देश में “जल क्रांति” की जरूरत, सब जुट जाओ | EDITORIAL by Rakesh Dubey

देश गंभीर जल संकट की ओर बढ़ रहा है | आगामी वर्षों में इसके और अधिक गहराने की सम्भावना है | वर्तमान में भी देश के कई इलाके गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं और  मॉनसून बहुत कमजोर दिख रहा है | महानगरों में बरसते पानी का कुप्रबन्धन सब देख रहे है | बरसते मानसून के प्रबन्धन की सारी योजनायें कागजी साबित हुई जल निष्कासित करने की प्रणाली पर कोई काम नहीं हुआ, तो जल संचय की बात तो बहुत दूर है | अब इसमें सुधार की उम्मीद भी बहुत कम बची है| इस स्थिति के लिए सरकारों और समाज की लापरवाही और कुप्रबंधन जिम्मेदार है| जरूरत आज देश में “एक जल क्रांति” की है | सरकार, समाज के साथ हर व्यक्ति की इस “ जल क्रांति” भी भागीदारी जरूरी है | देश की हालत यह है की विकास की मांग, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से मौसम का मिजाज बदलता जा रहा है| ऐसे में पानी को समझ-बूझ के साथ इस्तेमाल करने के साथ उसे बचाने और जमा करने की कवायद पर जोर देने की जरूरत है| अकेले  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  रेडियो संबोधन से कोई बात नहीं बनने वाली,  सरकार का आगामी पांच सालों में घर-घर तक पेयजल पहुंचाने के संकल्प है, पर इस संकल्प पर जोरदार तरीके से सबको काम करने की जरूरत है | देश के सारे नागरिकों को क्रांति की भांति जल बचाओ में जुट जाना चाहिए |

अभी तो कमजोर मॉनसून और समुचित जल वितरण के अभाव में भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है| इसका एक भयावह नतीजा चेन्नई के मौजूदा संकट के रूप में सामने है| देश के १७  राज्यों के कम-से-कम २५६  जिलों में भूजल का स्तर बहुत नीचे जा चुका है| इन जिलों में देश के कई बड़े शहर भी बसे हुए हैं| यह सब किसी दिन जल विहीन हो जायेंगे, यदि समाज अभी जागृत नहीं हुआ तो | लड़ाई आसान नहीं है, जल  दोहन को नियंत्रित करने के साथ बारिश और अन्य स्रोतों के पानी को सहेजकर भूजल के स्तर को बढ़ाना की एक मात्र विकल्प है| जमीन के भीतर पानी संरक्षित हो, इसके लिए झील, तालाब, पोखर आदि का बचे और बने रहना भी बहुत जरूरी है|  बहुत साल नहीं बीते  है, जब देश में ऐसे छोटे-बड़े जलाशयों की संख्या ३०  लाख के आसपास थी, परंतु आज महज १०  लाख ही शेष रह गये हैं| अनियंत्रित शहरीकरण और दिशाहीन विकास ने इन पर बस्तियां बसा लीं या कुछ और निर्माण कर दिया है| परिणाम स्वरूप शहरों में कभी बाढ़ और कभी सूखे की स्थिति दिखती है, जो चेन्नई आज पानी के लिए तरस रहा है, वह २०१५  में बाढ़ में डूब रहा था| चेन्नई के अलावा २००५  में मुंबई में तथा २०१३  में उत्तराखंड में आयी विनाशक बाढ़ का एक मुख्य कारण जलाशयों पर अतिक्रमण ही सामने आया है | यह अतिक्रमण आज भी मौजूद है| जलाशयों के शहर भोपाल में, जलाशय नदारद है, कई छोटे तालाबों को बसाहट निगल गई है |  

ज्यादा पुरानी बात नहीं है बीते साल हिमालय की गोद में और नदियों-सोतों के बीच बसे शिमला में पानी का संकट  हो गया था, तो कुछ साल पहले अत्याधिक ऊंचाई पर बसे श्रीनगर में बाढ़ ने कहर ढा दिया था|  अभी देश के ९१ बड़े जलाशयों में से ११ के  पूरी तरह सूख जाने की खबर  है|  शेष जलाशयों में सामान्य से बहुत कम पानी बचा हुआ है| नदियों में बहुत कम पानी होने के कारण नहरों से भी आपूर्ति बहुत प्रभावित हुई है| चूंकि देश में करीब ८५ प्रतिशत पानी सिर्फ खेती में खप जाता है,उसके  बचाव के लिए खेती के तरीकों में बदलाव पर विचार जरूरी है| अन्य नागरिक जरूरत का ४० प्रतिशत से पानी भूजल से आता है,  उसे बढ़ाने के लिए हर नागरिक का योगदान जरूरी है उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें जल संरक्षण को “जल क्रांति” की तर्ज पर लेकर पहल करेगी | और कोई विकल्प शेष नहीं है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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