बीमार बनाता चुनाव प्रचार | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। देश आम चुनाव (ELECTION ) से गुजर रहा है, भारत में चुनाव का चक्र निरंतर जारी रहता है कभी संसद, कभी विधानसभा, कभी स्थानीय संस्था तो कभी कालेज से लेकर पंचायत | हर बार कोई न कोई चुनाव | इन चुनावों का एक अनिवार्य अंग शोर है | वैसे भी दुनिया के 50 महानगरों के एक अध्ययन में पाया गया है कि वैसे भी दिल्ली में सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण है| चुनावों के दौरान दिल्ली तो क्या सभी छोटे-बड़े शहर ध्वनि प्रदूषण से ग्रस्त हो जाते है| सही मायने में ध्वनि प्रदूषण शहर में लोगों को बहरा कर रहा है |

शहरीकरण की तेज गति के कारण ध्वनि प्रदूषण की यह समस्या और विकराल होती जा रही है. संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि 2050 तक दो-तिहाई आबादी शहरों की निवासी होगी| भारत में तब करीब 42 करोड़, चीन में 25. 5 करोड़ और नाइजीरिया में 19 करोड़ अधिक लोग शहरी लोगों की आज की जनसंख्या में जुड़ जायेंगे| चिकित्सकों की मानें, तो शहरों में उच्च रक्तचाप, हृदयाघात और मधुमेह की बीमारियों का एक बड़ा कारण शोर है| यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक यूरोप में लगभग 10 हजार असमय मौतों ध्वनि प्रदूषण से होती हैं| इसके अलावा बड़ी संख्या में बीमारों की संख्या भी बढती जा रही है|

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) का आकलन है कि पश्चिमी यूरोपीय देशों में हजारों जीवन शोर-शराबे की भेंट चढ़ जाते हैं| इस संस्था ने 2011 में एक रिपोर्ट में रेखांकित किया था कि बहरेपन और अन्य बीमारियों के अलावा सोने में दिक्कत और चिड़चिड़ापन भी शोर के चलते बढ़ रहे हैं| भारत में भी नगरीकरण और विकास का सिलसिला तेजी से आगे बढ़ रहा है| हमारे देश में शोर के खतरनाक असर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन 2007 में भी एक अध्ययन जारी कर चुका है. वैसे तो उसके बाद कुछ और रिपोर्ट आयीं और अदालती आदेश भी दिये गये, लेकिन सरकार, मीडिया और समाज के स्तर पर जरूरी सक्रियता नहीं दिखायी गयी है.| किसी राजनीतिक दल ने भी इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया | इसके विपरीत हर चुनाव में ज्यादा शोर मचाया |

हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि वह शोर पर निगरानी के अपने इंतजाम को सात शहरों के दायरे से निकाले और अन्य शहरों का भी जायजा ले. ट्रिब्यूनल ने बोर्ड को पूरे देश का एक ध्वनि प्रदूषण नक्शा बनाने को कहा है ताकि इस मुश्किल का आकलन ठीक से हो सके. इसके लिए 15 जून की तारीख तय की गयी है. फिलहाल दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और लखनऊ में शोर के स्तर को नियमित रूप से परखा जाता है| इस काम में राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को भी लगाया गया है. उम्मीद है कि ट्रिब्यूनल के निर्देश के अनुरूप सरकारें पुलिस और बोर्ड को जरूरी यंत्र एवं संसाधन उपलब्ध कराने के लिए तत्पर होंगी| राजनीतिक दलों को इसमें हाथ बंटाने के लिए आगे आना होगा |

एन जी टी ने यह निर्देश किसी अन्य मामले की सुनवाई के दौरान एक अखबार की रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लेते हुए दिया है| इसका साफ मतलब यह है कि सरकारी राजनीतिक और सामाजिक संस्थाएं शोर की समस्या के प्रति अभी भी कम गंभीर हैं| वायु और जल प्रदूषण के साथ कचरे के निबटारे की मुश्किलों से जूझते शहरों के लिए ध्वनि प्रदूषण बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है| शहरी जीवन को रहने लायक बनाने के लिए इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है| शोर मचाते चुनावी भोपुओं के बारे में सबसे पहले विचार करना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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