आला अफसर ठीक नहीं है या सरकार गलत है | EDITORIAL by Rakesh Dubey

भोपाल । आला अफसरों को नौकरी से निकालने का कीर्तिमान बन गया है | दूसरी ओर आला अफसरी छोड़ने वालों का कीर्तिमान भारत में बनता दिख रहा है | लाख टके का सवाल यह है कि अफसर ठीक नहीं है या सरकार गलत है ? जहाँ तक सरकार की बात है मोदी सरकार (Modi government) ने 2015 में अपनी क्षमता प्रमाणित नहीं करने वाले 13 नौकरशाहों की छुट्टी कर दी| करीब 45 आला अफसरों के पेंशन के पैसे काट लिए| कहते हैं सरकार करीब एक हजार आईएएस अधिकारियों के कामों को रिव्यू कर रही है| इनमें से वे जिन्होंने 25 साल की सर्विस पूरी कर ली हो या फिर 50 की उम्र में पहुंच गए हों, उनकी ज्यादा सख्ती से निगरानी की जा रही है |

दूसरी और एक और आई ए एस कशिश मित्तल (IAS Kashish Mittal) के इस्तीफे (Resignation) की पुख्ता खबर है| कशिश इस दौर में नौकरी छोड़ने पहले अफसर नहीं हैं | सूत्रों के अनुसार 2011 बैच के आई ए एस अफसर कशिश मित्तल ने 6 सितंबर को केंद्र से मतभेदों के बीच इस्तीफा दे दिया| मित्तल अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम-यूनियन टेरिटरी कैडर के अफसर हैं, जो कि नीति आयोग के वाइस-चेयरमैन राजीव कुमार के एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी के तौर पर तैनात थे| 

इससे पहले दक्षिण कन्नड़ के डिप्टी कमिश्नर शशिकांत सेंथिल ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया| सेंथिल ने लिखा है कि मौजूदा दौर में जब हमारे विविधतापूर्ण लोकतंत्र के सभी संस्थान अभूतपूर्व तरीके से समझौता कर रहे हैं, ऐसे में उनका काम जारी रखना अनैतिक होगा |सेंथिल ने आगे लिखा है कि आने वाला वक्त हमारे देश के मूल स्वभाव के लिए और भी चुनौतीपूर्ण होने वाला है| इसलिए ये बेहतर होगा कि सेवा से बाहर रखकर लोगों के जीवन में भलाई लाने वाला काम करें| ऐसा ही कुछ कन्नन गोपीनाथन के साथ हुआ था | 2012 बैच के अफसर कन्नन गोपीनाथन ने भी अपनी नौकरी से इस्तीफा दिया है | कनन्न गोपीनाथ ने कश्मीर में जनता के मौलिक अधिकारों के हनन का सवाल उठाते हुए नौकरी छोड़ी थी| उनका मानना था कि सरकार ने अनुच्छेद 370 खत्म कर कश्मीर की जनता के साथ अन्याय किया है| जनवरी में शाह फैसल नामक अफसर ने राजनीतिक कारणों से नौकरी छोड़ी और कश्मीर में हो रही हिंसा को कारण बताया |

अब सवाल ये उठता है कि एक के बाद एक आईएएस अफसर नौकरी क्यों छोड़ रहे हैं? देश की जिस सबसे बड़ी और रसूख वाली सरकारी नौकरी हासिल करने का सपना हर युवा देखता है, उसको लोग छोड़ क्यों रहे हैं? कड़ी मेहनत से नौकरी हासिल करने के बाद एक झटके में इस्तीफा दे देने के पीछे असल वजह क्या है? इन तीनों आईएएस अधिकारियों ने सरकार से विरोध जताते हुए अपनी नौकरी छोड़ी है, तो क्या अफसरों का मौजूदा सरकार के साथ काम करना मुश्किल हो गया है? क्या सरकार अफसरों के साथ ज्यादा सख्ती दिखा रही है? या सरकार के संवैधानिक संस्थाओं को नुकसान पहुंचाने के जो आरोप लगते हैं वो सही हैं?

अफसरी छोड़ अपने काम करना या राजनीति में जाने के उदहारण मध्यप्रदेश में भरे पड़े हैं| अविभाजित मध्यप्रदेश में इंदौर के कलेक्टर को नौकरी से मुक्त कराकर स्व. अर्जुन सिंह राज्यसभा में ले गये थे| उसी दौर में वे एक आई पी एस अधिकारी को भी राज्यसभा ले जाना चाहते थे| ऐसा हो न सका | नौकरी छोड़ समाज के लिए कुछ करने का उदहारण स्व. महेश नीलकंठ बुच छोड़ गये हैं | उनके पीछे कुछ और अफसर चले जो स्कूल से लेकर ऑन लाइन फल सब्जी के व्यापार तक में जुट गये | पडौसी राज्य छत्तीसगढ़ में तो ओ पी चौधरी, भाजपा का झंडा थाम मैदान में कूद गये हैं | सवाल यह है ऐसा पहले इक्का दुक्का होता था अब थोक में क्यों ? जवाब अफसर के पास कम सरकार के पास ज्यादा है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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