जान बचाने वाली दवाईयां कब जानलेवा हो जातीं हैं, मुंद्रा से जानिए | WHEN LIFE SAVING MEDICINES DANGEROUS FOR LIFE

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उमेश कुमार सिंह। जब हम बीमार होते हैं, तो डॉक्टर के पास जाते हैं. डॉक्टर (Doctor) हमारे रोग के अनुसार हमारा उपचार करते हैं, वह हमें ठीक करने के लिए दवाईयां देते हैं. अगर दवाईयों ( Medicines) से रोगी ठीक नहीं हो तो डॉक्टर सर्जरी आदि कराने का सुझाव देते हैं. लेकिन ये सब इतना आसान भी नहीं है. डायग्नोसिस, दवाईयों लेने व उनका सेवन करने और सर्जरी के दौरान या बाद में हुई गड़बडियां न केवल बीमारी को बढ़ा देती हैं, बल्कि कईं बार जानलेवा भी हो सकती हैं.

दवाईयों के सेवन से जुड़ी सावधानियां / Precautions related to the use of medicines

नई दिल्ली स्थित सरोज सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Saroj Super Specialty Hospital) के एचओडी एवं सीनियर कंसल्टेंट ‘इंटरनल मेडिसिन ’ डॉ. एस. के. मुंद्रा (Dr. S.K Mundra,का कहना है कि दवाईयों का शरीर पर या तो इफेक्ट होता है या साइट इफेक्ट. अगर सही दवाईंयां सही मात्रा में ली जाएं तो उनका शरीर पर उपचारात्मक प्रभाव होता है. अगर दवाईयों का जरूरी मात्रा से अधिक सेवन किया जाये, तो इसका शरीर पर विषैला प्रभाव होता है. अलग-अलग दवाईयों के ओवरडोज के अलग-अलग प्रभाव होते हैं. जैसे एंटी बॉयोटिक का अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो डायरिया हो जाता है. पेन कीलर्स का लंबे समय तक सेवन करने से एसिडिटी, गैस, उल्टियां, और बदहजमी की समस्या हो जाती है, कईं बार इनके लगातार सेवन से अल्सर बन जाता है, जिससे खून की उल्टियां होती हैं.

शूगर की दवाई (Sugar medicine) का कम डोज लेने या न लेने से शूगर बढ़ सकती है, जो खतरनाक हो सकता है. अगर अधिक डोज लिया है तो शरीर में शूगर का स्तर अत्यधिक कम हो जाता है. जिसके कारण अत्यधिक पसीना आना, कमजोरी महसूस होना, बहुत भूख प्यास लगना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं. ऐसे में मरीज को ऐसा लगता है, जैसे उसके शरीर में जान ही नहीं रह गई है. कईं बार ऐसा होता है कि डायबिटीज के रोगी दवाई ले लेते हैं और भोजन खाना भूल जाते हैं या बहुत देर बाद खाना खाते हैं उससे भी इसी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं.

अगर ब्लड प्रेशर की दवाईयां (Blood pressure medicines) नियमित समय और उचित मात्रा में न ली तो सिरदर्द, चक्कर आना, ब्रेन स्ट्रोक और नाक से खून आने की समस्या हो सकती है. कईं लोगों को सही मात्रा में दवाईयों का सेवन करने पर भी कुछ साइड इफेक्ट्स (Side effects of medicines) हो जाते हैं. अलग-अलग दवाईयों के लिए ये लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. वैसे डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन के साथ लिख कर देते हैं या मरीज को समझाते हैं कि अगर फलां दवाई के सेवन से फलां साइड इफेक्ट्स दिखाई दें तो उनसे संपर्क करें. जैसे पेन कीलर के सही मात्रा में सेवन से भी कईं लोगों को एसिडिटी और गैस की समस्या हो जाती है.

