हुनर –बेहुनर सब बेरोजगार | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। कहने को भारत युवाओं का देश है | हर साल एक करोड़ से ज्यादा पढ़े-लिखे [लेकिन सब हुनरमंद नहीं ] युवा देश में नौकरी के लिए कालेजों से निकलते हैं | सबको नौकरी नहीं मिलती, सब खुद का रोजगार नहीं कर पाते हैं सबकी कुछ न कुछ कठिनाईयां हैं |किसी को बैंक अपात्र मानकर लोन नहीं देती, किसी के हाथ में हुनर की कमी होती है | सरकार ने दो महती योजना मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया शुरू की | परिणाम निराश करने वाले हैं |

क्या यह चिंता की बात नहीं है कि मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसी योजनाएं उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं दे पाई हैं। भारत में औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने और बड़ी तादाद में लोगों को रोजगार दिलाने का इनका उद्देश्य अधूरा दिखाई दे रहा है। नैशनल स्किल डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसडीसी) के आंकड़े बताते है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में स्किल्ड वर्कफोर्स की जरूरतों के मुताबिक रोजगार ही नहीं पैदा हो रहा है । जब हुनरमंदो की यह दशा है तो सफेद कालर वाली नौकरी कितनी हैं और किसे तथा कैसे मिलेगी ?

एनएसडीसी की वार्षिक रिपोर्ट 2018 के अनुसार उसने 40 कौशल विकास कार्यक्रमों के तहत 11035 प्रशिक्षण केंद्रों में 39.8 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया, लेकिन उनमें से सिर्फ 12 प्रतिशत को ही काम मिल सका। सन 2008 में गठित कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के अंतर्गत प्राइवेट-पब्लिक सहयोग से गठित एनएसडीसी सरकार के अल्पकालिक कौशल विकास कार्यक्रम का संचालन करता है।

कुछ अन्य रिपोर्टों में भी प्रशिक्षित युवाओं को जॉब न मिलने को लेकर चिंता जताई गई है। हाल में जारी पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे रिपोर्ट (2017-18) के अनुसार सर्वे पीरियड में 33 प्रतिशत हुनरमंद युवा बेरोजगार थे। 2018-19 में यह आंकड़ा 40 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। पहले ऐसा माना जाता था कि लोगों को रोजगार इसलिए नहीं मिल रहे कि वे स्किल्ड नहीं हैं लेकिन अभी तो प्रशिक्षित लोगों को भी खाली बैठना पड़ रहा है। जाहिर है, इसका संबंध इकॉनमी की सुस्ती से है। विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियां देश में सामान बनाने की बजाय बाहर से मंगवा रही हैं। यानी हम सामान के बजाय नौकरियों का निर्यात कर रहे हैं! एक बड़े सवाल का जवाब देश को ढूंढना होगा कि कंपनियां खुद सामान बनाने की बजाय आखिर उनका आयात क्यों कर रही हैं? इसका एक कारण स्थायी निवेश के लिए वित्त जुटाना भारतीय कंपनियों के लिए कठिन है और आयात वे इसलिए करती हैं कि क्योंकि इसके लिए सुगमता से कर्ज मिलता है।

भारत युवाओं का देश हैं, जहां हर साल एक करोड़ युवा जॉब मार्केट में आते हैं। उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है लेकिन रोजगार संबंधी रिपोर्टें बताती हैं कि रोजगार के नए अवसर बहुत कम पैदा हो रहे हैं। जॉब की संख्या और निपुणता में एक तरह की खाई हमेशा बनी रहेगी, पर अभी तो हालात बेहद खराब हैं। हमें कुछ समय, पहले वाले चीन जैसी तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था की जरूरत है, क्योंकि हमारी जनसंख्या तकरीबन उसके बराबर ही है। हमें 12 से 13 प्रतिशत की ग्रोथ हासिल करनी होगी वरना बेरोजगारी की हालत गंभीर होती जाएगी। विकल्प के रूप में गुजरात मॉडल को देश भर में लागू किया जा सकता है, ऐसा विशेषज्ञों का मानना है | गुजरात की तरह उद्योगों को आसानी से जमीन, कर्ज और औद्योगिक शांति की गारंटी मिले। केंद्र और राज्य सरकारों को इस संबंध में फौरन कुछ करना चाहिए | विपरीत परिस्थिति बेहद गंभीर हो सकती है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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