ग्वालियर। शहर में गणेशोत्सव की धूम शुरू हो गई है। सोमवार सुबह से ही गणपति बप्पा मोरिया के जयकारों से सडक़ें गुंजायमान हैं, गणेश भक्त अपने आराध्य को लेकर घरों में पहुंचें और विधि विधान के साथ गणपति की मूर्तियों को स्थापित किया। साथ ही शहर में पंडालों में भी मूर्तियों की स्थापना शुरू हो गई है। देर शाम तक सभी पंडालों में गणेश प्रतिमाओं की स्थापना कर दी गई।
भगवान गणेश की स्थापना चैराहों, गलियों और बाजारों में लगे पण्डालों में की जा रही है। गणेश स्थापना का सिलसिला सोमवार रात तक चला। गणेश भक्त पिछले कई दिनों से गणेश उत्सव की तैयारियों में जुटे थे, जिससे वह दस दिन तक धार्मिक आयोजन हर रोज कर सके। वहीं सोमवार सुबह से ही शहर के गणेश मंदिरों में भी भक्तो की भाड़ी भीड़ लगी रही। खासगी बाजार स्थित मोटे गणेश मंदिर में लोगों ने पहुंच कर गौरी पुत्र गणेश की आराधना की और भगवान गणेश से अपने परिवार की खुशहाली की कामना की ।
अचलेश्वर मंदिर पर 16 फीट ऊंचे विराजे गणपति
शहर के प्रतिष्ठित शिवालय अचलेश्वर पर सोमवार को 16 फीट ऊंची श्रीजी की प्रतिमा विराजमान की गयी है। मंदिर के पुजारियों ने श्रद्धालुओं की मौजूदगी में वैदिक मंत्रोचार के साथ श्रीजी की भव्य एवं विशाल प्रतिमा की स्थापना की। यहां लगभग 16 फीट ऊंची गणेश जी की प्रतिमा लगाई गयी है। 10 दिवस तक चलने वाले उत्सव के दौरान प्रतिदिन दो हजार देशी घी के लड्डुओं का प्रसाद वितरित किया जायेगा। इसके साथ ही प्रतिदिन रात 8 बजे गणेश जी की महाआरती भी की जायेगी। उत्सव के दौरान अन्य धार्मिक कार्यक्रम भी जारी रहेंगे। गणपति की 16 फीट ऊंची प्रतिमा झांसी निवासी और फाइन आर्ट कॉलेज के छात्र डालचंद्र प्रजापति ने अपनी टीम के साथ मिलकर 1 माह में तैयार की हैं।
गणेश चतुर्थी से 10 दिनों तक होती है पूजा अर्चना
प्रत्येक माह के दोनों पक्षों में चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी तिथि के ही नाम से जानी जाती है। लेकिन शिवपुराण में ऋद्धि-सिद्धि के दाता गणेश जी का जन्म भाद्रशुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को बताया गया है। पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति के लिये इस त्योहार का बहुत अधिक महत्व है। इस बार गणेश चतुर्थी सोमवार को चतुर्ग्रही योग में मनाई जा रही है। गणेश चतुर्थी की तिथि सोमवार सुबह 4.56 बजे से प्रारंभ हुई जो कि 3 सितंबर को दोपहर 1:53 बजे तक रहेगी। क्योंकि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश जी का उत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना से प्रारंभ होता है और अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है। इस दिन ढोल नगाड़े बजाते हुए, नाचते-गाते हुए भक्त गणेश प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाते हैं।