गलत दवाईयों का सेवन / Taking the wrong medicine

डॉ. एस. के. मुंद्रा का कहना है कि कुछ दवाईयां एक जैसे नाम की होती हैं, तो कुछ दवाईयों का उच्चारण एक जैसा होता है. यह गड़बड़ी अक्सर टेलिफोनिककंसल्टेशन के कारण होती है. कईं बार नौसिखिए मेडिकल स्टोर वाले भी दवाई के नाम को ठीक प्रकार से नहीं पढ़ पाते और गलत दवाई दे देते हैं. कईं बार लोग डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन नहीं लेकर जाते और वैसे ही बोलकर दवाई ले लेते हैं, इससे भी गड़बड़ हो जाती है.

ऐसे में किसी और बीमारी के लिए कोई और दवाई खाने में आ जाती है और यह बहुत खतरनाक और घातक हो सकता है. अगर आपने या आपके परिवार में किसी ने गलत दवाई खा ली है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

सर्जरी से जुड़ी सावधानियां / Precautions related to surgery

सर्जरी सफल हो गई है तो भी पूरी सावधानी रखने की जरूरत है, ताकि मरीज जल्दी रिकवर होकर सामान्य जीवन व्यतीत कर सके.
सर्जरी के बाद हल्का खाना खाएं, क्योंकि अगर उल्टी होगी तो जोर पड़ेगा और टांके टूट जाएगें विशेषकर जब पेट की सर्जरी हुई हो.
एंटी बॉयोटिक का सेवन भी डॉक्टर के सुझाव के अनुसार नियमित समय पर खाएं ताकि संक्रमण से बचा जा सके. लेकिन अधिक मात्रा में न खाएं क्योंकि इससे डायरिया की समस्या हो सकती है.
शूगर पेशेंट्स को अपनी शूगर नियंत्रण में रखें अगर शूगर अनियंत्रित हो जाए तो टांके नहीं भरेंगे और रिकवर होने में सामान्य से अधिक समय लग जाएगा.
ऑपरेशन के बाद भारी वजन उठाने से भी बचना चाहिए.
अगर ऑपरेशन वाले स्थान पर कुछ असहजता महसूस हो रही हो तो अपने ड़ॉक्टर से इस बारे में खुलकर चर्चा करें. 

डायग्नोसिस से जुड़ी जरूरी बाते / Important things about the diagnosis

अगर डायग्नोसिस और टेस्ट सही नहीं है तो गड़बड़ी हो सकती है, कईं बार छोटी लैब में जांच करवाने से रिपोर्ट सही नहीं आती जिससे अपचार भी गलत दिशा में चलता है, जो मरीज के लिए काफी परेशानी और घातक हो सकती है क्योंकि गलत डायग्नोसिस के कारण पीडि़त को जो बीमारी है उसका इलाज ही नहीं हो पाता है और वह उन दवाईयों का सेवन करता है, जिसकी उसे जरूरत ही नहीं है जो अंतत: उसके लिए टॉक्सिन का कार्य करती हैं. कईं बार यह भी होता है कि एक ही डायग्नोसिस के बाद उपचार प्रारंभ कर दिया जाता है, जिसके कारण भी पूरी बीमारी का पता नहीं चल पाता और सही इलाज नहीं हो पाता है. 

उपचार के बाद सतर्क रहना भी है जरूरी / It is also necessary to be cautious after treatment

डॉ. एस. के. मुंद्रा के अनुसार कईं बार ऐसा होता है कि जांचे वगैरह सब ठीक हैं उपचार भी शुरू हो गया है, लेकिन मरीज ठीक नहीं हो रहा है. ऐसी स्थिति में दूसरे डॉक्टर से करने परामर्श करने में देर न लगाएं ताकि पता चल सके कि उपचार सही दिशा में चल रहा है या नहीं. मरीज का उपचार सही तरीके से हो इसलिए पूरी तरह सतर्क रहने की जरूरत है. अगर पहले डॉक्टर और दूसरे डॉक्टर के ओपिनियन लगभग 80 प्रतिशत समान हैं तो 20 प्रतिशत का अंतर चलेगा. लेकिन अगर दोनों के ओपिनियन में अधिक अंतर है, तो थर्ड ओपिनियन की आवश्यकता भी पड़ सकती है.
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