यह बजट : कसैले स्वाद की जलेबी | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। कोई काम बेवजह नहीं होता| हर कम के पीछे कुछ कारण होते हैं | ये बजट भी जुलाई में पेश किए जाने का कारण नियंत्रक महालेखा द्वारा दिए गए अनंतिम वास्तविक अनुमान हैं जो फरवरी 2019 में पेश अंतरिम बजट में दिखाए गए संशोधित अनुमानों से काफी अलग हैं। बजट पूर्वानुमान में दर्ज वृद्धि दर के आधार रूप में अनंतिम वास्तविक आंकड़ा कुल प्राप्तियों का 25 प्रतिशत  और कुल व्यय का 20.5 प्रतिशत है। 

राजस्व पूर्वानुमान वास्तविक नहीं  लग रहे हैं। वास्तविक वृद्धि दर के सात प्रतिशत रहने और मुद्रास्फीति के 3 से 5 के बीच रहने पर सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि निर्भर करेगी। राजस्व अनुमान में 2 प्रतिशत से अधिक लचीलापन है, ऐसा होने के आसार कम  हैं। वर्ष 2018-19 के अनंतिम वास्तविक राजस्व में आई 1.67 लाख करोड़ रुपये की कमी का संज्ञान नहीं लेना भी बताता है  कि घाटे का आंकड़ा लक्ष्य के भीतर रखने के लिए यह कवायद हुई है. वास्तविक घाटा बजट के 3.3 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक 4 प्रतिशत रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। नतीजा सब्सिडी पर कटौती के रूप में सामने आ सकता है. निर्मला सीतारमन द्वरा पेश बजट जलेबी सरीखा दिखता है, पर स्वाद मीठा नही होगा | स्वाद कसैला होगा ।  

उदाहरण की अब भी कोई जरूरत है वित्त वर्ष 2019 के बजट में सरकार ने अपनी परिसंपत्तियों की बिक्री से 1.05 लाख करोड़ रुपये आने का अनुमान जताया है जो 2018-19 में हासिल 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक है। सरकार की तरफ से परिसंपत्ति बिक्री कर्ज के बोझ से दबे प्रवर्तक द्वारा अपनी देनदारियां पूरी करने के लिए कुछ परिसंपत्तियों की बिक्री से कोई खास अलग नहीं है। मुख्य आर्थिक लाभ तब होगा जब परिसंपत्ति बिक्री के साथ प्रबंधन भी किसी निजी खरीदार के पास चला जाए ताकि वह इस संपत्ति का बेहतर इस्तेमाल कर सके। यह सब साफ़ करता है कि जलेबी का स्वाद ठीक नहीं है | इससे  कुछ शेयरों की सीधी बिक्री या ईटीएफ के जरिये बिक्री होने से वित्त मंत्रालय को घाटे की लक्षित सीमा के भीतर टिके रहने भर में मदद मिलेगी | इस बजट में केंद्र सरकार का प्रत्यक्ष पूंजीगत व्यय गत वर्ष की तुलना में 11.8 प्रतिशत अधिक रखा गया है जबकि राजस्व व्यय 21.9 प्रतिशत ज्यादा है। वैसे सरकार की उधारी जरूरत मुख्य रूप से बाजार उधारी से पूरी होती है और एक तिहाई वित्त छोटी बचत एवं भविष्य निधि कोषों से आती है। वर्तमान प्राप्तियों और व्यय के बीच का अंतर ही उधारी जरूरत को दर्शाता है। इस साल केंद्र सरकार की बाजार उधारी जीडीपी का करीब 2.2 प्रतिशत  रहने का अनुमान है।बजट में मध्यम अवधि के अनुमानों को देखें तो लक्ष्य को हासिल कर पाना संभव नहीं लगता है। 


राज्य सरकारों एवं सार्वजनिक उपक्रमों से आने वाली मांगों को भी जोड़ लें तो कुल सार्वजनिक उधारी जरूरत जीडीपी का करीब 9 प्रतिशत होगी जो परिवार के स्तर की समूची वित्तीय बचत को ही निगल जाएगी । इस बजट में सरकार ने यह ऐलान किया है कि वह उधारी जरूरतों का कुछ हिस्सा बाहरी स्रोतों से भी जुटाना चाहती है। शायद सरकार के कुछ लोगों ने यह अंदाजा लगाया है कि अपनी सॉवरेन निवेश रेटिंग के चलते इसमें कितनी लागत आएगी? ऋण बाजार की हालत भी वृहद-आर्थिक परिदृश्य के लिए एक बड़ी चिंता की बात है। भले ही बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या काबू के भीतर आती हुई लग रही है लेकिन एनबीएफसी क्षेत्र का संकट अब तक हल नहीं हुआ है। एनबीएफसी नकदी की कमी से जूझ रहे प्रवर्तकों, प्रॉपर्टी डेवलपरों, छोटे उद्योगों और घर एवं टिकाऊ उत्पाद के खरीदारों के लिए फंड जुटाने का महत्त्वपूर्ण जरिया रही हैं। लेकिन अब उनसे कर्ज नहीं मिल पाने से निजी निवेश को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य हासिल करने में भी अड़चन आएगी।  इस बजट में राजकोषीय प्रबंधन में कुछ जोखिम उठाया गया है और घाटा (एवं सरकारी उधारी जरूरत) इसके पूर्वानुमान से कहीं अधिक हो सकता  है। जो जलेबी के स्वाद को कसैला कर देगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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