VG SIDDHARTHA STORY: कॉफी ने करोड़पति बनाया था, आईटी ने मार डाला

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। देश भर में 'कैफे कॉपी डे' चेन स्थापित करने वाले कॉफी डे एंटरप्राइजेज के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर वी जी सिद्धार्थ नहीं रहे। उनका शव नदी में मिला है। उन्होंने पहले ही एक सुसाइड नोट छोड़ दिया था। वी जी सिद्धार्थ की जिंदगी किसी को भी प्रेरणा देने वाली है। कॉफी ने उन्हे करोड़पति बना दिया था लेकिन आईटी ने मार डाला। 

वी जी सिद्धार्थ आईटी कंपनी माइंडट्री में अपना पूरा स्टेक बेचने को लेकर चर्चा में आए थे। कर्नाटक के चिकमंगलूर में कॉफी प्लांटर्स के परिवार में जन्मे सिद्धार्थ कॉफी में मिली सफलता के बाद आईटी कंपनियों में दिलचस्पी लेने लगे थे। आज कल हर कोई आईटी कारोबार में रुचि ले रहा है क्योंकि कहा जाता है कि आईटी में रातों रात करोड़पति बना जा सकता है। 

घायल इंफोसिस को रेस्क्यू किया था

1993 में जब इंफोसिस ने आईपीओ लॉन्च किया तो इशू अनसब्सक्राइब्ड रह गया था। तब सिद्धार्थ और इनाम सिक्योरिटीज के वल्लभ भंसाली ने ऑफर को अंडरराइट किया था और उसे सफल बनाया। वही इंफोसिस देश की दूसरी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी के मुकाम तक पहुंच चुकी है। सिद्धार्थ के इंफोसिस के फाउंडर नंदन नीलेकणि से भी करीबी संबंध बन गए थे और उन्हें वह अपना 'बड़ा भाई' कहते थे। नीलेकणि ने कॉफी डे एंटरप्राइज के आईपीओ में निवेश किया था। 

कॉफी डे में कई आईटी कंपनियों ने जन्म लिया

सिद्धार्थ भारत के शुरुआती वेंचर कैपिटल इनवेस्टर्स में शामिल हैं। उन्होंने ग्लोबल टेक्नॉलजी वेंचर्स के साथ मिलकर ऐसे फाउंडर्स पर दांव लगाया, जिन्होंने टेक्नॉलजी कंपनियां खड़ी कीं। 1999 में उन्होंने आईवेगा कॉर्प, क्षेम टेक्नॉलजीज और माइंडट्री में निवेश किया था। बाद में आईवेगा 50 लाख डॉलर में बिकी, वहीं एमफैसिस ने क्षेम को 2.1 करोड़ डॉलर में खरीदा था। आईवेगा के फाउंडर गिरि देवानर ने कहा, 'आईवेगा दरअसल ब्रिगेड रोड पर कॉफी डे में ही शुरू हुई थी क्योंकि वहां इंटरनेट था। उनकी दिलचस्पी इसमें रहती थी कि ये युवा लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। मेरा उनसे वहीं परिचय हुआ। उन्होंने आईवेगा में 10 करोड़ लगाए थे।' 

माइंडट्री में निवेश जानलेवा साबित हुआ

सिद्धार्थ का हालांकि सबसे बड़ा दांव माइंडट्री रही। निवेश के दो दशक बाद उन्होंने 20.31% स्टेक बेचा तो 2850 करोड़ रुपये से ज्यादा प्रॉफिट हासिल किया। सिद्धार्थ को देश में पहला साइबर कैफे ब्रिगेड रोड वाले कॉफी डे आउटलेट में खोलने का श्रेय दिया जाता है। यही मॉडल बाद में इंटरनेट के प्रसार में काफी सहायक हुआ। 

साल 1994 में शुरू की 'कैफे कॉफी डे' 

सिद्धार्थ ने इंडिया की पहली पॉपुलर कैफे चेन कैफे कॉफी डे की शुरुआत 1994 में बेंगलुरु के ब्रिगेड रोड इलाके में पहले आउटलेट के साथ की थी। सिद्धार्थ शुरू में इंडियन ऑर्मी जॉइन करना चाहते थे, लेकिन मैंगलोर यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक्स में मास्टर्स डिग्री लेने के बाद उन्होंने इन्वेस्टमेंट बैंकर बनने की राह पकड़ी। 

