गौ वंश की बेचारगी | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
गौ वंश इस देश में राजनीति का एक बड़ा मुद्दा है | मध्यप्रदेश में घटी घटना पर कश्मीर तक राजनीति हो रही है |  मध्यप्रदेश में इस राजनीति का पक्ष विपक्ष अलग- अलग है | इन पक्षों के अपने- अपने धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक पहलू भी है | इन पक्षों से इतर एक तीसरा पक्ष भी है,जिसकी गौ वंश रक्षा के बहाने नीयत कहीं और और निशाना कहीं और होता है |मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में पिछले दिनों गोमांस रखने के शक में महिला समेत तीन लोगों की पेड़ से बांधकर मारपीट की गई। घटना के दूसरे दिन वीडियो वायरल होने पर पुलिस ने पांच आरोपियों को हिरासत में लिया ।मध्यप्रदेश में यह कुछ लोगों के लिए दुर्घटना, कुछ लोगों के लिए शरारत और कुछ लोगों के लिए राजनीति हो सकती है, पर जम्मू कश्मीर से प्रतिक्रिया आना राजनीति से उपर कुछ है | ये  बात गौ वंश से कैसे भी जुड़े, पक्षों को साफ़ समझ लेना चाहिए | सहानुभूति का अर्थ कुछ और है |पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने मध्य प्रदेश में कथित  गौ-रक्षकों द्वारा एक महिला सहित तीन व्यक्तियों की पिटाई करने पर रोष व्यक्त करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से आरोपियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने का आग्रह किया।आग्रह तक तो ठीक है पर ट्विटर पर महबूबा ने  जो लिखा वो प्रदेश की शांति को भंग करने के प्रयास से कम नहीं है| उन्होंने ट्विटर पर जातिगत पहचान उजागर की है | इस घटना का वीडियो सबने देखा है, ऐसे ट्विटर उबाल लाते हैं | ऐसे राजनीतिक सौहाद्र निभाने के परिणाम पहले भी देश में ठीक नहीं रहे हैं |

कुछ आंकड़े सामने हैं |दुनिया में बीफ़ का  कुल उत्पादन: ५७८३ -करोड़ मीट्रिक टन है |जिसमे से २२.५ लाख मीट्रिक टन उत्पादन  भारत करता है |आंकड़ो का स्रोत: इंटरनेशनल मीट सेक्रेटेरियट है | आंकड़ों के अद्यतन होने की जवाबदारी इसी संस्थान की है | भारत से पिछले सालों में २६४५७.७९ करोड़ रुपए के बीफ़ का निर्यात हुआ जबकि भेड़ और बकरी के मीट का निर्यात ६४९.१० करोड़ रुपए रहा। विश्व में मीट का कारोबार करीब ७९९,०५५१.२ अरब अमेरिकी डॉलर का है। बीफ  की परिभाषा को लेकर विवाद है | इसमें गौवंश के साथ भैंस भी शामिल है|भारत पूरे विश्व में भैंस के मांस का सबसे बड़ा निर्यातक है मगर भारत में बीफ़ की खपत ३.८९ % ही है।

भारत में तीन राज्यों को छोड़ कर लगभग सभी जगह गौ वंश हत्या पर कहने को १९७६ से ही प्रतिबंध है। इसके बावजूद कुछ राज्यों में बैल और बछड़े को काटने की कथित  इजाज़त है,जिसकी आड़ में मालूम नहीं क्या- क्या कट जाता है | केरल जैसे राज्य में राजनीति इस गौ वंश कटाई का खुलेआम प्रदर्शन भी करती है । २०१२  में हुए पशुओं की गणना के अनुसार भारत में गोवंश की तादाद १९५१ में सबसे अधिक ५३.०४ % थी। २०१२  में ये घटकर ३७.२८ % पर आ गई।  मांस निर्यात संघ के पूर्व सचिव डीबी सभरवाल के मुताबिक,”भारत में बीफ़ के नाम पर भैंस के मांस का कारोबार ही होता है। १९४७  के बाद से भारत में आधिकारिक रूप से गाय नहीं कटती। हाँ, चोरी छुपे गाय की हत्या के मामले कहीं-कहीं पर होते रहे हैं। मगर ये उतने बड़े पैमाने पर नहीं हैं जितना प्रचार हो रहा है।“ अब सवाल यह है कि भारत में जब गोहत्या पर पाबंदी है तो फिर इनकी संख्या में दिनों-दिन इतनी कमी क्यों आई?बीफ के कारोबारी इसके पीछे तर्क दे रहे हैं कि प्रतिबंध की वजह से किसान अपनी दूध न देने वाली गायों को बेच नहीं पाते हैं। लेकिन उन्हें पालना और जिंदा रखना भी नहीं चाहते हैं। इसके अलावा अब खेती के मशीनीकरण के बाद जानवरों का इस्तेमाल नहीं के बराबर हो रहा इसलिए जो बछड़े और बैल कसाइयों के ज़रिए किसान के काम आ सकते थे उन्हें जिंदा रखने में किसान को कोई लाभ नहीं। यही वजह है कि संरक्षण के बावजूद गोवंश की तादाद घट रही है| तर्क है, पर पचता नहीं है | मध्यप्रदेश सरकार तो हर जिले में गौ शाला बनाने का वचन दे चुकी है |

मांस के कारोबार से जुड़े व्यापारी मानते हैं कि इस धंधे में कई समुदायों के लोग हैं। करीब २८  हज़ार करोड़ रुपए के इस व्यवसाय में मुनाफे का एक बड़ा हिस्सेदार वह व्यापारी वर्ग भी है, जो गौ वंश को सम्मान देता है । भारत में कुल ३६००  बूचड़खाने सिर्फ नगरपालिकाओं द्वारा चलाये जाते हैं। इनके अलावा ४२  बूचड़खाने ‘आल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन’ के द्वारा संचालित किये जाते हैं जहां से सिर्फ निर्यात किया जाता है। इन कारखानों में बड़े लोगों की भागीदारी है | गौ वंश बेचारा था, बेचारा है और बेचारा रहेगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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