भोपाल। अधिकारी अधिकार संपन्न, सर्वशक्तिमान होते हैं। इसका उपयोग अपनी कमियों को छिपाने के लिए ढाल के रूप में सफाई से अपना बचाव कर अधिनस्थों पर बेजा कार्रवाई करते है, जो न्याय संगत नहीं हैं। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा है कि शिक्षा विभाग में कक्षा नवीं में छात्रों के कमजोर स्तर के लिए दोष देकर माध्यमिक विद्यालयों तीस हजार शिक्षकों को अनुशासनात्मक कार्रवाई के घेरे में लेने की तैयारी है। इसके बाद लाखों प्राथमिक शिक्षकों को भी इसी दायरे में लिया जा सकता है।
पूर्व में आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय, संभागीय लोक शिक्षण व जिला शिक्षा व जनपद शिक्षा केंद्र में पूरा अमला कार्यरत था। निरीक्षण की एडीआय प्रणाली से बेहतर परिणाम आते रहे है। प्रदेश में हजारों करोड़ का बजट राजीव गांधी व अब सर्व शिक्षा मिशन के नाम पर वर्ष 1995 से निरन्तर खर्च कर समानान्तर शिक्षा विभाग खड़ा कर रखा है जो राज्य, जिला व ब्लाक शिक्षा केंद्र के नाम पर स्थापित किये गये हैं। इनमें बच्चों को पढ़ाने के नाम पर भर्ती किये गये शिक्षकों को हजारों की संख्या में प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता रहा है जो पढ़ाने के बजाय शिक्षा विभाग की प्रयोगशाला का हिस्सा बनकर रह गये।
आरटीई के तहत परीक्षा प्रणाली हटाकर मूल्यांकन व कक्षा आठवीं तक किसी भी कक्षा में बच्चों को रोकने पर रोक लगाने से शिक्षा का स्तर गिरता चला गया। शिक्षकों का अधिकांश समय विद्यालयों में पढ़ाने से ज्यादा कागजी खानापूर्ती ने लगाना मजबूरी है। ये सफेद हाथी समानान्तर विभाग में कार्यरत होकर शिक्षकों को उलझाये रखते हैं। शिक्षा विभाग में नित नये प्रयोग, निरीक्षण का खौफ, अनुशासनात्मक कार्रवाई की तलवार शिक्षकों का मनोबल कमजोर करता हैं। शिक्षकों की भावना व जमीनी हकीकत से अलग, ग्रामीण परिवेश व गरीब तबके को अनदेखा कर "एसी" में बैठकर नीति निर्धारण कर विद्यालय स्तर पर थोपने से शिक्षा का स्तर गिरा है।
शिक्षा का स्तर कोई एक दिन में नहीं गिरा, इसमें लंबा समय लगा इसके लिए अकेला शिक्षक दोषी कैसे हो सकता है ? आयुक्त से लेकर निचले स्तर तक हिम्मत करके अधिकारी वर्ग शिक्षा के गिरते स्तर के लिए सबसे पहले अपने ऊपर अनुशासनात्मक कार्रवाई प्रचलित करे व आदर्श बनाये खुद के गरेबान में झाँके चूक कहाँ हुई, मंथन करे यह सब आपके रहते हुआ है । फिर आप जवाबदेही से कैसे बच सकते हो ? शिक्षकों से गैर शिक्षकीय कार्य जिसमें विभाग की कागजी कार्रवाई भी शामिल है बंद कर ईमानदारी से केवल और केवल बच्चों को पढ़ाने दें फिर देखिये चमत्कार । बच्चों को पढ़ाने नहीं देते, परिणाम चाहते है जो असंभव है । बगैर बीजारोपण के केवल खरपतवार ही पा सकते हैं फसल की आशा बेकार है ।
शिक्षकों को विश्वास में लिए बगैर बेजा कार्रवाई से मनोबल कमजोर होगा टकराव व आंदोलन की स्थिति निर्मित होगी जो चौतरफा चोट करेगा इससे छात्र, समाज व शिक्षा विभाग को नुकसान ज्यादा, फायदा कम होगा । सरस्वती पुत्र "चाणक्य" सोचते है कि कब मुझे विद्यालय में बच्चों को केवल पढ़ाई का अवसर मिले ताकि मैं उनका सर्वांगीण विकास कर सकूँ ? गेंद शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों के पाले में हैं मर्ज की सही दवा की जाए । उल्टे एक्स-रे देखकर टूटे पैर के बजाय सलामत पैर पर प्लास्टर चढ़ाने वाली घटना सामने आती रही है, बात शिक्षा विभाग में चल रही है । इस पर गहन समीक्षा की आवश्यकता है । शिक्षकों को जलील करना बंद कर प्रोत्साहन के प्रयास ज्यादा परिणाम दायी होंगे जो सबके हित में है।