जबलपुर। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार आरोप लगाती है कि भाजपा को चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए बिजली कंपनी के कर्मचारियों ने अघोषित कटौती की। कांग्रेस का यह आरोप अभी तक प्रमाणित नहीं हो पाया है परंतु यह जरूर प्रमाणित हो गया कि कांग्रेस को चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए बिजली कंपनियां लगातार बिजली के दाम निर्धारण करने की प्रक्रिया को टालतीं रहीं और विद्युत नियामक आयोग को अधूरी जानकारियां भेजकर प्रक्रिया को लम्बा बनातीं रहीं।
यह खेल विद्युत नियामक आयोग के सार्वजनिक सूचना से उजागर हुआ है। विद्युत नियामक आयोग द्वारा 31 मई को जारी की गई सार्वजनिक सूचना के अनुसार लोकसभा चुनाव के पूर्व में 31 जनवरी को बिजली कंपनियों द्वारा दायर की गई बिजली रेट प्रस्ताव की याचिका अपूर्ण तथा कई पैमाने पर कम पायी गई, अतः बिजली कंपनियों को पूर्ण याचिका दायर करने को कहा गया। आयोग की 31 मई की सार्वजनिक सूचना के अनुसार बिजली कंपनियों ने अनेक बार समय चाहा और 27 मई को संशोधित याचिका दायर की।
आम नागरिक मित्र फाउण्डेशन ने बताया कि विद्युत नियामक आयोग ने दो माह पूर्व में आदेश जारी कर वर्ष 2013-14 की सत्यापन याचिका में बताया गया घाटा इस वर्ष के टैरिफ निर्धारण याचिका में जोड़ने को कहा था, लेकिन आयोग के 30 नवंबर के आदेश को बिजली कंपनियों ने जान-बूझकर धता बताकर 3919 करोड़ का घाटा छिपाया है तथा लोकसभा चुनाव की पूर्व में 31 जनवरी को कम से कम दर वृद्धि-1.5 प्र.श.वृद्धि के प्रस्ताव की याचिका दायर की थी।
लेकिन जब आयोग ने पुनः संशोधित याचिका दायर करने को कहा तब बारम्बार बिजली कंपनियों ने जान-बूझकर पूर्ण याचिका दायर करने में इसलिये टाल-मटोल की, कि लोकसभा चुनाव का समय भी निकल जाये और सत्ता पक्ष को लाभ पहुंच सके। लोकसभा चुनाव के बाद 3919 करोड़ का घाटा जोड़ा गया और 12 प्र.श.की रेट वृद्धि प्रस्तावित की गई है। बैठक में डॉ.पी.जी. नाजपांडे, रजत भार्गव, अनिल पचौरी, डॉ.एम.ए. खान, डॉ.एम.एल.व्ही. राव, सुभाष चंद्रा तथा राममिलन शर्मा आदि उपस्थित थे।