ताप्ती नदी से प्रकट हुआ संगेखारा पत्थर का प्राचीन दुर्लभ अखंड शिवलिंग | MP NEWS

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बुरहानपुर। यहां ताप्ती नदी के राजघाट पर संगेखारा पत्थर का प्राचीन अखंड शिवलिंग प्रकट हुआ है। 'प्रकट होना' इसलिए क्योंकि इस घाट पर पुरातत्वविदों की खोजबीन वर्षों से चली आ रही है परंतु यह शिवलिंग अब उद्घाटित हुआ है। माना जा रहा है कि यह शिवलिंग करीब 1000 साल पुराना होगा। पुरातत्वविदों का कहना है कि यह प्राकृतिक नहीं बल्कि हस्तनिर्मित शिवलिंग है जो यह प्रमाणित करता है कि बुरहानपुर शहर का अस्तित्व फारूखी काल से भी पहले रहा है। ऐसे शिवलिंग मिलना दुर्लभ माना जाता है।

पुरातत्वविदों के अनुसार ऐसे शिवलिंग इस बात का प्रमाण देते हैं कि शहर की सभ्यता कितनी प्राचीन है। हथिया के नीचे शिवलिंग मिलने की खबर फैलते ही यहां दर्शन-पूजन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। पुरातत्वविद् कमरूद्दीन फलक ने बताया कि शिवलिंग गहरे काले रंग के पत्थर का बना है। इस पत्थर को संगेखारा कहा जाता है। शिवलिंग की सबसे खास बात इस पर बना नाग है, जो काफी कम देखने को मिलता है। एक ही पत्थर को तराश कर अखंड शिवलिंग बनाया गया है। चट्‌टान के नीचे जिस हिस्से में यह मिला है, वह नदी के बहाव के विपरीत है। इस कारण बाढ़ और पानी के बहाव में भी यह बहा नहीं। शिवलिंग यहां कैसे आया, यह बता पाना मुश्किल है। लेकिन यह प्राचीन है और इसका संरक्षण करना जरूरी है।

पहले भी मिले हैं प्राचीन शिवलिंग, नंदी और मंदिर

ताप्ती नदी में इससे पहले भी प्राचीन शिवलिंग, नंदी और मंदिर मिले है। नदी में बीचोंबीच कई स्थानों पर शिवलिंग और मंदिर है। इससे पहले नदी में जो नंदी मिला था, वह एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। इसे पुरातत्व विभाग को दे दिया गया था। इससे यह भी सिद्ध होता है कि बुरहानपुर शहर फारूखी काल का नहीं, बल्कि यहां की सभ्यता इससे भी प्राचीन है।

असीरगढ़ की जामा मस्जिद में हुआ है ऐसे पत्थर का उपयोग

असीरगढ़ में बनी जामा मस्जिद में भी काले रंग के संगेखारा पत्थर का उपयोग हुआ है। गहरे काले रंग का यह पत्थर काफी मजबूत होता है। पुरातत्वविद् कमरूद्दीन फलक ने बताया कि पानी के कारण शिवलिंग पर काई और कैल्शियम की परत जम गई है। यह वास्तव में यह कितना पुराना है, इसकी जांच कार्बन डेटिंग से ही संभव है।
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