नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में शिकस्त के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे को लेकर अब भी पसोपेश की स्थिति है। इसके चलते पार्टी की स्टेट यूनिट्स में आपसी कलह की स्थिति पैदा हो गई है। केंद्रीय नेतृत्व की शिथिलता की वजह से ऐसी आपसी रार बढ़ती ही जा रही हैं। पंजाब से लेकर कर्नाटक तक पार्टी को आंतरिक संघर्ष का सामना करना पड़ा रहा है। यही नहीं सीनियर नेताओं को चिंता है कि यदि राहुल गांधी अपना इस्तीफा वापस नहीं लेते हैं तो स्थिति और विकट हो सकती है।
दिग्गज कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने सार्वजनिक रूप तौर पर कहा है कि पार्टी के उन साथी नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी को अपने इस्तीफे को लेकर अनिश्चितता की स्थिति खत्म करनी चाहिए। सीनियर नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी को मजबूती से अध्यक्ष पद काम करना चाहिए और राज्य यूनिटों में दखल देकर आपसी कलह खत्म करानी चाहिए।
मोइली बोले, पार्टी को सही हाथों में देकर ही पद छोड़ सकते हैं राहुल
शनिवार को हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में मोइली ने कहा, 'उन्हें फैसला लेना चाहिए। यह पार्टी के अध्यक्ष पद को छोड़ने का समय नहीं है। राहुल गांधी को याद रखना चाहिए कि इंदिरा को भी 1977 में ऐसे वक्त का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला लिया। उन्हें पार्टी की कमान संभालनी चाहिए, राज्यों की यूनिटों के विवादों के निपटारे करते हुए संगठन की दिशा तय करनी चाहिए।'
आम चुनाव में कांग्रेस को महज 52 सीटें ही मिली हैं, जो कि 2014 के मुकाबले सिर्फ 8 सीट ही अधिक है। पार्टी की इस करारी हार के चलते उसकी राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे अहम राज्यों की यूनिटों में संघर्ष की स्थिति है। फिलहाल सीधे मुकाबले में निश्चित तौर पर कांग्रेस से बीजेपी मजबूत दिख रही है, लेकिन अब आपसी संघर्ष ने पार्टी के लिए और मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
कांग्रेस में 2 कार्यकारी अध्यक्षों पर बनती दिख रही सहमति
फिलहाल पार्टी में इस बात को लेकर भी चर्चा है कि राहुल गांधी के इस्तीफे को वापस न लेने पर वर्किंग प्रेजिडेंट या फिर नेताओं की कमिटी को काम के लिए नियुक्त किया जा सकता है। बता दें कि 17 जून से ंसंसद का सत्र भी शुरू हो रहा है और कांग्रेस को उससे पहले ही तय करना होगा कि लोकसभा में पार्टी के नेता के तौर पर प्रतिनिधित्व कौन करेगा।
हरियाणा में छिड़ी हु़ड्डा बनाम तंवर की जंग
कुछ दिन पहले ही हरियाणा की स्टेट यूनिट में भी तीखे मतभेद दिखे थे। भविष्य की रणनीति के लिए हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा ने विधायकों और सीनियर नेताओं की मीटिंग बुलाई थी। इस दौरान हुड्डा ने प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को भी हटाने की मांग की। हुड्डा गुट का मानना है कि राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी पार्टी कोई सबक लेती नहीं दिख रही है। दूसरी तरफ उनका विरोधी गुट यह कहते हुए हमला बोल रहा है कि हुड्डा और बेटे की उन सीटों पर भी हार हो गई, जिन्हें जाट बहुल माना जाता है।
महाराष्ट्र में कांग्रेस में भगदड़ से बढ़ी मुश्किल
महाराष्ट्र की बात करें तो पूर्व सीएम अशोक चव्हाण भी विरोध झेल रहे हैं, लेकिन फिलहाल उनका कोई रिप्लेसमेंट नहीं दिखता। कई दिग्गज मराठा नेताओं ने हाल के दिनों में बीजेपी जॉइन की है और कहा जा रहा है कि कुछ और विधायक भगवा कैंप जॉइन कर सकते हैं।
कर्नाटक में हार के बाद से 'नाटक'
कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस संयुक्त सरकार चला रहे हैं, लेकिन यहां 28 में से 25 सीटों पर जीत हासिल कर बीजेपी ने गठबंधन पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस और जेडीएस को सूबे में 1-1 सीट पर ही जीत मिली है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कुछ निर्दलियों को भी पार्टी अहम पद देने के मूड में है।
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर और सिद्धू में बढ़ी रार
कांग्रेस ने पंजाब में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करते हुए 13 में से 8 सीटें हासिल की हैं। हालांकि यहां भी सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह सिद्धू पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। हाल ही में उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू के कद को कम करते हुए उनका मंत्रालय भी बदला है। गौरतलब है कि आम चुनाव में हार के बाद ही कैप्टन ने कहा था कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष को गले लगाने के चलते ऐसे नतीजे आए हैं, यह सीधे तौर पर सिद्धू पर उनका वार था।
मध्य प्रदेश में भी राह नहीं आसान, दिग्विजय की हार से गिरा मनोबल
मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ के सहयोगियों पर इलेक्शन फंड से जुड़े मामले में इनकम टैक्स के छापे के बाद से राज्य में सरकार की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। यहां की 29 सीटों में से बीजेपी को महज 28 पर ही जीत मिली है। भोपाल लोकसभा सीट से 3,50,000 मतों से दिग्विजय सिंह की हार ने भी पार्टी क मनोबल तोड़ा है।