमान सरकार और पिछली सरकार ने जो योजना बनाई है उनमे वैकल्पिक पौधे लगाने की बात कही जा रही है | काटे जा रहे 50-60 बरस के पेड़ हैं, और कब आज लगाये पौधे बड़े होंगे यह एक सामान्य सा समझने का सवाल है | भोपाल के जंगलो की यह बरबादी भोपाल का नाम उस फेहरिस्त में जहाँ प्रदूषण सबसे ज्यादा है |

वैसे भी भोपाल में अभी, तीव्र भूमि क्षरण, बाढ़ व सूखे की बढ़ती बारंबारता, भूजल के स्तर में गिरावट, कम पानी, बेमौसम की बारिश आदि जैसे संकेत स्पष्ट दिखते हैं| इसके बावजूद कई लोगों को लगता है कि जलवायु संकट जैसी कोई समस्या नहीं है और है भी, तो अभी चिंता की कोई बात नहीं है| ऐसे लोग भोपाल और आनेवाली पीढ़ी के लिए किस विरासत का निर्माण कर रहे हैं, गंभीरता से विचार का विषय है | ऐसे लोगों को 153 देशों के 11 हजार से अधिक वैज्ञानिकों की चेतावनी का संज्ञान लेना चाहिए| इन वैज्ञानिकों ने 1979 में जेनेवा में हुए पहले विश्व जलवायु सम्मेलन के 40 साल पूरे होने के मौके पर प्रतिष्ठित जर्नल 'बायोसाइंस' में अपनी चिंता जाहिर की है| इस बयान का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन और धरातल के तापमान बढ़ने के मानकों के इतर जलवायु संकट के कारणों व परिणामों के तमाम संकेतों को सामने लाना है| अब हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि धरती आपातकालीन स्थिति से जूझ रही है और जीने-रहने लायक भविष्य के लिए वर्तमान के रहन-सहन में बदलाव लाना होगा| वैश्विक समाज के तौर-तरीकों तथा प्राकृतिक पारिस्थितिकी के साथ संबंधों में भी परिवर्तन की आवश्यकता है| 

जिस गति से यह संकट गहरा रहा है, वह अधिकतर वैज्ञानिक शोधों के अंदेशे से कहीं अधिक है| आबादी में बढ़त, अंधाधुध निर्माण ,हवाई उड़ान, मांस उद्योग और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन का बढ़ना, मौसम में तेज बदलाव, ग्लेशियरों का पिघलना व समुद्र में अधिक पानी होना जैसे कारक यह बता रहे हैं कि यदि अभी से ठोस उपाय नहीं किये गये, तो धरती पर जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है और मनुष्य जाति को भयावह त्रासदियों का सामना करना होगा.|यह पहला मौका नहीं है, जब बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों ने २५ साल बाद १५ हजार से ज्यादा वैज्ञानिकों ने प्रदूषण के खतरे और धरती से वन्य जीवों के सामूहिक रूप से लुप्त होने के संकट की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया था. उस निवेदन को अनेक देशों की संसद में भी पढ़ा गया था| भोपाल को विश्व की सबसे बड़ी औध्योगिक त्रासदी से सबक लेना चाहिए तब भोपाल के अधिसंख्य लोगो की जान पेड़ और पानी ने ही बचाई थी | गैस त्रासदी की बरसी आ रही है, और भोपाल पेड़ कटते देख रहा है | 

विश्व में बीते तीन दशकों में विभिन्न मसलों व पहलुओं पर भी वैज्ञानिक अध्ययन लगातार प्रकाशित होते रहे हैं| वैज्ञानिक चेतावनी देकर अपना नैतिक कर्तव्य तो पूरा कर रहे हैं, चुनौतियों से निपटने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को ही अगुआई करनी है| भोपाल का राजनीतिक नेतृत्व रोज आते वायु प्रदुषण के आंकड़ों से भी आँखे चुरा रहा है |दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब ऐसी चेतावनियां आ रही हैं| यह तो ठीक वैसा ही हो रहा जैसे अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने का निर्णय किया है| ब्राजील भी इसे मानने के लिए तैयार नहीं है तथा रूस ने इस संबंध में अभी कोई संकल्प नहीं लिया है| भोपाल के नेता भी अपने की इसी श्रेणी का समझने लगे हैं या ------- हैं | 

देश के सभी नगरों को अपने विकास की चिंता करनी चाहिए |यह छोटा संकट नहीं है, इसलिए इसका सामना भी सभी को मिल-जुलकर करना पड़ेगा. हमें वैज्ञानिकों की बातों को गंभीरता से लेते हुए भोपाल के विकास की नीतियां बनाने पर विचार करना होगा, देरी अब विकल्प नहीं है.
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !