किसान की बदहाली सरकार ऐसे रोक सकती है | EDITORIAL by Rakesh Dubey

किसानों की दशा सुधारने उनके कर्ज माफ़ी की बात करने वाले पता नहीं यह क्यों भूल जाते हैं कि भारत हर वर्ष कृषि क्षेत्र से ४००० करोड़ डॉलर का निर्यात करता है। यह निर्यात कपड़ा एवं वस्त्र क्षेत्र के कुल निर्यात से भी अधिक है। कमी सिर्फ नजरिये की है भारत को कृषि क्षेत्र में अपना वैश्विक नजरिया और अधिक अंतरराष्ट्रीय बनाना होगा। दुर्भाग्य से भारत में स्वत: ऐसा नजरिया बनता जा रहा  है कि भारत अत्यधिक आबादी और कम खाद्यान्न वाला देश है। कई दशक पहले ऐसा था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। खेती की जमीन की कमी नहीं है। मौसम भी एक वर्ष में कई फसल लेने में सहायक है।जरूरत नजरिये को बदलने और बिचौलियों  को समाप्त करने की है |

देश उपज सुधार के साथ ही आबादी नियन्त्रण की कोशिस कर रहा है। हमारे लिए यह संभव नहीं है कि जितना अन्न उपज रहा है उसकी खपत कर सकें। घरेलू बाजार में खाद्यान्न कीमतों में गिरावट की यह भी एक वजह है। इन बातों ने कृषि उत्पादों के निर्यात की बुनियाद तैयार की। वर्ष २०१३  तक भारत कृषि निर्यात के क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया को पछाड़ चुका था। उसने इस क्षेत्र में बीते दशक के मुकाबले सबसे ऊंची वृद्धि दर हासिल की। कृषि क्षेत्र का व्यापार/जीडीपी अनुपात २००८-०९ के ११.८ प्रतिश्त से बढ़कर २०१८-१९ तक १५.२ प्रतिशत हो गया। भारत के श्रम आधारित निर्यात की चर्चा अक्सर वाहन और वस्त्र उद्योग तक सीमित रहती है। कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया है कि कृषि क्षेत्र का निर्यात अब वाहन, कपड़ा और वस्त्र उद्योग से अधिक है। इसके बावजूद हाल के वर्षों में इसकी वृद्धि में ठहराव देखा गया है। निर्यात बाजार से जुड़ाव एक खास न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना सुनिश्चित करता है।

यूँ तो भारत में गठबंधन करना आसान है। कई हित समूह मिलकर सफलतापूर्वक निर्यात कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र बहुत लंबे समय से नीतिगत प्रगति के क्षेत्र में ठहरा हुआ है। अब जबकि कृषि व्यापार और जीडीपी अनुपात १५ प्रतिशत है और निर्यात 4000 करोड़ डॉलर हो चुका है तो कृषि नीति को लेकर नई संभावनाएं उत्पन्न हो चुकी हैं।  अंतरराष्ट्रीयकरण कई घरेलू पहेलियां हल करता है। जैसे भारत में जिंस वायदा बाजार का क्रियान्वयन आसान नहीं है लेकिन एक बार अंतरराष्ट्रीयकरण होने के बाद देश के बाहर इन बाजारों में कारोबार किया जा सकेगा। भारत के लोग देश के बाहर वायदा बाजार की कीमत के आधार पर भंडारण या बुआई के निर्णय लेंगे। अंतरराष्ट्रीयकरण घरेलू नीति की समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। अब जरूरत इस ओर सही तरीके से सोचने और उस किसान को समझाने की है जो अपने उत्पाद की सही कीमत नहीं समझता | उसके उत्पाद की कीमत बिचौलिए लगाते है और सरकार सिर्फ ऋण माफ़ी की योजनाये बनाती है | व्यापार  की इस वैश्विक समझ और वैश्विक जरूरत को खेत तक ले जाना होगा |

 एक बात और  भारत सरकार ऐसी विदेशी कंपनियों की शर्तों को ठीक से समझना चाहिए जो भारत के साथ कारोबार करना चाहती हैं। ये शर्त प्रतिबन्ध के रूप में होती हैं, प्रतिबंधों  से भारत की निर्यात क्षमता प्रभावित होती है। हमारा आधा वैश्विक कारोबार बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ होता है। निर्यात के लिए हमें ऐसी वैश्विक कंपनियों की आवश्यकता है जो हमारे यहां निवेश की प्रतिबद्घता जताएं और उनकी शर्तों में कोई प्रतिबन्ध न हो।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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