NPS सरकार को पुरानी पेंशन से कहीं ज्यादा महंगी पड़ रही है

रमेश पाटिल। पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली की मांग पर सरकार का एकमात्र जवाब होता है की इससे सरकार पर बहुत ज्यादा आर्थिक भार आएगा। जो पूरी तरह सच नहीं है बल्कि इसके उलट नेशनल पेंशन स्कीम लागू रखने से सरकार पर बहुत ज्यादा आर्थिक बोझ पढ़ रहा है। सच्चाई यह है कि केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार हो को कर्मचारी के 10% वेतन के बराबर सरकारी अंश प्रत्येक माह नेशनल पेंशन स्कीम के अंतर्गत जमा करना अनिवार्य होता है जो अब बढ़कर 14% हो गया है, जमा करना पड़ेगा। जिससे प्रत्येक माह सरकारी खजाने पर आर्थिक बोझ पढ़ रहा है। 

यह आर्थिक बोझ इतना ज्यादा है कि कुछ राज्य सरकारें इस बोझ को नियमित नहीं उठा पा रही है और कर्मचारियों के आलोचना का केन्द्र बन रही है क्योंकि कर्मचारियों को इससे ब्याज के रूप में आर्थिक नुकसान उठाना पढ रहा है। इस आर्थिक बोझ से उभरने का केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के पास एकमात्र उपाय है कि पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाल कर दी जाए और नेशनल पेंशन स्कीम के अंतर्गत जमा राशि में से सरकार अपना अंश 50% वापस लेकर सरकारी खजाने में जमा कर ले और 50% कर्मचारी की जमा राशि जीपीएफ खाता खोलकर उसमें जमा कर दें। मुझे ही नही बल्कि हर आर्थिक विशेषज्ञ विश्वासपूर्वक कह सकता है कि नेशनल पेंशन स्कीम में जमा कर्मचारी की राशि का 50% सरकारी खजाने में वापस जमा होने से सरकार की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा सुदृढ हो जाएगी बल्कि कई वर्षो के बजट की भी चिंता दूर हो जाएगी। 

नेशनल पेंशन स्कीम में जमा कर्मचारी के हिस्से की 50% राशि जीपीएफ खाते में जमा किए जाने पर उस राशि को भी लंबे समय तक खर्च करने का सरकार को अधिकार मिल जाएगा। ऐसा करने से कर्मचारी के जीवन में सुरक्षित भविष्य का भाव आएगा और वह शासन की नीतियों का पूरी क्षमता से क्रियान्वयन करने के लिए प्रोत्साहित होगा। वर्तमान में अंधकारमय भविष्य को स्पष्ट देख रहा कर्मचारी भ्रष्टाचार के दलदल में फंसने से भी बच जाएगा। वर्तमान में शेयर बाजार आधारित नेशनल पेंशन स्कीम जिसके बारे में अभी से आशंका व्यक्त की जा रही है कि यह देश का सबसे बड़ा महाघोटाला भविष्य में सिद्ध होगा के कलंक से भी सरकार को मुक्ति मिल जाएगी।

पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली की मांग करने पर कुछ राजनेता इसे देश से जोड़ देते और कुतर्क करते हैं कि पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली देश हित में नहीं है। सबसे पहले तो इस बात को समझना होगा कि लगभग 60 लाख केंद्रीय और राज्य शासन के कर्मचारी पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं वह इसी देश के सम्मानित नागरिक हैं और सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों के क्रियान्वयन के लिए ही उनकी नियुक्ति होती है। कर्मचारी सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन के लिए अपना सारा जीवन खफा देता है। सेवानिवृत्ति उपरांत सरकार कर्मचारी के संवैधानिक अधिकार पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन का अधिकार प्रदान कर देती है तो कर्मचारी के जीवन में खुशहाली आएगी। वह अपने बुढ़ापे का जीवन जीने के लिए आत्मनिर्भर तो होगा ही अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व का भी निर्वहन बेहतर तरीके से करने में सक्षम हो पाएगा। स्वाभाविक है कर्मचारी खुश होगा तो देश में भी खुशहाली आएगी। कहने का आशय कर्मचारी को पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली विशुद्ध देशहित में है। इसे तत्काल लागू किया जाना चाहिए।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तात्कालिक सरकार को अपने हित साधने के लिए आंकड़ों की कलाबाजी दिखाकर पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बंद कर नेशनल पेंशन स्कीम लागू करने के लिए बाध्य किया गया था। पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बंद करने से सरकार का अंग होते हुए भी सरकारी कर्मचारियों और सरकार के बीच अविश्वास की खाई बन गई है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा षडयंत्र रचकर जिस पाश्चात्य उपभोक्ता संस्कृति "यूज & थ्रो" को जन्म दिया गया था वह बिल्कुल भी देशहित में नहीं है। देशहित में वही होता है जो देशवासियों के हित में होता है। लगभग 60 लाख पुरानी पेंशन विहीन कर्मचारी और उनका पारिवारिक पेंशन से वंचित परिवार जिनकी संख्या लगभग 3 करोड़ के आसपास ठहरती है के हित में कर्मचारी स्वयं पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली को समझता है। कर्मचारी की पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन की मांग से माननीय राजनेताओं को भूतकाल में की गई बडी गलती को सुधारने का उचित अवसर मिल रहा है। इस गलती को सुधारने के अवसर को सरकार को इक्का-दुक्का व्यक्तिगत जिद के आगे गवाना नहीं चाहिए।

कर्मचारी कहते हैं कि पुरानी पेंशन बहाली उनके और देश के हित में है और माननीय राजनेता कहते हैं कि नेशनल पेंशन स्कीम कर्मचारी और देश हित में है। इस अंतहीन बहस का एक साधारण सा हल भी है की प्रत्येक कर्मचारी से विकल्प मांग लिया जाए कि वह नेशनल पेंशन स्कीम का हिस्सा बने रहना चाहता है या पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन का हिस्सा बनना चाहता है-दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

जो भी सरकार या राजनीतिक दल पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली की दिशा में आगे बढेगी उसे अप्रत्याशित राजनीतिक लाभ भी होगा। उसका सत्ता के सिंहासन पर आरूढ होने का रास्ता सुगम होगा।

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