भोपाल। प्रदेश सरकार नगरीय निकाय, पंचायत, सहकारी समितियों की तरह मंडी चुनाव भी फिलहाल कराने के पक्ष में नहीं है। चुनाव को अगले साल तक टालने के लिए मंत्रियों की समिति बना दी गई है। यह समिति मंडी चुनाव को जनोन्मुखी बनाने के लिए सुझाव देगी।
वहीं, नई समितियों को विघटित कर निर्वाचित मंडी समिति के गठन तक प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार भी मंडी अधिनियम में संशोधन कर सरकार ने ले लिया है। मालूम हो कि प्रदेश में 272 कृषि उपज मंडियां हैं। बीते डेढ़ साल से मंडी समितियों के चुनाव नहीं कराए गए हैं। पहले तो यहां निर्वाचित मंडी समितियों का छह माह का कार्यकाल बढ़ाया और फिर प्रशासकों के हवाले कर दिया।
शिवराज सरकार पहले ही 1 साल टाल चुकी है
सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए मंडियों के चुनाव पहले छह माह और एक बार फिर छह महीने के लिए टाल दिए। इसके लिए निर्वाचित संचालक मंडल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी उनका समय छह माह बढ़ाया गया। ऐसा दो बार करमंडियों में प्रशासक बैठा दिए गए। कमलनाथ सरकार आने के चंद माह बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता प्रभावी हो गई और चुनाव टल गए।
कांग्रेस किसी भी चुनाव का सामना नहीं करना चाहती
बताया जा रहा है कि सरकार फिलहाल किसी चुनाव में नहीं जाना चाहती है, इसलिए पहले व्यवस्थागत सुधारों को अंजाम दिया जा रहा है। इसके लिए सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ.गोविंद सिंह की अध्यक्षता में पंचायत और मंडी चुनाव में सुधार के लिए समिति बनाई है। समिति पंचायत चुनाव को लेकर तो अपनी सिफारिश सरकार को सौंप चुकी है पर मंडियों के मामले में मंथन चल रहा है।
सरकार ने अधिनियम में संशोधन पेश किया था, भाजपा ने आपत्ति नहीं की
इस बीच विधानसभा के मानसून सत्र में सरकार ने कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन अधिनियम पास करा लिया। इसके तहत सरकार समिति को विघटित करने में सक्षम होगी और उसके स्थान पर निर्वाचित मंडी समिति के गठन किए जाने तक भारसाधक अधिकारी (प्रशासक) नियुक्त करेगी। इसके मायने यह हुए कि इन समितियों में फिलहाल चुनाव नहीं कराए जाएंगे। अधिनियम के संशोधन को राज्यपाल की मंजूरी के बाद राजपत्र में प्रकाशित कर दिया है।