चुनाव के बाद मप्र में बड़े पैमाने पर तबादले की तैयारी | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। लोकसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र से पहले सरकार बड़े पैमाने पर प्रशासनिक सर्जरी करेगी। लोकसभा के नतीजे इसका आधार बनेंगे। वहीं, चुनाव प्रचार के दौरान जो फीडबैक मिल रहा है, वो भी संज्ञान में लिया जाएगा। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इसके संकेत भी दिए हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय में भी कुछ बदलाव के संकेत हैं। माना जा रहा है कि प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार में पदस्थ संजय बंदोपाध्याय को वापस भी बुलाया जा सकता है।

लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के बाद जिस तरह से योजनाओं की स्थिति को लेकर फीडबैक मिला है, उसको लेकर सरकार खफा है। सूत्रों के मुताबिक ऊर्जा, खाद्य, कृषि विभाग में बदलाव प्रस्तावित हैं। कृषि विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश राजौरा को उद्योग विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।

उन्हें कृषि विभाग से मुक्त किया जा सकता है। वहीं, इस विभाग की बागडोर सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव अजीत केसरी को सौंपी जा सकती है। प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति नीलम शमी राव को नई जिम्मेदारी मिलने के संकेत हैं। बिजली कटौती को लेकर बीच चुनाव में हुई फजीहत का खामियाजा ऊर्जा विभाग के अफसरों को उठाना पड़ सकता है। सामान्य प्रशासन विभाग और मुख्यमंत्री सचिवालय में फेरबदल भी प्रस्तावित है।

दरअसल, सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव रश्मि अरुण शमी को स्कूल शिक्षा की जिम्मेदारी दी गई है। दोनों बड़े और महत्वपूर्ण विभाग हैं। आमतौर पर सामान्य प्रशासन की कार्मिक शाखा जिस प्रमुख सचिव के पास रहती है, उसके दूसरा काम नहीं सौंपा जाता है। इसी तरह मुख्यमंत्री सचिवालय में भी कुछ बदलाव हो सकता है। यहां पदस्थ अधिकारी भी यही अनुमान लगाकर बैठे हैं। यह भी संभावना जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ के भरोसेमंद अफसर संजय बंदोपाध्याय को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस बुलाया जा सकता है।

सूत्रों का कहना है कि चुनाव के बाद मंत्रियों से परामर्श करके मंत्रालय में अधिकारी भी बदले जाएंगे। मैदानी स्तर पर नए सिरे से जमावट होगी। इसके लिए कुछ कमिश्नर और कलेक्टरों के तबादले होंगे। इसके साथ ही सरकार फीडबैक लेने का तंत्र भी चुस्त-दुरुस्त करेगी। चाहे बिजली की समस्या हो या फिर कर्जमाफी से जुड़ी मैदानी शिकायतें, सरकार तक वैसी नहीं पहुंची, जैसी उम्मीद की जाती है। यही वजह है कि जब समस्या सतह पर आ गई तब सरकार एक्शन में आई और डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू हुई। यह कितनी कारगर रही यह तो चुनाव के बाद पता लगेगा पर इतना तय है कि इसका असर ब्यूरोक्रेसी पर जरूर पड़ेगा।
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