रोस्टर विवाद को चुनावी मुद्दा न बनाये | EDITORIAL by Rakesh Dubey

विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियों को लेकर चल रहा विवाद अब चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। सरकार कोई अध्यादेश लाने का सोच रही है, क्योंकि यह आरक्षण से जुड़ा मसला है और सुप्रीम कोर्ट ने विषयवार आरक्षण के पक्ष में जो फैसला किया है, उससे आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों को नुकसान हो रहा है। वे सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ   आंदोलन कर रहे हैं। आरक्षण की राजनीति करने वाली पार्टियों और उनके नेताओं को सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला और रोस्टर सिस्टम समझ में नहीं आया वे बहुत दिनों तक चुप रहे, लेकिन उस आंदोलन में अब उन्हें चुनावी लाभ दिखने लगा है। इसलिए अब कुछ राजनेता इस विवाद में कूद पड़े हैं और कुछ कूदने वाले हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार नहीं, बल्कि दो बार विषयवार आरक्षण के पक्ष में फैसला किया। उसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसके पक्ष में फैसला किया था। उसका विरोध हुआ और केन्द्र सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ  सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। उसका काफ ी विरोध हुआ और केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ  पुनर्विचार याचिका दाखिल की। अब वह पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो चुकी है और यदि सरकार ने अध्यादेश लाकर उस फैसले पर रोक नहीं लगाई, तो विषयवार आरक्षण के तहत ही विश्वविद्यालय शिक्षकों की रिक्तियों को भरेंगे और उसके कारण ओबीसी अभ्यर्थियों को थोड़ा, पर एससी और एसटी अभ्यर्थियों को भारी नुकसान होंगे।

इन दिनों १३  प्वांइट और २००  प्वांइट रोस्टर की खूब चर्चा हो रही है। मांग की जा रही है कि केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण अस्तित्व में आए १३  प्वांइट रोस्टर को अध्यादेश लाकर समाप्त करे और २००  प्वाइंट रोस्टर की पुरानी व्यवस्था को फिर से बहाल करे। लेकिन रोस्टर के इस विवाद में आरक्षणवादी समस्या के मूल को ही भूल रहे हैं।समस्या विषयवार आरक्षण में नहीं है और न ही २००  प्वांइट रोस्टर इसका समाधान है। २००  प्वाइंट रोस्टर के बावजूद आरक्षित वर्गों की अधिकांश सीटें खाली पड़ी हुई थीं। असली समस्या यह है कि विश्वविद्यालयों को ही शिक्षकों की नियुक्तियों का अधिकार मिला हुआ है। रोस्टर सिस्टम उनको मिले इस अधिकार की ही उपज है, चाहे वह२०० प्वांइट वाला हो या १३  प्वाइंट वाला। यदि विश्वविद्यालयों का यह अधिकार छीन लिया जाय और संघ लोक सेवा आयोग केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के लिए और राज्य लोक सेवा आयोग राज्यों के विश्वविद्यालयों के लिए शिक्षकों की नियुक्तियां करें, तो रोस्टर से पैदा हुई समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी।

विषयवार आरक्षण के कोर्ट का फैसला सही है। गलत विश्वविद्यालयों को नियुक्ति का अधिकार देना है। यदि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के लिए संघ लोकसेवा आयोग नियुक्ति करता है, तो एक ही विषय में दर्जनों या सैंकड़ों नियुक्तियां एक साथ विज्ञापित की जा सकती है और सभी वर्गों के लिए सीटें उपलब्ध हो जाएंगी। सभी वर्गों के सफल आवेदकों को अलग अलग केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में उनकी पसंद और परीक्षा में प्राप्त पोजीशन के हिसाब से नियुक्ति दी जा सकती है। फिर किसी वर्ग को शिकायत नहीं होगी और प्रतियोगिता भी एक विषय के लोगों के बीच ही आपस में होगी। राज्य स्तर पर यह जिम्मा राज्य लोक सेवा आयोग को दिया जा सकता है। सरकार को इसी दिशा में आगे बढ़कर इस विवाद का हल निकालना चाहिए। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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