सुरक्षित पेयजल अभी भी सपना | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। भले ही बादल जोरों से बरस रहे हो | देश के 16 करोड़ से अधिक नागरिकों के लिए सुरक्षित पेयजल अभी भी सपना है। देश की कोई 17 लाख ग्रामीण बसाहटों में से लगभग 78 प्रतिशत में पानी की न्यूनतम आवश्यक मात्रा तक पहुंच है।

अब तक हर एक को पानी पहुंचाने की परियोजनाओं पर 89956 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने के बावजूद, सरकार परियोजना के लाभों को प्राप्त करने में विफल रही है। आज महज 45053 गांवों को नल-जल और हैंडपंपों की सुविधा मिली है, लेकिन लगभग 19000 गांव ऐसे भी हैं, जहां साफ पीने के पानी का कोई नियमित साधन नहीं है। हजारों बस्तियां ऐसी हैं, जहां लोग कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाते हैं।

आंकड़े कोई साल भर पुराने यानि अगस्त 2018 के हैं। एक सरकार की ऑडिट रिपोर्ट में ही कहा गया था कि सरकारी योजनाएं प्रतिदिन प्रति व्यक्ति सुरक्षित पेयजल की दो बाल्टी प्रदान करने में विफल रही हैं जो कि निर्धारित लक्ष्य का आधा था। रिपोर्ट में कहा गया कि खराब निष्पादन और घटिया प्रबंधन के चलते सारी योजनाएं अपने लक्ष्य से दूर होती गईं।

भारत सरकार ने प्रत्येक ग्रामीण व्यक्ति को पीने, खाना पकाने और अन्य बुनियादी घरेलू जरूरतों के लिए स्थायी आधार पर गुणवत्ता मानक के साथ पानी की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध करवाने के इरादे से राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम सन‍् 2009 में शुरू किया था। इसमें हर घर को परिशोधित जल घर पर ही या सार्वजनिक स्थानों पर नल द्वारा मुहैया करवाने की योजना थी।

सरकार का लक्ष्य 2022 तक देश में शतप्रतिशत शुद्ध पेयजल आपूर्ति का था। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट बानगी है कि कई हजार करोड़ खर्च करने के बाद भी यह परियोजना सफेद हाथी साबित हुई है।ग्रामीण भारत में पेयजल मुहैया करवाने के लिए 10 वीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) तक अरब रुपये खर्च किये जा चुके थे। वैसे इसकी शुरुआत 1949 में हुई 40 वर्षों के भीतर 90 प्रतिशत जनसंख्या को साफ पीने का पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया। इसके ठीक दो दशक बाद 1969 में यूनिसेफ की तकनीकी मदद से करीब 255 करोड़ रुपये खर्च कर 12 मिशन और 1987 की राष्ट्रीय जल नीति के रूप में कई योजनाएं बनीं। उसके बाद 2009 से दूसरी योजना प्रारंभ हो गई।वर्तमान में करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल दूषित पानी के इस्तेमाल से बीमार पड़ते हैं। लगभग 15 लाख बच्चे दस्त से अकाल मौत मरते हैं। अंदाजा है कि पीने के पानी के कारण बीमार होने वालों से 7.3 करोड़ कार्य-दिवस बर्बाद होते हैं। इन सबसे भारतीय अर्थव्यवस्था को हर साल करीब 39 अरब रुपए का नुकसान होता है।

आंकड़े कहते हैं कि हर साल बारिश से कुल 4000 घन मीटर पानी प्राप्त होता है, जबकि धरातल या उपयोग लायक भूजल 1869 घन किलोमीटर है। इसमें से महज 1122 घन मीटर पानी ही काम आता है। यहां जानना जरूरी है कि भारत में औसतन 110 सेंटीमीटर बारिश होती है जो कि दुनिया के अधिकांश देशों से बहुत ज्यादा है। यहाँ इस बात को भी रेखांकित करना जरूरी है कि हम यहां बरसने वाले कुल पानी का महज 15 प्रतिशत ही संचित कर पाते हैं।

देश की 85 प्रतिशत ग्रामीण आबादी अपनी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है। संसद के पटल पर रखी गई जानकारी के मुताबिक करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड वाले पानी के घातक नतीजों से जूझ रहे हैं, इन्हें दांत खराब होने, हाथ-पैर टेड़े होने जैसे रोग झेलने पड़ रहे हैं। जबकि करीब एक करोड़ लोग अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के शिकार हैं। कई जगहों पर पानी में आयरन की ज्यादा मात्रा भी बड़ी परेशानी का कारण है। पानी के मामले में पूरी दुनिया में हम सबसे ज्यादा समृद्ध कहे जाते हैं, लेकिन पूरे पानी का कोई 85 प्रतिशत बारिश के दौरान समुद्र की ओर बह जाता है और नदियां सूखी रह जाती हैं। बढ़ती गर्मी, घटती बरसात और जल संसाधनों की नैसर्गिकता से लगातार छेड़छाड़ का ही परिणाम है कि कई नदियों की जलधारा मर गई।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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