नई दिल्ली। पी. चिदंबरम न्यायिक हिरासत में हैं | वे और उनके समर्थक इसे उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन मान रहे हैं | लेकिन ऐसा है नहीं | सब कुछ अनायास नहीं घटा है | यह केस बिलकुल अलग है, आरोप जो भी हों| जितने भी गंभीर हों| चिदंबरम के खिलाफ केस में अदालत की जो भी टिप्पणी हो| अग्रिम जमानत में वृद्धि का रिकार्ड बन गया हो | ये तो साबित हो गया कि पी. चिदंबरम कोई आम आरोपी नहीं हैं| बड़े आदमी हैं इसलिए उन्हें देश के कानून से खेलने का हक है | नेता हैं और अपने समर्थकों को अपने कृतित्व से संदेश देना चाहते है कि संविधान उसमें वर्णित संस्थाओं से वे उपर हैं | उन पर ये आरोप जिसमें वे अब हिरासत में हैं, केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार के हैं| ऐसा जाँच एजेंसी यानि सी बी आई की दलील है | फैसला अदालत करेगी | कुछ सवाल खड़े हैं | जैसे सब कुछ मालूम होते हुए सी बी आई से सहयोग न करना, कानूनविद होते हुए कानून का बेजा इस्तेमाल और देश की न्यायपालिका पर भरोसा न होना | आदि...आदि
सब जानते हैं पी. चिदंबरम केंद्र सरकार में गृह मंत्री और वित्त मंत्री रह चुके हैं, फिलहाल कांग्रेस के राज्य सभा सांसद हैं और पेशे से वकील हैं| हाई कोर्ट से चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद सी बी आई और ई डी के अफसर उनकी गिरफ्तारी के लिए उनके घर तक पहुंचे लेकिन नहीं मिलने पर खाली हाथ लौट आये| बाद में दरवाजे पर नोटिस चिपका दिया गया| गिरफ्तारी से बचाने के लिए चिदंबरम के वकीलों की ओर से स्पेशल लीव पेटिशन दायर कर हाई कोर्ट के आदेश से राहत देने की मांग की है| इसी बीच पत्रकार वार्ता, आँख मिचौली, गिरफ्तारी और अब हिरासत |सी बी आई और उसके बाद ई डी ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट फाइल की है, ये एजेंसियां चाहती हैं कि उनका पक्ष जाने बिना सुप्रीम कोर्ट इस केस में कोई फैसला न सुनाये| जैसे चिदम्बरम को जमानत मांगने का अधिकार है वैसे इन एजेंसियों को भी केवियट का अधिकार है |
उनके पक्ष में किसी भी कारण से खड़े लोगों के साथ ही किसी को इस बात से इंकार नहीं हो सकता कि चिदंबरम की ओर से जो भी कानूनी मदद लेने की कोशिश की जा रही है, वो उनका हक है| - लेकिन क्या सार्वजनिक जीवन में एक लंबा अरसा बिताने के बाद चिदंबर की ओर से ऐसे ही व्यवहार की अपेक्षा की जानी चाहिये? अच्छा तो ये होता कि पी. चिदंबरम देश के कानून का सम्मान करते और सी बी आई और ई डी अफसरों के साथ चले गये होते| जांच में सहयोग करते, जो कुछ भी होता सरे आम होता| उन्हें मालूम था की मामला क्या है ?इस मामले आखिर तमाम कोशिशों के बाद भी वो बेटे कार्ती चिदंबरम को भी गिरफ्तार होने से तो बचा नहीं पाये थे|
अगर चिदंबरम को यकीन है कि वो बेकसूर ही नहीं बल्कि कानूनी तौर पर भी उनके खिलाफ केस में दम नहीं है, फिर तो कोई बात ही नहीं| कानून और उसकी कमी वकील होने के नाते पी. चिदंबरम तो किसी भी आम शख्स से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से जानते हैं | फिर ये नहीं समझ आ रहा कि आखिर पी. चिदंबरम को डर किस बात का लग रहा था और लग रहा है ? कुछ कहावतें याद आ रही हैं १. -------दाढ़ी में तिनका २. ----------मौसरे भाई | एक सवाल और लोग मजाक में पूछ रहे हैं कि मामला उजागर होते ही चिदम्बरम भाजपा में आ जाते तो क्या होता ? मेरे पास पूर्व के कुछ उदहारण हैं, जवाब भाजपा या कांग्रेस के पास | दोनों को ऐसे मौकों पर आवाजाही और छद्म राजनीतिक शुचिता का अनुभव है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।