कॉपी ने बनाया करोड़पति

1984 में उन्होंने अपनी इन्वेस्टमेंट एंड वेंचर कैपिटल फर्म सिवन सिक्योरिटीज खोली और अपनी इस स्टार्टअप से हासिल प्रॉफिट को चिकमंगलूर जिले में कॉफी के बाग खरीदने में लगाने लगे। 1993 में उन्होंने कॉफी ट्रेडिंग कंपनी अमलगमेटेड बीन कंपनी खोली। जर्मन कॉफी चेन Tchibo के मालिकों से बातचीत से प्रभावित होकर उन्होंने कैफे कॉफी डे का पहला आउटलेट बेंगलुरु के ब्रिगेड रोड इलाके में 1994 में खोला था और इसकी टैग लाइन थी 'अ लॉट कैन हैपेन ओवर अ कप ऑफ कॉफी।' आज यह भारत की सबसे बड़ी कैफे चेन है। 200 से ज्यादा शहरों में इसके 1,750 कैफे हैं। 

पार्टनर, दोस्त और आयकर के कारण टूट चुका हूं

सिद्धार्थ का 27 जुलाई को कंपनी के नाम लिखा पत्र सामने आया है। इसमें कर्जदाताओं और प्राइवेट इक्विटी पार्टनर के दबाव का जिक्र है। उन्होंने लिखा था कि बतौर व्यवसायी नाकाम रहा। पत्र में सिद्धार्थ ने लिखा, ‘‘बेहतर प्रयासों के बावजूद मैं मुनाफे वाला बिजनेस मॉडल तैयार करने में नाकाम रहा। मैंने लंबे समय तक संघर्ष किया लेकिन अब और दबाव नहीं झेल सकता। एक प्राइवेट इक्विटी पार्टनर 6 महीने पुराने ट्रांजेक्शन से जुड़े मामले में शेयर बायबैक करने का दबाव बना रहा है। मैंने दोस्त से बड़ी रकम उधार लेकर ट्रांजेक्शन का एक हिस्सा पूरा किया था। दूसरे कर्जदाताओं द्वारा भारी दबाव की वजह से मैं टूट चुका हूं। आयकर के पूर्व डीजी ने माइंडट्री की डील रोकने के लिए दो बार हमारे शेयर अटैच किए थे। बाद में कॉफी डे के शेयर भी अटैच कर दिए थे। यह गलत था जिसकी वजह से हमारे सामने नकदी का संकट आ गया।’’ 

सारी जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं

‘‘मेरी विनती है कि आप सभी मजबूती से नए मैनेजमेंट के साथ बिजनेस को आगे बढ़ाते रहें। सभी गलतियों के लिए मैं जिम्मेदार हूं। सभी वित्तीय लेन-देनों के लिए मैं जिम्मेदार हूं। मेरी टीम, ऑडिटर्स और सीनियर मैनेजमेंट को मेरे ट्रांजेक्शंस के बारे में जानकारी नहीं है। कानून को सिर्फ मुझे जिम्मेदार ठहराना चाहिए। मैंने परिवार या किसी अन्य को इस बारे में नहीं बताया।’’ 

हमारी संपत्तियों से देनदारी चुकता कर सकते हैं

‘‘मेरा इरादा किसी को गुमराह या धोखा देने का नहीं था। एक कारोबारी के तौर पर मैं विफल रहा। उम्मीद है कि एक दिन आप समझेंगे, मुझे माफ कर दीजिए। हमारी संपत्तियों और उनकी संभावित वैल्यू की लिस्ट संलग्न कर रहा हूं। हमारी संपत्तियां हमारी देनदारियों से ज्यादा हैं। इनसे सभी का बकाया चुका सकते हैं।’’

सिद्धार्थ ने पिछले महीने माइंडट्री कंपनी में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेची थी

सिद्धार्थ ने पिछले महीने आईटी कंपनी माइंडट्री में अपनी पूरी हिस्सेदारी लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) को 3,000 करोड़ रुपए में बेची थी। इससे पहले वे 21% होल्डिंग के साथ माइंडट्री के सबसे बड़े शेयरधारक थे। कॉफी के बिजनेस में सफल कारोबारी के तौर पर उनकी खास पहचान है। कर्नाटक में उनके पास 12,000 एकड़ जमीन में कॉफी का प्लांटेशन है। इस साल मार्च तक देशभर में सीसीडी के 1,752 कैफे थे।

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