कश्मीर में कुछ नेता नजरबंद किये गये है | कुछ स्थानों पर प्रतिबन्धात्मक कार्यवाही हुई है | इंटरनेट बंद है | कश्मीर में पिछले कुछ दिनों से ऐसी गतिविधियां हो रही हैं, जिनका पूरा सच केवल केंद्र सरकार जानती है और वह शायद किसी उपयुक्त समय की तलाश में है, शायद वह अभी जरूरी नहीं समझती कि देश की जनता को इससे अवगत कराया जाए। अगर ऐसा है, तो ठीक नहीं है | कश्मीर देश की सारी जनता का उतना ही है, जितना इस सरकार का | वहां की गतिविधि जानने और समझने का हक सबको है | सरकार को जानकारी देकर संशय मिटाना चाहिए |
अब मीडिया रिपोर्ट्स भी कहने लगी है | पहले सोशल मीडिया पर जो आ रहा था, उसमे गृहमंत्रालय के एक आदेश की कॉपी तक सार्वजनिक हुई हैं |जिनमें सशस्त्र बल के कुमुक की विस्तृत जानकारी हैं | पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के मुताबिक नौकरशाह अफवाह फैला रहे हैं और लोगों को राशन, दवाइयां व वाहनों के लिए ईंधन जुटाने को कहा जा रहा है, क्योंकि अनिश्चितता का एक लंबा दौर आने की बात कही जा रही है। कांग्रेस के बड़े नेता चुप हैं, उनकी ओर दिग्विजय सिंह कश्मीर में सरकार की दखलंदाजी के गंभीर परिणाम की चेतावनी दे रहे हैं |
देश में सवाल उठने शुरु हो गए हैं। क्या केंद्र सरकार कश्मीर में किसी बड़े आपरेशन की तैयारी कर रही है? या किसी बड़े आतंकी हमले की आशंका के मद्देनजर सैन्य गश्त बढ़ रही है? खबरें ये भी हैं कि सरकार की ओर से आर्टिकल ३५ -ए को हटाने की उल्टी गिनती शुरु हो गई है और इसके विरोध को लेकर हिंसा या राज्य की शांति भंग करने के प्रयास हो सकते हैं। इसलिए इसे कंट्रोल करने की पूरी कोशिश की जाएगी। ताकि आम नागरिकों को कम से कम असुविधा हो।इस कारण अमरनाथ यात्रियों को लौटने की सलाह दे दी गई है |
भाजपा हमेशा से अनुच्छेद ३७० और ३५ ए को हटाने की बात करती रही है। देश के संविधान का वह आर्टिकल है जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा को लेकर प्रावधान करता है कि वह राज्य में स्थायी निवासियों को पारिभाषित कर सके। १४ मई १९५४ को राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था, जिसके तहत ये प्रावधान संविधान में जोड़ा गया। इस आर्टिकल के तहत जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग संपत्ति नहीं खरीद सकते और राज्य सरकार की नौकरी भी नहीं कर सकते।
वर्तमान में सैन्यबलों की अतिरिक्त कंपनियां तैनात करने पर इन अफवाहों को बल मिल रहा है, जिसे केवल केंद्र सरकार ही रोक सकती है। हालांकि भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई ने इन अनुच्छेदों हटाने की खबरों को साफ तौर पर खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि अतिरिक्त सुरक्षाबल चुनाव को देखते हुए भेजे जा रहे हैं।
इधर कश्मीर के राजनीतिक दल और ज़्यादा सुरक्षाबल भेजने के खिलाफ हैं। सारे देश में कुछ सवाल लगातार पूछे जा रहे है,कश्मीर में क्या चल रहा है? इस कश्मीर का क्या होगा? आर्टिकल ३५ -ए आखिको हटाकर भाजपा अपने चुनावी वादे को पूरा कर रही है ? प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के मन में क्या बात चल रही है, क्या देश कभी समझ सकेगा ? कई अन्य मामलों की तरह कश्मीर के मामले में देश वही सुनना पड़ेगा , जो सरकार चाहेगी? क्या १५ अगस्त पर तिरंगे में भ्रम, संशय, डर का को हरा सकेगा ? या इसके क्या सेना की जोशीली धुन की जगह सैन्य बूटों की खटखट सुनाई देगी? सरकार को साफ़ करना चाहिए यही जनहित और राष्ट्र हित है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।